उगता सोना पंजाब में खेत में खड़ा गेहूं किसान; (इनसेट) एम.एस. स्वामीनाथन
अब जब भारत अमृतकाल (2022-2047 का परिकल्पित स्वर्णिम युग) में प्रवेश का जश्न मना रहा है, यह पूछना मुनासिब होगा कि कृषि में भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियां क्या रहीं. इसमें कोई शक नहीं कि स्वतंत्र भारत के पिछले 75 साल के दौरान कृषि का भूदृश्य पूरी तरह बदल गया. सबसे बड़ा बदलाव रहा 1960 के दशक में 'शिप टू माउथ' की स्थिति से खाने की बुनियादी वस्तुओं के मामले में कमोबेश आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ निर्यात योग्य अनाजों का अतिरिक्त उत्पादन की स्थिति तक पहुंचना. यह किसी से छिपा नहीं है कि 1960 के दशक में लगातार सूखे के दो साल ने अपनी आबादी का पेट भरने की भारत की अक्षमता को जगजाहिर कर दिया था. तब उसे अमेरिका के पब्लिक लॉ 480 के तहत गेहूं के भारी निर्यात - साल में तकरीबन 1 करोड़ मीट्रिक टन (एमएमटी) – पर निर्भर रहना पड़ा था, वह भी रुपए के भुगतान पर, क्योंकि भारत के पास वैश्विक बाजार से खरीदारी करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं थी. तब देश को अहसास हुआ कि अगर उसे स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र के रूप में खड़ा रहना है, तो चावल और गेहूं जैसे बुनियादी अनाजों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करनी पड़ेगी.
इसी राजनैतिक जागरूकता ने प्रसिद्ध हरित क्रांति' का मार्ग प्रशस्त किया. उस दौरान पले-बढ़े हममें से कई लोग अमेरिकी पौध प्रजनक (प्लांट ब्रीडर) नॉर्मन बोरलॉग के नाम से वाकिफ हैं, जिन्होंने मेक्सिको में गेहूं की नई बौनी किस्में विकसित की थीं. गेहूं की उन्हीं अत्यधिक उपज देने वाली किस्मों (एचवाइवी) के 18,000 टन बीज आयात करके भारत ने हरित क्रांति को अंजाम दिया. भारतीय कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन ने न केवल इन बीजों का आयात सुगम बनाने में बल्कि उन्हें भारतीय जलवायु के मुताबिक ढालने में बेहद अहम भूमिका अदा की. यह भारतीय कृषि की राह में पहला बड़ा मील का पत्थर था. इन दोनों शानदार वैज्ञानिकों, नॉर्मन बोरलॉग और एम. एस. स्वामीनाथन को अपने वैज्ञानिक योगदान के जरिए लाखों की लोगों की जान बचाने के लिए दुनिया भर में जानामाना जाता है.
दूध ही दूध अहमदाबाद के पास अमूल दूध का बॉटलिंग प्लांट, (इनसेट) वर्गीज कुरियन
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"