(श्री गुरुजी गोलवलकर द्वारा श्री लोकमान्य तिलकजी के प्रति लिखा गया यह लेख २२ जुलाई, १६५६ को पुणे से प्रकाशित होनेवाले सुप्रसिद्ध मराठी दैनिक 'केसरी' के तिलक जन्म-शताब्दी विशेषांक में प्रकाशित हुआ है।)
भारत के दीर्घकालीन इतिहास में उन्नति अवनति, स्वातंत्र्य-पारतंत्र्य, ज्ञान-अज्ञान आदि का चढ़ाव-उतार अनेक बार दिखाई देता है। अनेक अवसरों पर राष्ट्र जीवन में विस्मृति, अपने जीवनादर्शों से स्खलन, परम्परा से विच्छिन्नता दिखाई दी है। परन्तु चारों ओर घना अंधकार भयावह होकर तथा बुद्धिमान लोगों के मन में राष्ट्र का विनाशकाल समीप आने की आशंका पैदा होकर, जब सब ओर व्याकुलता और निराशा छा जाती है तब ऐसी आपात स्थिति में किसी न किसी अलौकिक महापुरुष का आविर्भाव होता है, जो जीवनादर्शों की स्थापना कर खंडित हुई परम्परा के प्रवाह का, भूतकाल से भविष्यकाल की आकांक्षाओं का योग वर्तमान के माध्यम से कर तथा राष्ट्र-विस्मरण को दूरकर, उन्नति के पथ पर समाज को ला खड़ा करता है। वह ज्ञान प्रकाशित करता है, अंधकार में प्रकाश की किरणें फैलाता है तथा सर्वंकष उन्नति की अदम्य आशा का निर्माण कर, समाज का मार्ग प्रशस्त करता है। कुमारिल भट्ट, शंकराचार्य इसी कोटि के अति मानवी महापुरुष थे, जिन्होंने बौद्ध मत के कुहरे में आत्म-विस्मृत तथा उसके कारण अनीति, भ्रष्टाचार, इतना ही नहीं तो राष्ट्रद्रोह में भी प्रवृत्त होनेवाले समाज को पुनर्जागृत कर, उसमें राष्ट्रज्ञान और परम्परा की पुनर्स्थापना की।
स्वराज्य संस्थापक, हिन्दूपदपादशाही के निर्माता छत्रपति श्री शिवाजी महाराज इसी कोटि की विभूति थे, जिन्होंने विदेशी शासन के चंगुल में फंसे, अपना स्वत्व भूले हुए तथा दासता में ही आनंद माननेवाले समाज का पतन रोका तथा उसमें निर्भय, शौर्ययुक्त राष्ट्रभक्ति जागृत की।
दासता का विष
Diese Geschichte stammt aus der July 2023-Ausgabe von Kendra Bharati - केन्द्र भारती.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष