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अन्नदाता की पीड़ा और किसान आंदोलन
किसानों की आय दोगुनी करने के वादे के साथ मोदी सरकार सत्ता में आई थी. आय दोगुनी तो नहीं हुई पर बड़ी संख्या में आज किसान दूसरी बार सड़कों पर आंदोलन करने को मजबूर हो गए हैं. वे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाना चाहते हैं परंतु मामला फंसता नजर आ रहा है.
इंडिया ब्लौक क्या ले रहा है आकार
इंडिया ब्लौक ने फीनिक्स पक्षी की तरह अपने पंख दोबारा खोले तो हैं लेकिन उड़ान वह कहां तक कर पाएगा, यह कहना मुश्किल है. जिस पौराणिक माहौल में भाजपा 400 पार का दम भर रही है, लोकतांत्रिक माहौल के तहत विपक्ष उसे कितनी चुनौती दे पाएगा, यह भी अगर मुट्ठीभर सवर्णों को ही तय करना है तो यह चुनाव कतई दूसरे मुद्दों के इर्दगिर्द नहीं होने वाला.
एक कलाकार में कई प्रतिभाएं जन्मजात होती हैं
पुराने समय में फिल्मी परदे पर वही ऐक्टिंग करता था जिस में गाने की कला भी थी. बीच के दौर में प्लेबैक ने कई प्रतिभाओं के गायन कौशल को दबा दिया. सिर्फ उन की ऐक्टिंग को ही तवज्जुह मिली. लेकिन वह दौर एक बार फिर लौट रहा है जहां कलाकार अपनी तमाम कलाओं का प्रदर्शन एकसाथ कर रहे हैं.
हीरोइनों की प्लास्टिक सर्जरी और उन का निखरा रूप
प्लास्टिक सर्जरी से हीरोइनों को खूबसूरत लुक्स मिले हैं और वे अब कामयाब हैं. यही वजह है कि प्लास्टिक सर्जरी का व्यापार बढ़ता जा रहा है. हालांकि, कई बार इस का असर गलत होने पर मृत्यु तक हो सकती है.
पतिपत्नी एकदूसरे के पूरक बन कर जिंदगी को संवारे
पतिपत्नी आपसी रिश्तों में एकदूसरे के पूरक बन कर आगे बढ़ें. एकदूसरे पर हावी होने के बजाय सहयोगी बनें, तभी यह रिश्ता खूबसूरती से आगे बढ़ेगा.
जिम में मसल्स बनाने के चक्कर में किडनी की बीमारी मोल ले रहे युवा
प्रोटीन पाउडर पीपी कर आज बड़ी संख्या में युवा क की बीमारी और हाई ब्लडप्रैशर का शिकार हो रहे हैं. कम उम्र में ही दिल की बीमारी और अन्य साइड इफैक्ट्स भी सामने आ रहे हैं और इस की वजह है वह प्रोटीन शेक, जो बिना डाक्टरी सलाह के लिया जा रहा है.
घर चलाने वाली महिला के काम को कम न आंकें
जब तक औरत यह नहीं समझेगी कि घर सिर्फ उस का नहीं, बल्कि उस के पति और घर के अन्य सदस्यों का भी है और उन सब को भी घर के कामों को उसी तरह करना चाहिए जैसे कि वह करती है, तब तक पितृसत्तात्मक समाज औरत को मुफ्त का मजदूर बना कर उस को रौंदता रहेगा.
रिश्तों पर असर डालती बुलडोजर संस्कृति
उत्तर प्रदेश में बुलडोजर खूब चर्चा में रहा है. वहां योगी आदित्यनाथ की दोबारा सरकार आने के साथ ही बुलडोजर का असर ज्यादा ही दिखना शुरू हो गया. प्रदेश में अवैध निर्माण हो या फरार अपराधी की संपत्ति, सब पर बुलडोजर चलाया गया है. मगर क्या यही बुलडोजर सोच आज हमारे समाज और रिश्तों पर भी हावी नहीं हो गई है?
डकैत और डकैती खत्म नहीं हुए हैं बस तरीके बदल गए हैं
डकैती के पेशे में बदलाव आए हैं, वह खत्म नहीं हुई है. अब दौर साइबर डकैतों और डकैती का है जिस ने देशभर में चंबल जैसे कई बीहड़ पैदा कर दिए हैं जिन में कई रामसहाय गुर्जर लैपटौप लिए आप को लूटने की साजिश रच रहे होंगे.
राजनीति में फिल्मी कलाकार दक्षिण के हीरो उत्तर के जीरो
राजनीति में जहां उत्तर भारत के हीरो अपना प्रभाव छोड़ने में सफल नहीं होते, वहीं दक्षिण भारत के कलाकार अच्छी राजनीति कर के समाज की सेवा करते हैं. एम जी रामचंद्रन से ले कर विजय तक इस के कई उदाहरण हैं.
