भूख की चुनौती
खाद्य सुरक्षा भारत के कल्याणकारी राज्य की नींव है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए अनाज और इसके अलावा गर्म, पके हुए मिड-डे मील (एमडीएम) का वितरण इसके बेहद अहम स्तंभ हैं. कभी भ्रष्ट सरकार के प्रतीक चिह्न के तौर पर देखी गई पीडीएस-जिसकी जड़ें हरित क्रांति में हैं- ने महामारी और उसके बाद के घटनाक्रम के दौरान भारत को बचाया. 1920 के दशक में तमिलनाडु से शुरू हुआ एमडीएम आज पूरे भारत में रोज करीब 11 करोड़ बच्चों का पेट भर रहा है. इसे स्कूल नामांकनों में अच्छा-खासा सुधार लाने का श्रेय दिया जाता है और यह हमारी कुपोषण की चुनौती से निबटने का बेहद जरूरी औजार भी है.
पल्स पोलियो अभियान
दोबूंद 'जिंदगी की'- अमिताभ बच्चन की आवाज में 2000 के दशक की शुरुआत का मशहूर पोलियो टीकाकरण अभियान भारत की सबसे शानदार जनस्वास्थ्य उपलब्धि का पर्याय बन गया है. 1994 में दुनिया के 60 फीसद पोलियो के मामलों के लिए जिम्मेदार भारत दो दशक बाद पोलियो मुक्त घोषित कर दिया गया. इसमें वित्तीय संसाधन मुहैया कराने, अग्रिम मोर्चे के कार्यकर्ताओं की फौज को ताकतवर बनाने से लेकर साधारण नागरिकों को जोड़ने तक के प्रयास लगे. यह इस बात का शानदार उदाहरण है कि नागरिक और सरकार साथ आ जाएं तो क्या हासिल कर सकते हैं. भूलिए मत कि इसने भारत के कामयाब कोविड-19 टीकाकरण अभियान का भी मार्ग प्रशस्त किया.
पूर्ण साक्षरता अभियान
करीब 78 फीसद भारतीय आज साक्षर हैं जबकि 1950 में भारतीय गणतंत्र की पौ फटने पर देश की साक्षरता दर 18 फीसद थी. साक्षरता दर की इस लंबी छलांग को मुमकिन बनाने में 1989 में शुरू किए गए पूर्ण साक्षरता अभियान ने अहम भूमिका अदा की. केरल के एरणाकुलम में जिला प्रशासन और लोकप्रिय विज्ञान आंदोलन केरल शास्त्र साहित्य परिषद की संयुक्त कोशिश के रूप में जन्मा पूर्ण साक्षरता अभियान जल्द ही राज्यव्यापी और फिर राष्ट्रीय अभियान में बदल गया. इसने नौकरशाही और सिविल सोसाइटी को मिल-जुलकर एक साथ काम करने और भारत में स्कूली शिक्षा के विस्तार के लिए कई अहम कोशिशों को आकार देने के लिए लामबंद किया. इससे 1.5 करोड़ स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं और 15 करोड़ लोगों को साक्षरता कक्षाओं में लाया जा सका.
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शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"