रे मनुज! श्रद्धा करो
Rishi Prasad Hindi|August 2024
मनुष्य-जीवन में श्रद्धा का होना अत्यंत जरूरी है। ‘श्रीमद्भगवद्गीता' में भी कहा गया है : श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं... (४.३९)
रे मनुज! श्रद्धा करो

यदि मनुष्य को ईश्वर एवं ईश्वरप्राप्त महापुरुषों में दृढ़ श्रद्धा हो जाय, तत्परता एवं संयम आ जाय तो फिर उसके लिए मुक्ति पाना सहज हो जाता है। स्वामी रामतीर्थ अपने सत्संगों में अक्सर यह दृष्टांत दिया करते थे :

शास्त्रार्थ हेतु एकत्रित हुए विद्वानों की सभा में चर्चा हो रही थी कि जीव का कल्याण कैसे हो? जीवन पूर्ण आनंदित कैसे हो? जीवन का आखिरी रहस्य कैसे खुले? जीवन का सत्य स्वरूप क्या है?

सभागृह में तोते का एक पिंजरा भी टँगा हुआ था। विद्वान लोग बारह दिन से शास्त्रार्थ और चर्चा कर रहे थे। उन विद्वानों में से एक विद्वान किन्हीं संत की बात बता रहा था कि उन संत के पास बैठने से मन शांत होने लगता है, व्यक्ति निर्बंध होने लगता है। उनके पास बैठने से व्यक्ति के जीवन में कुछ अलौकिक सुख-शांति उभरने लगती है। उन संत के बारे में सुनते ही सभा के विद्वानों को लक्ष्य करके तोते ने कहा : "हे सभा के विद्वानो ! तुम उन संत से मेरी मुक्ति का उपाय पूछकर आना। उनसे पूछना कि मैं बंधन मुक्त कब होऊँगा?”

एक विद्वान ने उसे आश्वासन देते हुए कहा : "मैं उन संत से तुम्हारी मुक्ति के बारे में जरूर पूछकर आऊँगा।”

Diese Geschichte stammt aus der August 2024-Ausgabe von Rishi Prasad Hindi.

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