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महामारी के दौर में ऑनलाइन क्रांति
कोविङ-19 की वजह से ऑनलाइन शिक्षा ने भारत में पकड़ी रफ्तार, मगर इसे कामयाब बनाने के लिए कस्टमाइज लर्निंग मॉड्यूल और ज्यादा मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचे की ऑनलाइन सख्त जरूरत
बेसहारों के सहारे
लॉकडाउन में कराह रहे उद्योगों ने श्रमिकों के चुनाव में अहम बदलाव की ओर इशारा किया. रियायतें हासिल करते हुए नए कारोबारी तौर-तरीकों की भी आजमाइश
खुल गया संभावनाओं का आकाश
निजी क्षेत्र की भागीदारी से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को और ऊंचाइयां छूने में मदद मिल सकती है, जिससे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को इसके वैचारिक पक्ष पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिलेगा
एक युद्ध रणनीति की आवश्यकता
दूरदृष्टि और समयबद्ध रणनीति के अभाव में मेक इन इंडिया 2.0 के रक्षा उपकरण निर्माण का विफलता की पुरानी राह पर जाने का खतरा
कोरोना के खिलाफ योगी की जंग
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में उत्तर प्रदेश अब तक कोविड के खिलाफ जंग में बढ़त बनाए हुए है. लेकिन प्रशासन अब बहुत दबाव में है और प्रदेश में लौटकर वापस आ रहे लाखों प्रवासियों को संभालना बहुत मुश्किल साबित होने वाला
मोदी की नई स्वदेशी मुहिम
प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रु. के वित्तीय प्रोत्साहन और आत्मनिर्भरता के नजरिए का ऐलान किया, लेकिन क्या इससे कोविड की मार से पस्त अर्थव्यवस्था में जान लौट आएगी?
मिली-जुली कामयाबी
गरीबों के लिए 1.7 लाख करोड़ रु. के राहत पैकेज में प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण तो कामयाब, मगर बहुत-से दूसरे प्रावधान कई तरह की खामियों और कारगर अमल के अभाव में बेमानी
"एमएसएमई मरने की कगार पर थे, हमारा पैकेज उनके लिए संजीवनी बनेगा"
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) भारतीय अर्थव्यवस्था की जीवनशक्ति हैं. कोविड महामारी और उसकी वजह से हुए लॉकडाउन के कारण भारत के लाखों छोटे व्यवसायों का भविष्य अंधकारमय है और वे खत्म होने की कगार पर पहुंच गए हैं.
अब कितने तैयार हैं हम?
यह बात अब साफ हो चुकी है कि कोविड-19 इतनी जल्दी जाने वाला नहीं. आठ हफ्तों के लॉकडाउन ने इस वायरस का फैलाव रोकने में हमारी मदद की है. पर अभी भी लड़ाई खासी लंबी है, बता रही हैं
आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के निहितार्थ
सरकार उद्योग और कारोबार को रफ्तार देने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज जारी किया है. अब जो होना बचा है उसी पर सारा दारोमदार है
जिंदगी लॉकडाउन के बाद
लॉकडाउन के खत्म होने के साथ एक नई और चौकन्नी दुनिया में कदम रखते वक्त हमारी जिंदगी को परिभाषित करने वाले सामाजिक शिष्टाचार के नियम पूरी तरह बदल जाएंगे
जाएं तो जाएं कहां
प्रवासी मजदूरों की जिंदगी भारत में कभी आसान नहीं रही मगर लॉकडाउन के दौरान उनकी तकलीफ, अनदेखी और अकेलापन राष्ट्रीय शर्म से कम नहीं
वायरस की अबूझ पहेली
कोविड केवल वायरल न्यूमोनिया भर नहीं है, यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को प्रभावित कर रहा है और जो लोग पहले से ही दूसरी बीमारियों से ग्रसित हैं उनके जीवन को सर्वाधिक जोखिम में ला देता है
रहमत के फरिश्ते
अपनी जिंदगी और परिजनों से दूर, दो-टूक प्रतिबद्धता और दैवीय चमत्कार-सी कोशिशों के साथ कोविड के खिलाफ जंग में अग्रिम मोर्चे के इन डॉक्टरों पर चिकित्सा शास्त्र के नैतिक पहरुयों को नाज होगा
संकटग्रस्त शहर
मुंबई में कोरोनावायरस के सबसे ज्यादा मामले हैं. आखिर कैसे खड़ी होगी देश की आर्थिक राजधानी फिर से अपने पैरों पर?
