'चैंबर ऑफ सीक्रेट्स में डंबलडोर हैरी पॉटर से कहता है, "हमारी क्षमताओं से कहीं अधिक हमारी पसंद बताती है कि हम क्या हैं." एक राष्ट्र के तौर पर 1947 के बाद हमारी राजनैतिक पसंद ने यह सुनिश्चित किया कि हम दुनिया के सबसे संरचनाबद्ध समाज की बंजर भूमि पर सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव रखें. लेकिन हमारा लोकतंत्र व्यापक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करने में पूरी तरह सफल नहीं हुआ क्योंकि आर्थिक मोर्चे पर हमारे फैसलों ने एक कमजोर अर्थव्यवस्था का निर्माण किया. बहरहाल, अगले 25 साल में भारत में एमबीए करने वाले छात्र-छात्राएं एक विकासशील, उत्पादक और मजबूत अर्थव्यवस्था के गवाह बनेंगे, जो अभी तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर अग्रसर है. और इस बदली हुई नई दुनिया में हमारा आर्थिक उत्थान अगली पीढ़ी के एमबीए छात्र-छात्राओं और संस्थानों के लिए कुछ अद्वितीय विकल्प मुहैया कराएगा.
हालांकि, संदर्भ के लिहाज से विकल्प सीमित हैं, इसलिए भारत में बदलाव के कारकों को समझना अहम है. करियर की नई दुनिया में फॉर्च्यून 500 कंपनी की जीवन प्रत्याशा 1950 में 64 के मुकाबले घटकर आज 15 हो गई है. इसका मतलब यह है कि रोजगार आजीवन अनुबंध से टैक्सी-कैब सरीखे रिश्ते में तब्दील हो गया है, जो छोटा लेकिन गहरा है. करियर की नई दुनिया में प्रौद्योगिकी कंपनी जैसी कोई चीज नहीं है; सभी कंपनियां प्रौद्योगिकी कंपनियां हैं. काम किसी भौतिक कार्यालय तक सीमित नहीं है; डिजिटल सहयोग के जरिये इसे दूरस्थ या भौतिक माध्यम से एक साथ या अलगअलग पूरा किया जा सकता है. शिक्षा की नई दुनिया में गूगल सब कुछ जानता है; लगातार सीखते रहना जानने से ज्यादा महत्वपूर्ण है. उद्यमिता की नई दुनिया में पूंजी की उपलब्धता का मतलब है कि आपके दिल में मौजूद साहस और आपके माथे का बहता पसीना आपके उपनाम से कहीं ज्यादा मायने रखता है. नई दुनिया में प्रतिभा की बात करें तो, अब बड़ी या बहुराष्ट्रीय कंपनियों को छोटी या भारतीय कंपनियों पर अनुचित लाभ हासिल नहीं है. नई दुनिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिहाज से 1947 के बाद से भारत को जो मिला है, उसका 50 फीसद पिछले पांच वर्षों में आया है. नई दुनिया में सार्वजनिक पूंजी बाजारों में विकास और गवर्मेंस के लिए काफी संभावनाएं हैं.
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शब्द हैं तो सब है
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पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"