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अंधकार मन से दूर केरो
मुझे रातें पसंद हैं पर, ऐसा नहीं कि अंधेरा मेरी जिंदगी का हिस्सा हो...
5 साल से रिस रहा है नोटबंदी का घाव
नोटबंदी हुए 5 साल बीत चुके हैं. 50 दिन का समय मांगते प्रधानमंत्री मोदी को जनता ने 5 साल दे दिए, पर आज भी सभी के दिमाग में कई सवाल घूम रहे हैं कि आखिरकार नोटबंदी से क्या फायदा हुआ? क्या कालाधन आया? क्या आतंकवाद व नक्सलवाद खत्म हुआ? क्या देश की अर्थव्यवस्था बढ़ी? अगर नहीं, तो यह जनता पर क्यों थोपी गई?
शराब से कंगाली और बदहाली
शराब का सेवन नुकसानदेह है, कई घर इस से तबाह हुए हैं. हैरानी यह कि इस के सेवन को आधुनिकता से जोड़ा जा रहा है, लैंगिक बराबरी के लिए इस को भी आधार बनाया जा रहा है. शराब सेवन का यह फैशन कहीं बड़ी भूल न बन जाए.
सरकार की देन महंगाई
इस बार की महंगाई हवा जैसी है जो दिख नहीं रही लेकिन महसूस सभी को हो रही है. आम लोग परेशान हैं क्योंकि हर चीज के दाम बढ़ गए हैं. लेकिन महंगाई को ले कर सब की उदासीनता व सब का समझौतावादी नजरिया हैरान कर देने वाला है. कोई भी सरकार से यह पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रहा कि वह टैक्स में मिले पैसों का क्या कर रही है.
समीर वानखेड़े शिकारी या शिकार
बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को ड्रग्स मामले में गिरफ्तार करने वाले मुंबई नारकोटिक्स डिविजन के जोनल डायरैक्टर समीर वानखेड़े गंभीर आरोपों में घिर गए हैं. महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने उन पर जो आरोप लगाए हैं उन से न सिर्फ नारकोटिक्स डिपार्टमैंट में व्याप्त भ्रष्टाचार उजागर हो रहा है, बल्कि समीर वानखड़े की सरकारी नौकरी भी संकट में नजर आ रही है.
परिवार का महत्त्व बताती साफसुथरी फिल्म
हम दो हमारे दो**
कितना दें बच्चों को जेबखर्च
अकसर पेरेंट्स में कनफ्यूजन रहता है कि बच्चों को जेबखर्च के लिए पैसा दिया जाए या नहीं और यदि दिया जाए तो कितना. यह जेबखर्च इतना न हो कि बच्चा गलत आदत का शिकार हो जाए और इतना भी कम न हो कि उसे शर्मिंदा होना पड़ जाए.
पैगासस कांड जांच कमेटी से निकलेगा सच?
पैगासस जासूसी मामले में केंद्र सरकार कोई स्पष्ट जवाब देने को न तो संसद में तैयार है और न ही सुप्रीम कोर्ट में. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस आर वी रवींद्रन की अध्यक्षता में गठित जांच कमेटी को इस मामले में कब तक और किस हद तक सफलता मिलेगी, कहना मुश्किल है.
आस्था और अंधता का जहर
आस्था के नाम पर मानव समाज ने इतिहास से ले कर अब तक कई बर्बरताएं देखी हैं. धर्म और आस्था के नाम पर कई युद्ध हुए हैं, कितने ही लोग मारेकाटे गए हैं. ये सब होते रहने व देखते रहने के बावजूद आज लोग इस मामले में अंधे बने हुए हैं.
एकदूसरे की साथी बनती आज की बहू और सास
मौडर्न समय में रिश्ते जोरजबरदस्ती से नहीं बल्कि आपसी तालमेल से बनाने पड़ते हैं. तालमेल ऐसा जिस में दबनेदबाने की भावना न हो और एकदूसरे के प्रति सम्मान हो. सासबहू को ले कर समाज में परसैप्शन है कि इन का नेचर आपस में लड़नेझगड़ने का है पर आज के बदले समय में सासबहू में तालमेल दिखाई देने लगा है.
'मैं मूड़ी नहीं खुशमिजाज हूं' गीतांजलि टिकेकर
गीतांजलि टिकेकर टीवी जगत की चर्चित अभिनेत्री हैं, जिन्हें दर्शक 'कसौटी जिंदगी की' शो में अपर्णा बासु के किरदार से जानते हैं. हंसमुख स्वभाव की गीतांजलि अब ‘शुभ लाभ' में नजर आएंगी.
