चीकू बिना समय गंवाए जल्दी से तैयार हुआ और छोटा छाता ले कर स्कूल के लिए चल पड़ा. वह छाते को कभी तलवार की तरह घुमाता तो कभी उस से बंदूक की तरह निशाना लगाने लगता. कभी उसे दादाजी की छड़ी समझ कर टेक कर चलने लगता. चीकू छाते को खिलौना समझ रहा था.
फिर झमाझम बारिश होने लगी. चीकू ने छाता खोला, लेकिन हवा का एक तेज झोंका आया और छाते को उड़ा ले ले गया.
चीकू घर से काफी दूर आ चुका था, इसलिए वह घर भी वापस नहीं जा सकता था. बारिश से बचने के लिए वह सड़क किनारे एक मकान की छत के नीचे खड़ा हो गया.
तभी चीकू ने अपने दोस्त ब्लैकी भालू को स्कूल आते देखा. ब्लैकी की बड़ी छतरी के नीचे वे खुशी से बातें करते स्कूल की ओर चलने लगे, लेकिन जब तक वे स्कूल पहुंचे तब भारी बारिश शुरू हो गई थी, प्रत्येक कक्षा में केवल एक या दो बच्चे आए थे.
प्रिंसिपल शेरसिंह ने उस दिन को 'रेनी डे' घोषित कर दिया. उन्होंने स्कूल में मौजूद सब बच्चों के पैरेंट्स को बुलाया और उन्हें बताया कि रेनी डे की वजह से स्कूल की छुट्टी हो गई है इसलिए वे अपने बच्चों को स्कूल से घर ले जाएं.
लेकिन चीकू के घर पर कोई भी फोन नहीं उठा रहा था. चीकू को छोड़ कर सब बच्चे घर चले गए थे.
शेरसिंह ने अपने औफिस का काम खत्म किया और फिर चीकू से पूछा, "चीकू, तुम कहां रहते हो?"
"सर, मैं नई कौलोनी 'लोकवन' में रहता हूं."
"अरे चीकू, मैं उस से आगे 'वन वाटिका' में रहता हूं. मेरी कार में बैठो, चीकू . मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ता हुआ आगे निकल जाऊंगा."
"नहीं सर, मैं पैदल ही घर चला जाऊंगा."
"चीकू, तुम इतनी तेज बारिश में भीग जाओगे और बीमार पड़ जाओगे, आओ, मेरे साथ चलो."
वह शेरसिंह के साथ कार में बैठ गया. बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी. बिजली चमक रही थी. जोर से बादल गरज रहे थे. सड़कें भी पानी से लबालब भर गई थीं. शेरसिंह कार सावधानी से चला रहा था.
तभी शेरसिंह ने पूछा, "चीकू, तुम्हारा घर कौन सा है?"
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