अप्रैल 2020 में लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जब भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) लंबे समय तक एक-दूसरे के सामने डटे हुए थे, इस बात को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था कि चीनी इसलिए तेजी से बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहे थे, ताकि कम से कम समय में सीमाओं पर भारी संख्या में सैनिकों और साजो-सामान को तैनात कर सकें. एलएसी के साथ पूर्वोत्तर में मैकमोहन रेखा पर चीन की बढ़ती गतिविधि पर भारत की प्रतिक्रिया बहुत धीमी थी, लेकिन 2014 के बाद इसमें तेजी आई, जब एनडीए सरकार ने बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कई उपाय किए. इस प्रकार, 2008 से 2014 तक जहां 7,270 मीटर पुलों का निर्माण किया गया था, वहीं 2014 और 2020 के बीच 14,450 मीटर निर्माण पूरा हुआ. इसी तरह, 2008 और 2014 के बीच 3,610 किलोमीटर सीमावर्ती सड़कों का निर्माण किया गया, जबकि 2014 से 2020 के दौरान 4,764 किलोमीटर सड़कें बनाई गईं. भारतीय सेना का मानना है कि इससे एलएसी के अग्रिम तैनाती क्षेत्रों में संपर्क बेहतर हुआ है और भारतीय सेना गश्त को और अधिक गहन बनाने में सक्षम हुई है. सेना की दूरस्थ क्षेत्रों में पहुंच और गश्त बढ़ने के परिणामस्वरूप ही हाल के वर्षों में पीएलए के साथ लगातार झड़पें हो रही हैं.
उत्तरी सेना के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डी.एस. हुड्डा कहते हैं, “एलएसी के भारतीय हिस्से में सड़क निर्माण हमेशा संकट पैदा करता है क्योंकि इससे भारतीय गश्ती दल की पहुंच बढ़ती है. और यह बात हमेशा चीनी सेना को परेशान करती है. "दरअसल, मई 2020 में, पीएलए के अचानक आक्रामक होने की बड़ी वजह भारत द्वारा 255 किलोमीटर की ऊंचाई वाली दारबुक - श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएस- डीबीओ) सड़क का निर्माण तेज करना था. यह सड़क लेह को काराकोरम दर्रे से जोड़ती है जो चीन के लिए संवेदनशील है. इस पर गतिरोध अभी समाप्त नहीं हुआ है, पर चीन के साथ लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण में और तेजी है. अतीत से कड़वा सबक सीखने के बाद, सेना का जोर अब चीनियों की टक्कर की सड़कें, आवास, पुल, हेलीपैड और हवाई पट्टी बनाने पर है. चीन भी अपनी उन्नत तैयारियों को और तेज करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है.
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