“हमारी जमीन और हमारी थाली में विविधता हो नी चाहिए। अगर खेती इकहरी फसलवाली हो जाए, तो इसका बुरा असर हमारे और हमारी जमीन के स्वास्थ्य पर पड़ेगा। मोटे अनाज हमारी खेती और हमारे भोजन की विविधता बढ़ाते हैं। ‘मोटे अनाजों के प्रति सजगता बढ़ाना' इस आंदोलन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। लोग और संस्थाएं, दोनों ही बड़ा प्रभाव छोड़ सकते हैं। संस्थाओं के प्रयास से मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है और समुचित नीतियां अपनाकर इनकी फसल को फायदेमंद बनाया जा सकता है। दूसरी ओर, लोग भी स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए मोटे अनाजों को अपने आहार में शामिल करके इस पृथ्वी के अनुकूल विकल्प चुन सकते हैं। मुझे विश्वास है कि २०२३ में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष का यह आयोजन सुरक्षित, टिकाऊ और स्वस्थ भविष्य की दिशा में एक जन आंदोलन को जन्म देगा।"
पिछले कुछ वर्षों से लोगों में अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता बढ़ी है, लेकिन खासकर कोरोना के बाद से यह चेतना चिन्ता में बदल गई है। लोगों ने अनुभव किया है कि अगर खानपान और जीवनशैली में बदलाव नहीं लाया गया, तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। यही वजह है कि ज्वार, रागी, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, कुट्टू, जैसे अनेक मोटे अनाज की पूरी दुनिया में डिमांड बढ़ी है।
२०१८ में मनाया गया राष्ट्रीय मिलेट वर्ष
लेकिन भारत ने तो इस चेतना की अलख काफी पहले से ही जगानी शुरू कर दी है। २०१४ में जब केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार सत्ता में आयी, तभी से इस दिशा में प्रयास किये जाने लगे थे। इन्हीं प्रयासों का परिणाम था वर्ष २०१८ को सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय मिलेट वर्ष' घोषित किया गया। ऐसा करने का द्देश्य लोगों में मिलेट के उपयोग को बढ़ावा देना, इनके उत्पादन को प्रोत्साहित करना और इनकी मांग बढ़ाना था। इसके काफी सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। मिलेट के वैश्विक उत्पादन में १८ प्रतिशत भागीदारी के साथ भारत आज विश्व का सबसे बड़ा मिलेट उत्पादक देश बन चुका है और प्रति हेक्टेयर उत्पादकता की दृष्टि से भी दुनिया के मिलेट उत्पादक देशों में दूसरे स्थान पर आ चुका।
बढ़ रहा है उत्पादन और उत्पादकता
Diese Geschichte stammt aus der July 2023-Ausgabe von Kendra Bharati - केन्द्र भारती.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष