राजा जनक पूर्वजन्म में किन्हीं ऋषि के शिष्य थे । अष्टावक्रजी और जनक दोनों गुरुभाई थे । अष्टावक्रजी को योग मार्ग में रुचि थी और जनक को ज्ञान मार्ग में रुचि थी । कोई साधक विचार - प्रधान होता है तो कोई ध्यान-प्रधान होता है; अष्टावक्रजी ध्यानप्रधान थे और अन्य शिष्य विचार-प्रधान थे।
एक बार गुरु कहीं बाहर गये थे तो ये विचार - प्रधान शिष्यगण जो अपने को बुद्धिशाली मानते थे, उन्होंने अष्टावक्रजी का खूब मजाक उड़ाया, उनके साथ खूब छेड़खानी की । वे बेचारे घबरा गये, रो पड़े ।
गुरुजी जब आये तो उन्हें रोता हुआ देखकर पूछा : "बेटा ! क्या बात है ?"
هذه القصة مأخوذة من طبعة May 2023 من Rishi Prasad Hindi.
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर विशेष
धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।