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इलैक्टोरल बौंड चुनावी दानपेटी
भारतीय जनता पार्टी की सरकार इलैक्टोरल बौंड स्कीम यह कह कर लाई थी कि इस से कालाधन समाप्त होगा, मगर यह स्कीम तो भ्रष्टाचार को कानून का जामा पहना कर उसे वैध बनाने की करतूत साबित हुई. इस के तहत तमाम कंपनियों से करोड़ों रुपयों की धनउगाही की गई और बदले में उन को बड़ेबड़े धंधे दिए गए. सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती के बाद इस भ्रष्ट स्कीम के रहस्य खुल चुके हैं.
रिऐलिटी शोज से बौलीवुड सैलिब्रिटीज कैसे कमाते हैं इजी मनी
बौलीवुड में कलाकारों के पास पैसा कमाने का माध्यम सिर्फ फिल्म ही नहीं है, इस के अलावा भी कई तरीके हैं जिन से वे पैसा छापते हैं.
शादियों का होने लगा है फिल्मीकरण
रुपहले परदे पर जिस तरह शादी के दौरान माहौल बनाया जाता है, अब उस की नकल आम लोग करने लगे हैं. वैडिंग फोटोग्राफी के बदलाव की वजह से अब न्यू कपल्स भी सितारों की तरह जमीन पर उतरते दिख रहे हैं.
गाड़ियों में दिखाते हैं मर्दानगी
देश में मर्दानगी दिखाने के हमेशा से बहुत सारे तौरतरीके लोग अपनाते रहे हैं. आजकल बड़ी गाड़ियों और बाइक्स के जरिए सड़कों पर मर्दानगी दिखाई जाती है.
सही उम्र में कराएं एग फ्रीजिंग
अब महिलाएं बड़ी उम्र में भी एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं. वे चाहें तो उम्र की मजबूरी उन के आड़े नहीं आएगी. इस के लिए उन्हें सही उम्र में अपने एग फ्रीज कराने होते हैं. मगर यह प्रक्रिया कितनी सुरक्षित है, यह जानना भी जरूरी है.
एक दाढ़ी कई अफसाने
दाढ़ी हर कोई रख और बढ़ा सकता है, इस का मैंटेनेंस भी कोई खास ज्यादा नहीं. विद्वान और परिपक्व दिखाने में दाढ़ी मददगार साबित होती है लेकिन कभीकभार यह दिक्कतें भी देती है.
धार्मिक देन निकम्मों की संस्कृति
धर्म की दुकानदारी चलती रहे, इस के लिए तमाम पंडों ने धर्म के नाम पर रहने, खानेपीने, रहनसहन, जन्ममरण, शादी, नौकरी, रोजगार, धंधा, समाज को संचालित करने के असीम अधिकार प्राप्त कर इन्हें वास्तविक जीवन में लागू करवा दिया है, हालांकि, हमारी यह कार्यसंस्कृति महज दिखावटी महानता है. यह और कुछ नहीं, बस, निकम्मों की फौज खड़ी कर रही है.
पैसों पर लटका जीवन
वह 8 साल का था. उस के दोनों पांवों में अचानक लकवा आ गया स्थानीय डाक्टरों को दिखाया गया पर लकवा ऊपर की ओर बढ़ता गया था. धीरेधीरे हाथ चपेट में आ गए. फिर उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया. लकवा और ऊपर बढ़ने लगा. सांस भी बंद होने लगी. फिर आईसीयू में शिफ्ट किया गया और सांस की नली में छेद कर वैंटिलेटर लगा दिया गया.
राजनीति पर सोशल मीडिया का प्रभाव
सोशल मीडिया समाज के एक हिस्से तक सीमित है. यह पूरा समाज नहीं है. फौलोअर्स वोटर नहीं होते. वोटर को अपने क्षेत्र की परेशानियों को देखने के लिए सोशल मीडिया का सहारा नहीं लेना होता. यही वजह है कि प्रभावी दिखने के बाद भी सोशल मीडिया चुनावी जीत नहीं दिला पाता है.
पतंजलि को सुप्रीम कोर्ट की फटकार
धर्म और राष्ट्रवाद का तड़का लगा कर देशभर में सेठ रामदेव ने पतंजलि को फैलाने का काम किया. अब देश की सर्वोच्च अदालत ने उन की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को कड़ी फटकार लगाई है.
क्या रामधुन से दूर होगी बेरोजगारी
वेकैंसी सिपाही की हो या चपरासी की, इन के लिए योग्यता से अधिक डिग्रीधारक लाइन में लगे होते हैं. इस की वजह बढ़ती बेरोजगारी है. अयोध्या में भले ही राममंदिर बन गया हो, बेरोजगारों के लिए कोई उपाय नहीं किया गया. सरकारी नौकरी के लिए सिपाही भरती जैसी छोटी नौकरी की परीक्षा में पेपर लीक हो रहा है. एक नौकरी को पाने के लिए 4-5 साल लग जाते हैं.