कोरोना के बाद पटरी पर लौटती जिंदगी
कोरोना के बाद जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने लगी है. फैस्टिवल सीजन नया उत्साह ले कर आया है. जरूरत इस बात की है कि कोरोना ने जो सीख दी है उसे भूलें नहीं. कोरोना ने एक नया जीवनदर्शन दिया है. इस ने समाज, घर और परिवार के मूल्यों को समझाया है. नई लाइफस्टाइल में सुरक्षा कवच नहीं है, यह इस ने बता दिया है. प्रकृति और पर्यावरण के महत्त्व को इस ने नया विचार दिया है. यानी तमाम विरोधों को दरकिनार कर खुद को सुरक्षित रखते हुए लाइफ को एंजौय करना है.
जम्मूकश्मीर आतंकियों के निशाने पर अब आम आदमी
जम्मूकश्मीर में प्रवासी मजदूरों और अल्पसंख्यकों पर हो रहे आतंकी हमलों को रोक पाने में सरकार असफल साबित हो रही है. आतंकियों ने टारगेट किलिंग का नया तरीका अपनाया है जिस से लोगों में दहशत बढ़ रही है जिस कारण घाटी से बड़ी संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं.
दीवाली आधी मीठी आधी फीकी
इस दीवाली लोगों का हाथ तंग है और अनापशनाप बढ़ती महंगाई ने त्योहार के उत्साह पर पानी फेर दिया है. इस के बाद भी मन में कहीं शुभलाभ की दबी इच्छा है जो हर हाल में खुश रहने का संदेश देती है. दीवाली का अपना एक आर्थिक व सामाजिक महत्त्व है लेकिन इस साल सबकुछ ठीकठाक नहीं है.
उत्तर प्रदेश की राजनीति किसान तय करेंगे
किसान आंदोलन इस समय देश में कितने व्यापक स्तर पर मौजूद है, इस का अंदाजा लखीमपुर खीरी में किसानों के खिलाफ हुई हिंसक घटना से लगाया जा सकता है. यह आंदोलन के खिलाफ भाजपा की बौखलाहट ही है कि आंदोलन को कुचलने के लिए अब इस तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं.
औनलाइन शौपिंग से दुकानदारी नुकसान में
औनलाइन बाजार से जहां ग्राहकों को फायदा पहुंच रहा है, वहीं छोटे व मध्यम वर्ग के व्यापारी काफी नुकसान में हैं. कई दुकानदारों के लिए तो अब दुकान का किराया और वर्कर्स की तनख्वाह तक निकालना मुश्किल हो रहा है.
वह खुशनुमा एहसास
हां, उस का यह स्पर्श सब से अलग था. बेशक, उसे यह भी पता नहीं होगा कि उस के स्पर्श का एहसास अब हमेशा साथ रहने वाला है, पर कुछ तो अलग था उस में, बाकियों से बेहद अलग. बस में थोड़ी देर की मुलाकात में ही कई चीजों को समझा गया वह.
अंधविश्वास का बाजार
जिस देश में अंधविश्वास जितना अधिक होता है वह देश तरक्की से उतना ही दूर भी होता है. भारत में अंधविश्वास की जड़ें अभी भी कायम हैं जो हमारी खोखली आधुनिकता दिखाने के लिए काफी हैं.
'सैक्रेड गेम्स' से 'स्क्विड गेम' तक ओटीटी का अपराध प्रेम
हम जिन चीजों को खुद से नहीं कर पाते उन चीजों को स्क्रीन पर होते देख संतुष्टि महसूस करते हैं. हत्या कभी भी उबाऊ चीज नहीं है. यह व्यक्ति के भीतर थ्रिल पैदा करती है, डराती है, हैरान करती है और संभावना में ले जाती है. आजकल ओटीटी का जमाना है, सैक्रेड गेम से ले कर स्क्विड गेम तक, यहां अधिकतर क्राइम आधारित शो ही देखने को मिलते हैं. ऐसा आखिर क्यों?
सिर का गंजापन
गंजापन जितनी बड़ी समस्या नहीं उस से अधिक गंभीर बना दी गई है. लोग गंजेपन के चलते भारी तनाव में आ कर जोखिम मोल ले रहे हैं. उपहास उड़ने के डर से लोग तरहतरह के तरीके अपना रहे हैं. ये तरीके घातक भी साबित हो सकते हैं.
न्यायपालिका में आरक्षण और धार्मिक दमन से दबती आधी दुनिया
महिलाओं को नौकरियों में आरक्षण से ज्यादा जरूरत धार्मिक जकड़न से आजादी की है. धार्मिक भेदभाव ने उन्हें शुरू से पीछे रखा है. जब महिलाएं इस से बाहर आने से लगती हैं तो उन्हें कोई नया कर्मकांडी टोटका पकड़ा दिया जाता है जिस की मंशा उन्हें दबाए रखने की होती है.
सपनों का आशियाना रेडी टू मूव बेहतर विकल्प
अब घर लेना हुआ पहले से आसान. घर या फ्लैट लेते समय बायर्स को चिंता रहती है कि कहीं पैसे फंस न जाएं या कोई प्रौब्लम न हो जाए, पर इन चिंताओं को दूर करने के लिए 'रेडी टू मूव' एक बेहतर विकल्प के तौर पर सामने आया है.
प्रेमकथा एक जैन मुनि की
धर्म का नशा जब साधकों पर चढ़ता है तो उन्हें लगता है कि वे सीधे ईश्वर की छत्रछाया में हैं और जैसे ही यह नशा उतरता है तो सांसारिक जीवन बहुत दूर हो जाता है. धर्म के रास्ते में एग्जिट के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है. यही संघर्ष जैन मुनि सुद्धांत और साध्वी प्रज्ञा को करना पड़ा, इन्हें प्रेम करने की सजा मिली.
कैसी बीवी चाहिए सुंदर या गुणवान
हर कोई चाहता है कि उस की जीवनसंगिनी बला की खूबसूरत हो. जब युवक शादी के लिए लड़की देखने जाता है तब उस की 'हां' खूबसूरती पर आ कर टिकती है, हालांकि, जरूरी नहीं कि हर सुंदर लड़की गुणवान भी हो.
राजनीति में युवा न दिशा न सोच
आज के युवा नेता शौर्टकट से सफलता पाना चाहते हैं. देश और समाज को ले कर उन की स्पष्ट सोच नहीं है. ये नेता देश के भविष्य के बेहतर होने की जगह अपना लाभ देखते हैं. इस वजह से देश और समाज को युवाशक्ति का लाभ नहीं मिल पा रहा.
50 साल आगे की दुनिया देखने वाले एलन मस्क
'खुद में वह बदलाव लाइए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं,' यह बात कभी महात्मा गांधी ने कही थी और उन के इस वाक्य को किसी ने हकीकत में बदला है तो वे हैं एलन मस्क. एक ऐसा आदमी जो भविष्य में झांकता है और उसे कंट्रोल करना जानता है. जिस की सोच हमेशा इंसानों की परेशानियां दूर करने पर ही केंद्रित रही और इसीलिए दुनिया उसे 'जीनियस बिजनेसमैन' के नाम से पुकारती है.
शिवराज सिंह चौहान मोदी का भय कुरसी से प्यार
सत्ता पाने के बाद उसे जनताजनार्दन का आशीर्वाद बताने वाले शिवराज सिंह चौहान अचानक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को नरेंद्र मोदी की कृपा समझने लगे हैं. वे इतने डरे हुए हैं कि जनता की छोड़ अपनी फिक्र करने लगे हैं. उन का अधिकांश वक्त मोदी की तारीफ में जाया हो रहा है.
हिंदी चैनलों की भक्ति गायब जन मुद्दे
सरकार को चारों तरफ से घेरने की अग्र जिम्मेदारी जिन मीडिया चैनलों पर थी, वे पहरेदार बन उस का बचाव करने में जुटे हैं. टीवी न्यूज चैनलों द्वारा किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी, महंगाई जैसी दिक्कतों को छिपाने के भरसक प्रयास और गैरजरूरी मुद्दे उठाए जाना एक सोचेसमझे षड्यंत्र का हिस्सा है. अधिकांश चैनलों द्वारा असल मुद्दों को धूल की तरह कारपेट के नीचे छिपाया जा रहा है.
मौत के मुआवजे की घिनौनी प्रथा मौताणा
'मौताणा' राजस्थान के आदिवासी समुदाय के बीच प्रचलित प्रथा है जो अब वसूली करने की कुप्रथा बन कर रह गई है. कुछ वर्षों से देखने में आया है कि यह प्रथा अब जबरन वसूली का तंत्र बन गई है.
हमेशा से अपने होने का अर्थ ढूंढती रही नारी
भारत की नारियों ने हमेशा अपने होने का अर्थ ढूंढ़ना चाहा है, पर इस पुरुष समाज ने उसे अपनी इच्छाओं के नीचे दबा कर रखा. आखिर एक नारी भी अपने मन में सपने संजोती है, उन्हें पूरा करना चाहती है, किसी का हक नहीं बनता कि उस के सपनों को दबाए.