संकमोचन का सम्मान
कोविड की चुनौती के बीच देश का हाल दुरुस्त रखने के लिए आम हिंदुस्तानियों की अदृश्य फौज ने मैदान में उतरकर मोर्चा संभाला
मदद को आगे बढ़ा हाथ
सऊदी अरब से 18 मार्च को लौटने के बाद श्रीनगर के एक अस्पताल में भर्ती हुई महिला जांच में कोविड-19 से पीड़ित मिली. वह कश्मीर में कोरोना की पहली रोगी थी. यह खबर पाते ही श्रीनगर जिला प्रशासन ने कठोर लॉकडाउन लागू कर दिया.
परदेस से लौटने की मजबूरी
खाड़ी देशों से केरल के आप्रवासियों का बड़े पैमाने पर लौटना मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की नए मौके खुलने की उम्मीद के लिए बन सकता है चुनौती
प्रवासी दुविधा
बिहार के पूर्वी चंपारण के मूल निवासी 30 वर्षीय मिस्त्री राकेश पासवान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में किसी तरह अपना गुजारा कर लेते थे. पर 25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद उनके सामने बेरोजगारी और भूख का संकट आ खड़ा हुआ.
जहान बचाने की जिम्मेदारी
मोदी सरकार के लिए मनरेगा कांग्रेस की विफलता का स्मारक था, लेकिन इसी पर है महामारी में गांव लौटते मजदूरों को रोजगार देकर अर्थव्यवस्था की नब्ज थामने की जिम्मेदारी
बदलाव का वक्त
ऑनलाइन कक्षाओं की संपूर्ण गाइड और उससे शिक्षा हासिल करने के सबसे बेहतर तौर-तरीके
मोर्चे पर सबसे आगे
कोरोना वायरस के खिलाफ असली लड़ाई का मैदान तो देश के जिले हैं, जहां प्रशासनिक अधिकारी महामारी से निपटने के दौरान गढ़ रहे हैं नई इबारतें
आपकी नौकरी कितनी सुरक्षित?
महामारी की मार से कोई काम-धंधा और उद्योग बचा नहीं मगर कुछ पर तो संकट अधिक गहरा. तनख्वाह कटौती, छंटनी या और भी बुरे हालात की आशंका
सारे सितारे जमीन पर
सिनेमाघर बंद, शूटिंग ठप और रिलीज टलने के साथ भारतीय फिल्म उद्योग बड़े धक्के से उबरने की कसमसाहट में. नुक्सान की थोड़ी-बहुत भरपाई के लिए निर्माताओं की नजर अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर
जांच किट पर आंच
चीनी रैपिड ऐंटीबॉडी टेस्टिंग किट पर मचे हंगामे ने 'खराब' उपकरण से लेकर लंबी आपूर्ति श्रृंखला और व्याख्या की असहमतियों और मुनाफाखोरी तक की अनेक परेशानियों का पर्दाफाश किया
बम पर बैठा मुंबई
समुद्र किनारे बसे इस शहर की सबसे घनी बस्ती अब कोविड-19 का हॉटस्पॉट है. सामाजिक दूरी न होना धारावी में गंभीर चिंता की वजह क्यों है
सुनहरी फसल
सरकार रबी की फसल से अधिक पैदावार के लिए हर उपाय अपनाने को तैयार, आखिर दांव पर लगी है 20 करोड़ किसानों आजीविका - और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की फौरी जरूरत
कोविड के अचूक इलाज की तलाश
डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि कोरोना का कहर और खतरनाक रूप ले सकता है तथा इसका टीका तैयार होने में अभी कम से कम एक साल का वक्त लग सकता है. भारत और दुनिया को कोविड-19 को हराने और उसक सटीक इलाज विकसित करने के लिए वक्त को मात देनी होगी
फिर शुरु करने की मुश्किलें
व्यवसायों को टुकड़ों-टुकड़ों में दोबारा खोलने की सरकार की योजना के पीछे इरादा तो अच्छा था पर जटिल दिशानिर्देशों, आपूर्ति श्रृंखला में उथल-पुथल और मांग में भारी कमी ने सब गड़बड़ कर दिया
कोरोना ने धीमा किया विकास का पहिया
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए हुए लॉकडाउन ने उत्तर प्रदेश की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का काम ठप कर दिया था. इन्हें फिर से रफ्तार देने के लिए सरकार ने कसी कमर