यह बात थोड़ी अटपटी लग सकती है कि दुनिया दो साल से भी ज्यादा अरसे तक कोविड महामारी की मार से बमुश्किल अभी उबरी ही है और हम खुशी पर चर्चापरिचर्चा करने बैठ गए हैं. उधर लड़ाई-झगड़े का आलम देखिए. यूक्रेन में तो लड़ाई कुछ इस तरह छिड़ी हुई है कि अगर इसे इसी तरह आगे बढ़ने दिया जाता रहा तो यह महाद्वीपों के बीच बड़े युद्ध में तब्दील हो सकती है. एक ओर भयानक में विश्वव्यापी मंदी की भविष्यवाणियां की जा रही हैं, जिनसे बड़े पैमाने पर नौकरियां छिन सकती हैं, भारी महंगाई आ सकती है और लोगों का जीना दुश्वार हो सकता है. ऐसे में आप हर्षोल्लास के साथ नए साल में प्रवेश की बात कैसे कर सकते हैं. इन सब तथ्यों और विडंबनाओं के बावजूद हमें खुशी के रहस्य तलाशते रहने चाहिए. और महात्मा गांधी ने तो कहा ही था न कि "ताकत फतह हासिल करने से नहीं आती. आप जब मुसीबतों से गुजरते हैं और उनके आगे घुटने न टेकने का फैसला करते हैं, असली ताकत वह है." तो यह उसी तरह से खुशी की तलाश के लिए है-लड़खड़ाते हुए भी आप किस तरह से उठते और नया जीवन शुरू करते हैं? बुद्ध ने जो चार आर्य सत्य प्रतिपादित किए, उनमें से पहला तो यही स्वीकार करना था कि संसार में अपार दुख है. बाकी तीन सत्यों की पड़ताल करते हुए वे मोक्ष यानी जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से अंततः मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग बताते हैं. अब यह सवाल कि ऐसा करने सबसे अच्छा तरीका क्या है, फिर अपने आप में एक तलाश बन जाता है.
संयुक्त राष्ट्र 2012 से एक स्वतंत्र एजेंसी को साथ लेकर सबसे खुशहाल देशों को रैंक देते हुए वर्ल्ड प प्रकाशित करता आ रहा है. देश की खुशहाली की अवस्था का आकलन करने के लिए वैश्विक सर्वे एजेंसी कुशलता के तीन प्रमुख संकेतों पर भरोसा करती है: व्यक्ति का अपने जीवन के बारे में मौजूदा मूल्यांकन, सकारात्मक भावनाएं और नकारात्मक प्रभाव सर्वे से एक दिलचस्प बात पता चली: चिंता, उदासी और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं के मुकाबले खिलखिलाहट, आनंद और कुछ नया सीखने जैसी सकारात्मक भावनाएं लोगों के उत्तरों में दोगुने से ज्यादा बार आईं. लगता है दुनिया मुश्किल हालात से पहले के मुकाबले बेहतर ढंग से निबटना सीख रही है.
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शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
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पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"