देवनागरी लिपि में जहाँ भी कुछ लिखा हो, चाहे रेल स्थानकों पर या फिर विवेकानन्दपुरम् में, द्रविड़ कलगम् और द्रविड़ मुन्नेट्र कलगम् के कार्यकर्ता आकर उसमें डामर लगा देते थे। केवल DK और DMK को ही क्यों दोष दें, अनेक जाने-माने लोग भी इस मुद्दे पर सम्भ्रमित थे। सन १६७८ में स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण मेरा निवास एक परिवार में था। वह एक धार्मिक परिवार था, नियमित रूप से पूजा, स्तोत्र पठन, उपवास आदि का पालन घर में होता था। एक बार कुछ चर्चा चल रही थी और अचानक उस घर की अच्छी पढ़ी-लिखी और उच्च पद पर काम माताजी ने कहा, करनेवाली “यदि वे अपने ऊपर हिन्दी ऐसे थोपेंगे तो हम भारत से अलग हो जाएंगे।" मेरे लिए वह बड़ा आघात था। मैं केवल २० वर्ष की थी, महान विचार और सपनों से प्रभावित थी, और किसी को पहली बार भारत को तोड़ने की भाषा करते हुए सुन रही थी। मुझे याद है, मैं उस रात सो नहीं पायी। मैं ठीक से अंग्रेजी बोल भी नहीं पाती थी और मेरी उनसे इस विषय पर बोलने की योग्यता भी नहीं थी। पर तब पहली बार मुझे लगा कि कर्मकाण्ड धार्मिकता अलग-अलग है। धर्म भारत का प्राण है। जो धर्म का पालन करता है, वह भारत को तोड़ने की भाषा नहीं करेगा। धर्म पालन में भारत-भक्ति अन्तर्निहित है। धर्म कर्मकाण्ड नहीं, आध्यात्मिकता है। इसलिए हम देखते हैं कि स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, श्रीमन्त श्री शंकरदेव, आदि शंकराचार्य, श्री नारायण गुरु, गुरु गोविन्द सिंह एवं अनेक आध्यात्मिक महापुरुष देशभक्त थे और राष्ट्र-पुनरुत्थान के लिए उन्होंने काम किया।
बाद में वर्ष १६८१ में, जब विवेकानन्द केन्द्र के आसपास के लगभग ४० गावों के बच्चों के लिए पाठशाला शुरू हुई तो यह चर्चा हुई कि हिन्दी भाषा सिखाई जाए या नहीं। हम सब का मत था कि कम से कम वीं तक हिन्दी सिखाई जाए। पर हमें हिन्दी विरोधकों का सामना करने के लिए अपने आप को तैयार करना पड़ा। मुझे प्रधानाचार्य का दायित्व दिया गया था। एक दिन कुछ युवा पाठशाला आए। एक ने मुझसे पूछा, “प्रिन्सिपल कहाँ है?”
Diese Geschichte stammt aus der July 2023-Ausgabe von Kendra Bharati - केन्द्र भारती.
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष