महर्षि बोधायन के पास कई विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे। उनका आश्रम विद्यार्थियों से भरा रहता और वे उनके सर्वांगीण विकास पर विशेष ध्यान देते थे।
एक दिन वे शिष्यों की प्रार्थना पर आश्रम के निकट स्थित एक नदी के तट पर गये। शिष्य गुरु के साथ नदी में बड़ी देर तक तैरते रहे। फिर सब तट पर आये और भोजन के बाद वहीं विश्राम करने लेट गये। थोड़ी देर बाद आश्रम जाने हेतु सब एकत्र हुए पर शिष्य गार्ग्य का कुछ पता न था। सभी उसको खोजने लगे। महर्षिजी उसे खोजते हुए वहाँ जा पहुँचे जहाँ गार्ग्य लेटा था। उन्होंने कहा: "उठो वत्स ! हमें आश्रम चलना है।"
Diese Geschichte stammt aus der April 2023-Ausgabe von Rishi Prasad Hindi.
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।