शहरियों, सरकार, आढ़तियों और कंपनियों से लूटे जा रहे किसान आंदोलन पर
सरकार किसानों के उत्पीड़न के लिए कानून बनाने का काम करती है. किसान न तो मुद्दे समझ पा रहे हैं न संगठित हो कर सरकार की मुखालफत ही कर पा रहे हैं.
राज चलाना भूली पार्टी व मंदिर में झूली सरकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहले अयोध्या में राम मंदिर, फिर अबुधाबी में मंदिर और अब कल्कि धाम में मंदिर का उद्घाटन करना बताता है कि वे धार्मिक कामों में लगे हैं और देश का राजकाज उन का कार्यालय पीएमओ चला रहा है.
चक्रवर्ती मानसिकता के चक्रव्यूह में भाजपा?
देश की राजनीति आम चुनाव के पहले बेतुकी बातों के चक्रव्यूह में फंस गई है. भाजपा की सत्ता की हवस अब सिर चढ़ कर बोल रही है. पौराणिक भाषा में कहें तो वह उचितअनुचित का भी विचार नहीं कर पा रही. उस ने तो बस राजसूय यज्ञ का घोड़ा छोड़ दिया है जिसे पकड़ कर चुनौती देने वाले ही घोड़े को काजू बादाम खिला रहे हैं. इस खेल में नुकसान सिर्फ जनता का हो रहा है जिस से किसी को कोई सरोकार नहीं.
लोकतंत्र अभी सांसे हैं कोर्ट की खरीखरी
देश में मौजूदा समय में धनबल की सारी ताकत सिर्फ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में जा रही है, लोकतंत्र से खिलवाड़ हो रहा है और तानाशाही बढ़ रही है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का इलैक्टोरल बौंड्स को असंवैधानिक घोषित कर रद्द करने का दूरदर्शी फैसला डैमोक्रेसी को बचाने की दिशा में बेहद अहम कदम है.
क्या मुद्दों से दूर हो रही हैं हिंदी फिल्में
फिल्में सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए नहीं होतीं, बल्कि इन का गहरा असर लोगों के दिलोदिमाग पर भी पड़ता है, खासकर युवाओं पर. लेकिन आजकल मारधाड़, हिंसा, बलात्कार से भरी फिल्में आम आदमी के रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े मुद्दों को कोई जगह नहीं देती हैं, इसलिए वे लंबे समय तक चल नहीं पातीं.
थप्पड़ स्त्री के वजूद का अपमान
एक महिला को चोट पहुंचाने के पुरुष अनेक बहाने बना सकता है जैसे कि वह अपना आपा खो बैठा या फिर वह महिला इसी लायक है या वह होश में नहीं था परंतु वास्तविकता यह है कि वह हिंसा का रास्ता केवल इसलिए अपनाता है क्योंकि वह स्त्री को अपनी संपत्ति समझता है और उस के वजूद पर अधिकार जमाना चाहता है.
सोशल मीडिया पर शोक संदेश परिवार के कितने काम के
हमारी सारी सामाजिकता सोशल मीडिया तक सीमित हो गई है. खासकर जब बात शोक संदेश की होती है तो सोशल मीडिया पर इन की बाढ़ आ जाती है. कई बार फोटो पर फूलमाला देखते ही लोग शोक संदेश देने लगते हैं, जबकि मसला शोक का नहीं होता. कई तो शोक संदेश पर लाइक का बटन भी दबा देते हैं. क्या परेशान परिवार को इस से राहत मिलती है?
लिवइन रिलेशनशिप में बच्चों की कस्टडी
लिवइन रिलेशनशिप में बच्चों की कस्टडी का मामला उलझनभरा होता है. यह रिश्ता भले ही कानूनी रूप से स्वीकार कर लिया गया है मगर इस से जुड़े कुछ कानून अभी भी स्पष्ट नहीं हैं.
गुरुघंटालों की करतूतें
चिन्मयानंदों को उन के कुकृत्य की सजा इसलिए नहीं मिलती क्योंकि अपने अंधभक्तों की बेशुमार संख्या दिखा कर वे सरकार को दबाव में रखते हैं. वोट खिसकाने की धमकी दे कर वे अपने पक्ष में फैसले करवाने के लिए सरकार को बाध्य करते हैं.
बढ़ती हुई तोंद आकर्षण पर ग्रहण
महिला हो या पुरुष, हर कोई खुद को खूबसूरत और आकर्षक दिखाना चाहता है. मगर बढ़ती हुई तोंद इस आकर्षण पर ग्रहण की तरह नजर आती है.
