काकोरी क्रान्ति भारतीय स्वाधीनता संग्राम की एक प्रमुख घटना है जिसमें युवा क्रान्तिकारियों ने भारत को स्वाधीन कराने के लिए सरकारी खजाने को लूटकर उससे हथियार खरीदने एवं अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए अंजाम दिया था। जो धन भारतीयों का था उसे अंग्रेज कर के रूप में प्राप्त करके भारत को पराधीन रखने में खर्च कर रहे थे। देशभक्त क्रान्तिकारी वीर एकजुट होकर ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने के लिए लामबंद हुए। ६ अगस्त, १६२५ को घटी ऐतिहासिक ट्रैन डकैती जो काकोरी नामक स्थान पर घटित हुई उसमें जर्मनी के बने चार माउजर पिस्तौल काम में लाये गए थे। इन पिस्तौलों में जो कारतूस उपयोग में लाये गए थे वे प्रेमकृष्ण खन्नाजी के शस्त्र लाइसेन्स पर ख़रीदे गए थे जिसके पर्याप्त साक्ष्य मिल जाने के कारण इन्हें ५ वर्ष की कठोर कैद की सजा हुई थी। २ वर्ष तक काकोरी काण्ड का मुकदमा चला। अतः कुल मिलाकर सन् १६२५ से १६३२ तक ७ वर्ष कारागर में श्री खन्नाजी ने बिताये।
श्री प्रेमकृष्ण खन्नाजी का जन्म २ फरवरी, १८६४ को लाहौर में हुआ था। उनके दादा श्री हरनारायण खन्नाजी सिविल सर्जन थे एवं उनके पिता श्री रामकृष्ण खन्ना ब्रिटिश इंडियन रेलवे में चीफ डिवीजनल इंजीनियर थे। उन्हें रायबहादुर की उपाधि प्राप्त थी। दादा-पिता की अंग्रेज भक्ति भी बालक प्रेमकृष्ण को राष्ट्रप्रेम से दूर न कर सकी। वे बाल्यकाल से ही क्रान्तिकारियों की जीवनियां और विप्लवी आन्दोलनों के समाचार पढ़ने में रुचि रखते थे। विद्यालय की पढ़ाई में उनका मन प्रायः कम ही लगता था। अतः जब वे बड़े हुए तब उनके पिता ब्रिटिश सरकार में अच्छे रसूख होने के कारण उन्हें रेलवे कम्पनी में ठेकेदार का काम दिलवा दिया जिससे उनकी आजीविका का स्थायी प्रबंध हो सके एवं उनका विवाह किसी अच्छे परिवार की सुशील कन्या से किया जा सके।
Diese Geschichte stammt aus der July 2023-Ausgabe von Kendra Bharati - केन्द्र भारती.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष