तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नैको ऋषिर्यस्य मतं प्रमाणम्।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः॥
'तर्क की कहीं स्थिति नहीं है, श्रुतियाँ भी भिन्न-भिन्न हैं, एक ही ऋषि नहीं हैं कि जिनका मत प्रमाण माना जाय तथा धर्म का तत्त्व गुहा में निहित है अर्थात् अत्यंत गूढ़ है अतः जिससे महापुरुष जाते रहे हैं वही (सच्चा) मार्ग है।'
( महाभारत, वन पर्व : ३१३.११७ )
महापुरुष जिस रास्ते से गये वह सर्वोपरि है। सद्गुरु हयात मिल जायें तो वे आपका आत्मसाक्षात्कार का काम बना देते हैं; मेरा काम भी मेरे सद्गुरु की कृपा से ही हुआ।
गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं :
तन सुखाय पिंजर कियो, धरे रैन दिन ध्यान।
तुलसी मिटे न वासना, बिना विचारे ज्ञान॥
स्मृति योग के बिना पूर्णता नहीं
दुनिया के बड़े-बड़े बुद्धिमान, ब्रह्मवेत्ता के आगे बबलू हैं। प्रत्युत्पन्न मति (तत्काल सही जवाब या प्रतिक्रिया देने में सक्षम मति), यह-वह... सब ठीक है अपनी जगह पर किंतु यह स्मृति तो सर्वोपरि है। प्रत्युत्पन्न मति के धनी थे बीरबल परंतु अकबर के गुलाम बने लेकिन जिसको आत्मस्वरूप की स्मृति है उनके आगे अकबर तो क्या बड़े-बड़े चक्रवर्ती भी दास बन जाते हैं, इन्द्रदेव उनके आगे नतमस्तक होते हैं, उनके शिष्यों का भी सम्मान करते हैं। अब और क्या कहना!
Diese Geschichte stammt aus der December 2022-Ausgabe von Rishi Prasad Hindi.
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।