बैडी भेड़िया और जोजो सियार भी इस बात को अच्छी तरह जानते थे.
वे दोनों मुफ्त की दावत उड़ाने के बड़े शौकीन थे. वे किसी भी विवाह समारोह में बिन बुलाए पहुंच जाते थे और जम कर दावत उड़ाते थे.
मुफ्त की दावत के चक्कर में वे कई बार पकड़े भी जा चुके थे और उन की जम कर पिटाई भी हो चुकी थी. लेकिन दोनों बेशर्म बन चुके थे और अपनी आदत से बाज नहीं आते थे.
एक दिन बैडी ने कहा, "अरे जोजो, अगर महाराजा शेरसिंह की शाही दावत उड़ाने का मौका मिल जाए तो मजा ही आ जाए."
"हां, बैडी, बिलकुल सही कहा तुम ने. शाही दावत का तो मजा ही अलग होता है. एक से बढ़ कर एक व्यंजन, शाही कबाब, बिरयानी, बादाम वाली खीर और भी न जाने कितने स्वादिष्ठ व्यंजन, आह, मेरे मुंह में तो पहले ही पानी आने लगा है."
"और जोजो, ऐसे लजीज व्यंजनों का नाम सुन कर ही मुझे इतनी जोर की भूख लगने लगी है कि मेरे पेट में सौसौ चूहे उछलकूद मचाने लगे हैं."
वे दोनों जोर से हंसे.
तभी बैडी ने गंभीर होते हुए कहा, "सुनो जोजो, यदि हम विदेशी मेहमान के भेष में महाराजा शेरसिंह के पास जाते हैं तो हमें शाही दावत दी जाएगी."
"यह तो सच है, बैडी, लेकिन हम विदेशी मेहमान बनेंगे कैसे ?"
दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि शेरसिंह का शाही मेहमान कैसे बना जाए?
जोजो को एक उपाय सूझा. उस की आंखें चमक उठीं. उस ने अपना आइडिया बैडी को बताया तो वह भी खुशी से झूम उठा.
बैडी चहक कर बोला, "वाह, जोजो वाह, क्या शानदार उपाय ढूंढ़ा है तुम ने, अब तो हमें शाही दावत उड़ाने से कोई नहीं रोक सकता."
अगले दिन दोनों चंपकवन के सब से अच्छे टेलर मंकी बंदर के पास गए. उस से अरब के शेखों की 2 पोशाकें सिलवाईं.
अरबी शेखों की पोशाकें पहनने से वे दोनों जरा भी पहचान में नहीं आ रहे थे.
दोनों अपनी योजना के अनुसार अरबी घोड़ों के व्यापारी बन कर राजा शेरसिंह के दरबार में पहुंचे. उन्होंने गेटकीपर से कहा, "अपने महाराजा को बताओ कि सउदी अरब से अरबी घोड़ों के 2 व्यापारी अब्दुल्ला और रहमान उन से मिलने आए हैं."
गेटकीपर ने राजा को उन के आने की सूचना दी तो के वे बहुत खुश हुए. वे तो बढ़िया नस्ल के घोड़ों के बड़े शौकीन थे. उन के अस्तबल में देशीविदेशी नस्ल के अनेक घोड़े थे.
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