1 सम्मेलन विकसित देशों को बाध्य कर सका कि वे विकासशील देशों में जलवायु आपदाओं के लिए भुगतान करने के लिए सहमत हों. इस बात को विकसित देश पिछले तीन दशकों से अस्वीकार कर रहे थे. धनी देश हानि एवं क्षति (एल-ऐंड-डी) पर किसी भी समझौते को हमेशा अटकाते रहे हैं क्योंकि इससे वे जलवायु संकट में उनके ऐतिहासिक योगदान के लिए उत्तरदायी बनते हैं. इन देशों ने शर्म अल-शेख में भी ऐसा ही किया. अंततः, विकासशील देशों के जबरदस्त दबाव में वे एल-ऐंड-डी के लिए कई शर्तों के साथ एक नई फंडिग व्यवस्था बनाने पर सहमत हुए. इन शर्तों में, उदाहरण के लिए, यह भी शामिल है कि यह फंड केवल जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कमजोर देशों (जिसमें भारत शामिल नहीं हो सकता) को ही सहयोग देगा और इसमें योगदान न केवल विकसित देशों का होगा, बल्कि विविध स्रोत होंगे जिसमें उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं और दक्षिणी गोलार्ध के धनी देश शामिल हो सकते हैं. फिर भी, एल-ऐंड-डी समझौते के साथ, अंतरराष्ट्रीय जलवायु सहयोग का ढांचा पूरा हो गया है- आपदा को टालने के लिए उपाय, क्षति कम करने के लिए अनुकूलन और नुक्सानों की भरपाई के लिए एल-ऐंड-डी. तीनों में से, उपायों का रास्ता चुनना सबसे सस्ता और एल-ऐंड-डी के लिए भुगतान करना सबसे महंगा है. इससे बड़े प्रदूषणकर्ता बाढ़, सूखे और चक्रवातों के लिए अरबों के भुगतान का उत्तरदायी बनने के बजाए उत्सर्जन में कटौती करने के लिए प्रेरित होंगे.
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शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
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पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
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अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"