अन्नदाता की पीड़ा और किसान आंदोलन
किसानों की आय दोगुनी करने के वादे के साथ मोदी सरकार सत्ता में आई थी. आय दोगुनी तो नहीं हुई पर बड़ी संख्या में आज किसान दूसरी बार सड़कों पर आंदोलन करने को मजबूर हो गए हैं. वे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाना चाहते हैं परंतु मामला फंसता नजर आ रहा है.
इंडिया ब्लौक क्या ले रहा है आकार
इंडिया ब्लौक ने फीनिक्स पक्षी की तरह अपने पंख दोबारा खोले तो हैं लेकिन उड़ान वह कहां तक कर पाएगा, यह कहना मुश्किल है. जिस पौराणिक माहौल में भाजपा 400 पार का दम भर रही है, लोकतांत्रिक माहौल के तहत विपक्ष उसे कितनी चुनौती दे पाएगा, यह भी अगर मुट्ठीभर सवर्णों को ही तय करना है तो यह चुनाव कतई दूसरे मुद्दों के इर्दगिर्द नहीं होने वाला.
एक कलाकार में कई प्रतिभाएं जन्मजात होती हैं
पुराने समय में फिल्मी परदे पर वही ऐक्टिंग करता था जिस में गाने की कला भी थी. बीच के दौर में प्लेबैक ने कई प्रतिभाओं के गायन कौशल को दबा दिया. सिर्फ उन की ऐक्टिंग को ही तवज्जुह मिली. लेकिन वह दौर एक बार फिर लौट रहा है जहां कलाकार अपनी तमाम कलाओं का प्रदर्शन एकसाथ कर रहे हैं.
हीरोइनों की प्लास्टिक सर्जरी और उन का निखरा रूप
प्लास्टिक सर्जरी से हीरोइनों को खूबसूरत लुक्स मिले हैं और वे अब कामयाब हैं. यही वजह है कि प्लास्टिक सर्जरी का व्यापार बढ़ता जा रहा है. हालांकि, कई बार इस का असर गलत होने पर मृत्यु तक हो सकती है.
पतिपत्नी एकदूसरे के पूरक बन कर जिंदगी को संवारे
पतिपत्नी आपसी रिश्तों में एकदूसरे के पूरक बन कर आगे बढ़ें. एकदूसरे पर हावी होने के बजाय सहयोगी बनें, तभी यह रिश्ता खूबसूरती से आगे बढ़ेगा.
जिम में मसल्स बनाने के चक्कर में किडनी की बीमारी मोल ले रहे युवा
प्रोटीन पाउडर पीपी कर आज बड़ी संख्या में युवा क की बीमारी और हाई ब्लडप्रैशर का शिकार हो रहे हैं. कम उम्र में ही दिल की बीमारी और अन्य साइड इफैक्ट्स भी सामने आ रहे हैं और इस की वजह है वह प्रोटीन शेक, जो बिना डाक्टरी सलाह के लिया जा रहा है.
घर चलाने वाली महिला के काम को कम न आंकें
जब तक औरत यह नहीं समझेगी कि घर सिर्फ उस का नहीं, बल्कि उस के पति और घर के अन्य सदस्यों का भी है और उन सब को भी घर के कामों को उसी तरह करना चाहिए जैसे कि वह करती है, तब तक पितृसत्तात्मक समाज औरत को मुफ्त का मजदूर बना कर उस को रौंदता रहेगा.
रिश्तों पर असर डालती बुलडोजर संस्कृति
उत्तर प्रदेश में बुलडोजर खूब चर्चा में रहा है. वहां योगी आदित्यनाथ की दोबारा सरकार आने के साथ ही बुलडोजर का असर ज्यादा ही दिखना शुरू हो गया. प्रदेश में अवैध निर्माण हो या फरार अपराधी की संपत्ति, सब पर बुलडोजर चलाया गया है. मगर क्या यही बुलडोजर सोच आज हमारे समाज और रिश्तों पर भी हावी नहीं हो गई है?
डकैत और डकैती खत्म नहीं हुए हैं बस तरीके बदल गए हैं
डकैती के पेशे में बदलाव आए हैं, वह खत्म नहीं हुई है. अब दौर साइबर डकैतों और डकैती का है जिस ने देशभर में चंबल जैसे कई बीहड़ पैदा कर दिए हैं जिन में कई रामसहाय गुर्जर लैपटौप लिए आप को लूटने की साजिश रच रहे होंगे.