भारत रत्न पुरस्कारों के एवज में राजनीतिक बंदरबांट
भारत रत्न अब प्रदान नहीं किया जा रहा बल्कि बांटा जा रहा है जिस से इस का महत्त्व खत्म हो रहा है. आम लोगों की दिलचस्पी भी इस से कम हो रही है. इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान को दिए जाने के कोई पैरामीटर्स भी नहीं हैं, इसलिए भी इस का औचित्य खत्म हो रहा है.
क्यों खास होता है विधानसभा अध्यक्ष
किसी दल के पास सरकार चलाने का स्पष्ट बहुमत न हो, तो विधानसभा अध्यक्ष की उपयोगिता बढ़ जाती है. सत्ता पक्ष अपनी पसंद का विधानसभा अध्यक्ष चाहता है. बिहार में नीतीश कुमार के बहुमत साबित करने से पहले पुराने विधानसभा अध्यक्ष को हटा कर नया विधानसभा अध्यक्ष चुना गया.
हल्द्वानी हिंसा कहीं धर्मयुद्ध का आगाज तो नहीं
हल्द्वानी की हिंसा को हलके में लेने की भूल भारी भी पड़ सकती है. यह महज कानूनी मुद्दा नहीं है बल्कि इस के पीछे ऐसा बहुतकुछ और भी है जो हर किसी को नजर नहीं आ रहा. यह असल में एक तरह का धर्मयुद्ध है और युद्धों के अंजाम कभी किसी के हित में नहीं रहे.
जेलों में महिला कैदी हो रही हैं गर्भवती
भारत की जेलों में 18 से 50 साल उम्र की 80 फीसदी महिला कैदी हैं. देश की 1,401 जेलों में से केवल 18 में महिला कैदियों के लिए अलग रहने की व्यवस्था है. बाकी जेलों में महिला कैदी पुरुषों के साथ साझा जेल में रहने को मजबूर हैं, जहां बीच में केवल एक दीवार के सहारे उन्हें अलग किया गया होता है.
पीठ पर लदे सपने हुए राख
डिलीवरी बौयज के रूप में युवाओं की एक बड़ी संख्या ऐसे काम में अपनी जवानी झोंक रही है जिसे एक तरफ समाज हिकारत की नजर से देखता है तो दूसरी तरफ इस तरह की नौकरी कुछ सालों की ही होती है. इस में न तो बहुत ज्यादा आमदनी है, न प्रोविडेंट फंड, न पैंशन और न ही हैल्थ बीमा.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सफलता के लिए विदेशी ऐक्ट्रेसेस के संघर्ष
बौलीवुड में सफल अभिनेत्री बनना आसान काम नहीं जबकि वे ऐक्ट्रैस विदेशी हों और हिंदी भाषा का ज्ञान न हो लेकिन इन बातों के बावजूद कई अभिनेत्रियों ने अपनी अदाकारी से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई है.
रैस्टोरेंट या ढाबा कीमत जितनी उतनी सुविधा
महंगे होटल व सस्ती जगहों में साफसफाई की व्यवस्था और सुविधाएं अलगअलग होती हैं. ऐसे में यह आप को तय करना है कि आप ज्यादा रुपए खर्च करना चाहते हैं या कम में ही काम चला लेंगे.
मूत्र असंयमता और इंटरस्टिम टैक्नोलोजी
अपने मूत्राशय पर नियंत्रण न रख पाना आम समस्या तो है पर कई बार यह शर्मिंदगी दे जाती है. लेकिन यह कोई लाइलाज समस्या नहीं, इसे नियंत्रित किया जा सकता है इंटरस्टिम तकनीक से क्या है यह तकनीक, जानें.
अंधविश्वास और स्वार्थ का गठजोड़ देश के लिए नुकसानदेह
पोंगापंथी, रूढ़िवादी, अंधविश्वासों में उलझा जनशक्ति वाला समाज स्वार्थियों के भ्रमजाल में फंस देश की प्रगति में कोई योगदान नहीं दे पाता, तर्क और विज्ञान से वास्ता न रख वह अंधानुकरण को ही अपनाता है.
लोकतंत्र में डर कैसा
जिस लोकतंत्र को बेखौफ होने की गारंटी माना जाता है, लोग उसी में ज्यादा डरे हुए हैं क्योंकि इस में गहरे तक धर्म ने जड़ें जमा ली हैं. इस के दूरगामी खतरे और नुकसान होंगे लेकिन उन की परवा किसे है? भाग्यवादी लोग हमेशा से ही धर्म के हाथों ठगे व छले जाते रहे हैं और आज भी यही हो रहा है.