स्वामीजी यहाँ आए तो विविदिषानन्द बनकर थे, पर यह खेतड़ी ही था जिसने उन्हें विश्वविख्यात विवेकानन्द का नाम दिया। यहीं से स्वामीजी के अमेरिका स्थित शिकागो की विश्व धर्म संसद में जाने की अधिकांश व्यवस्था भी हुई। यह भी राजस्थान की सभ्यता और संस्कृति का ही प्रभाव था कि विवेकानन्द ने अपनी पारम्परिक बंगाली व परिव्राजक संन्यासी की वेशभूषा के स्थान पर राजस्थानी साफा ( टरबन) और चोगा - कमरखी का आकर्षक वेश धारण किया, जो स्वामी विवेकानन्द की स्थायी पहचान बना। वे राजस्थानी परम्परानुसार भूमि पर बैठकर पट्टे पर ही भोजन किया करते थे। यह भी राजस्थान का ही सौभाग्य रहा कि रामकृष्ण मिशन जैसी जनकल्याणकारी संस्था के प्रारम्भ का प्रथम प्रयास भी यहीं से हुआ। विवेकानन्द स्वयं कहते थे कि 'यदि खेतड़ी के राजा न मिले होते तो शायद मैं वह सब नहीं कर पाता जो कर पाया हूँ।' इसीलिए उन्होंने अपने सहयोगी अखण्डानन्द आदि से भी राजस्थान से जुड़े रहने का आग्रह किया था।
Diese Geschichte stammt aus der January 2023-Ausgabe von Kendra Bharati - केन्द्र भारती.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष