"सभी 5 या कुछ भी नहीं,” थाथा कह रहा था, "इसे लो या छोड़ दो. "
"लेकिन यह तो बड़े ही दुर्लभ हैं, " उस के दोस्त ने विरोध किया, "और तुम तो इस बहुत प्रशंसक हो."
"मेरे 2 भी उतने ही दुर्लभ हैं जितने तुम्हारे 5, थाथा ने कठोरता से कहा, "प्रशंसा योग्य होना संग्रह से भिन्न होता है."
"अब तक मणि की उत्सुकता बढ़ गई थी. वह जानना चाहता था कि थाथा और उस का दोस्त किन दुर्लभ चीजों के लिए लड़ रहे थे. वह धीरेधीरे दबे पांव कमरे में गया और उसने थाथा के कंधे के ऊपर से झांका.
"आप दोनों पुराने टिकटों के लिए लड़ रहे हैं?" उस ने हैरानी से पूछा. पूछा. "आप उन्हें रोजाना घर आने वाली डाक से ले सकते हैं. इस से भी बेहतर है कि आप सीधे डाकघर जा कर उन्हें खरीद सकते हैं. बेवकूफी बंद कीजिए. "
"देखो, बच्चे, " थाथा ने ठहाका लगा कर कहा, "तुम दो अनुभवी फिलैटेल्स्टि यानी डाक टिकट संग्रहकर्ताओं से बात कर रहे हो. हम डाक टिकट खाते हैं और उन्हीं की सांस लेते हैं."
"फिलैटेलिस्ट ? वे कौन हैं?" मणि ने पूछा.
थथा के दोस्त ने विस्तार से बताया, "जो लोग टिकट संग्रह करते हैं, उन्हें 'फिलैटेलिस्ट' कहा जाता है और इस शौक को 'फिलेटेल' कहते हैं. "
"ओह, तो आप हर पत्र से टिकट फाड़ कर निकाल लेते हैं? क्या आप इस तरह संग्रह करते हैं?” मणि हैरानी में पड़ गया था.
थाथा ने हंसते हुए कहा, "यह तो उस का एक हिस्सा है, लेकिन सभी टिकट लिफाफों पर नहीं मिलते. विशेष टिकट बाल दिवस, स्वतंत्रता दिवस या अन्य त्योहारों के अवसरों पर जारी किए जाते हैं. कुछ शताब्दी के अवसरों पर जारी किए जाते हैं तो अन्य सहयोग के लिए निकाले जाते हैं. ऐसे टिकट शहर के मुख्य डाकघर के फिलेटली अनुभाग से खरीदे जाते हैं."
Diese Geschichte stammt aus der October Second 2024-Ausgabe von Champak - Hindi.
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