सुश्री ओआरजी क्लास में पढ़ा रही थीं. उन की मजेदार कविता सुन कर छात्र ताली बजा रहे थे और उन के शब्दों को उन के साथसाथ ही दोहरा रहे थे. रंगबिरंगी पोशाक पहने छात्र क्लास में इंद्रधनुष की तरह लग रहे थे. सुश्री ओआरजी की अजबगजब तुकबंदी को उन के छात्र स्कूल ही नहीं, घर पर भी गुनगुनाते रहते थे. सुश्री ओआरजी भी यही चाहती थीं.
उन के चेहरे पर खिली मुसकान देख सुश्री ओआरजी को खुशी मिलती है. सुश्री ओआरजी के पढ़ाने का तरीका, चाहे वह कोई भी विषय क्यों न हो, चाहे वह कविता हो या गणित का कठिन सवाल, वह इतना आकर्षक था कि आसपास के सभी छात्र उन के स्कूल में दाखिला लेना चाहते थे, लेकिन अफसोस, सीटें सीमित थीं.
हालांकि यह स्कूल, जिसे उन्होंने 'जंगल स्कूल' नाम दिया था, अन्य नियमित व सामान्य स्कूलों से अलग था. इस में न तो कोई हौल था, न ही भवन और न ही प्रत्येक विषय को पढ़ाने के लिए टीचर. यहां तक कि छात्रों के बैठने की व्यवस्था भी खुली जगह में हरियाली के बीच डैस्क लगा कर की गई थी. सुश्री ओआरजी बंद कमरे में पढ़ाई करवाने में विश्वास नहीं रखती थीं. उन का मानना था कि छात्रों को प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेना चाहिए और ताजी हवा में सांस लेनी चाहिए. खुली जगह पर छात्र बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं.
इस स्कूल की एक और अनोखी बात यह थी कि कक्षाओं को आयु वर्ग के आधार पर वर्गीकृत नहीं के किया जाता था. सुश्री ओआरजी हमेशा मुसकराने वाली ओरंगुटान थी, जो उस स्कूल की मालकिन और प्रिंसिपल भी थीं. इस स्कूल को चलाने के लिए उन के पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे, इसलिए एक ही कक्षा में हर आयु वर्ग के छात्र थे.
Diese Geschichte stammt aus der September First 2023-Ausgabe von Champak - Hindi.
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