राजनीति में फिल्मी कलाकार दक्षिण के हीरो उत्तर के जीरो
राजनीति में जहां उत्तर भारत के हीरो अपना प्रभाव छोड़ने में सफल नहीं होते, वहीं दक्षिण भारत के कलाकार अच्छी राजनीति कर के समाज की सेवा करते हैं. एम जी रामचंद्रन से ले कर विजय तक इस के कई उदाहरण हैं.
शहरियों, सरकार, आढ़तियों और कंपनियों से लूटे जा रहे किसान आंदोलन पर
सरकार किसानों के उत्पीड़न के लिए कानून बनाने का काम करती है. किसान न तो मुद्दे समझ पा रहे हैं न संगठित हो कर सरकार की मुखालफत ही कर पा रहे हैं.
राज चलाना भूली पार्टी व मंदिर में झूली सरकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहले अयोध्या में राम मंदिर, फिर अबुधाबी में मंदिर और अब कल्कि धाम में मंदिर का उद्घाटन करना बताता है कि वे धार्मिक कामों में लगे हैं और देश का राजकाज उन का कार्यालय पीएमओ चला रहा है.
चक्रवर्ती मानसिकता के चक्रव्यूह में भाजपा?
देश की राजनीति आम चुनाव के पहले बेतुकी बातों के चक्रव्यूह में फंस गई है. भाजपा की सत्ता की हवस अब सिर चढ़ कर बोल रही है. पौराणिक भाषा में कहें तो वह उचितअनुचित का भी विचार नहीं कर पा रही. उस ने तो बस राजसूय यज्ञ का घोड़ा छोड़ दिया है जिसे पकड़ कर चुनौती देने वाले ही घोड़े को काजू बादाम खिला रहे हैं. इस खेल में नुकसान सिर्फ जनता का हो रहा है जिस से किसी को कोई सरोकार नहीं.
लोकतंत्र अभी सांसे हैं कोर्ट की खरीखरी
देश में मौजूदा समय में धनबल की सारी ताकत सिर्फ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में जा रही है, लोकतंत्र से खिलवाड़ हो रहा है और तानाशाही बढ़ रही है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का इलैक्टोरल बौंड्स को असंवैधानिक घोषित कर रद्द करने का दूरदर्शी फैसला डैमोक्रेसी को बचाने की दिशा में बेहद अहम कदम है.
क्या मुद्दों से दूर हो रही हैं हिंदी फिल्में
फिल्में सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए नहीं होतीं, बल्कि इन का गहरा असर लोगों के दिलोदिमाग पर भी पड़ता है, खासकर युवाओं पर. लेकिन आजकल मारधाड़, हिंसा, बलात्कार से भरी फिल्में आम आदमी के रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े मुद्दों को कोई जगह नहीं देती हैं, इसलिए वे लंबे समय तक चल नहीं पातीं.
थप्पड़ स्त्री के वजूद का अपमान
एक महिला को चोट पहुंचाने के पुरुष अनेक बहाने बना सकता है जैसे कि वह अपना आपा खो बैठा या फिर वह महिला इसी लायक है या वह होश में नहीं था परंतु वास्तविकता यह है कि वह हिंसा का रास्ता केवल इसलिए अपनाता है क्योंकि वह स्त्री को अपनी संपत्ति समझता है और उस के वजूद पर अधिकार जमाना चाहता है.
सोशल मीडिया पर शोक संदेश परिवार के कितने काम के
हमारी सारी सामाजिकता सोशल मीडिया तक सीमित हो गई है. खासकर जब बात शोक संदेश की होती है तो सोशल मीडिया पर इन की बाढ़ आ जाती है. कई बार फोटो पर फूलमाला देखते ही लोग शोक संदेश देने लगते हैं, जबकि मसला शोक का नहीं होता. कई तो शोक संदेश पर लाइक का बटन भी दबा देते हैं. क्या परेशान परिवार को इस से राहत मिलती है?
लिवइन रिलेशनशिप में बच्चों की कस्टडी
लिवइन रिलेशनशिप में बच्चों की कस्टडी का मामला उलझनभरा होता है. यह रिश्ता भले ही कानूनी रूप से स्वीकार कर लिया गया है मगर इस से जुड़े कुछ कानून अभी भी स्पष्ट नहीं हैं.
गुरुघंटालों की करतूतें
चिन्मयानंदों को उन के कुकृत्य की सजा इसलिए नहीं मिलती क्योंकि अपने अंधभक्तों की बेशुमार संख्या दिखा कर वे सरकार को दबाव में रखते हैं. वोट खिसकाने की धमकी दे कर वे अपने पक्ष में फैसले करवाने के लिए सरकार को बाध्य करते हैं.