1 भुजंगासन
इस आसन में हमारे शरीर की आकृति फन उठाए 'भुजंग' के समान होती है, इसलिए हमारे योगियों ने इसका नाम भुजंगासन रखा है।
विधि: पेट के बल लेट जायें, एड़ी, पंजे, जंघा आपस में मिले हुए होने चाहिए। पंजे बाहर की ओर तान कर रखें, दोनों हाथ को कंधे के बगल में रखें, कोहनियां जमीन को स्पर्श करती हुई होनी चाहिए। अब अपने कमर तक के भाग को हाथों का सहारा देते हुए धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठायें, हमारी दोनों कोहनियां कुछ मुड़ी हुई रहेंगी, गर्दन पीछे की ओर। कुछ देर इसी अवस्था में रुकें, ध्यान रहे इस आसन को करते वक्त श्वास की गति सामान्य होनी चाहिए और अपनी क्षमता से ज्यादा आसन में ना रहें और फिर धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में वापस आयें। इस आसन को कम से कम 5 चक्रों का अभ्यास अवश्य करें।
लाभ व प्रभाव: इस आसन के अभ्यास से कमर दर्द, गर्दन दर्द, साइटिका जैसे रोगों से छुटकारा मिलता है। टांसिल, थायराइड ग्रंथि स्वस्थ बनी रहती है। पेट व आंत के विकार दूर होते हैं। पीठ, छाती, हृदय, गर्दन, कंधों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। लिवर को लाभ मिलता है। यह आसन मधुमेह में रामबाण का काम करता है। महिलाओं की अंडाशय और गर्भाशय को मजबूती प्रदान करता है। मेरुदण्ड लचीला बनाता है। जिनकी नाभि बार-बार गिरती है, उनके लिए बहुत उपयोगी है।
सावधानियां: हर्निया, अल्सर और हृदय रोगी इस आसन का अभ्यास न करें। गर्भवती महिलाएं योग गुरु के सानिध्य में इसका अभ्यास करें।
2 गोमुखासन
इस आसन में हमारे शरीर की आकृति गाय के मुख समान हो जाती है। इसलिए हमारे योगियों ने इस आसन का नाम गोमुखासन रखा है।
Diese Geschichte stammt aus der February 2024-Ausgabe von Sadhana Path.
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