नेटफ्लिक्स ने इसे 'भारत की सबसे बड़ी सिनेमैटिक सीरीज' यूं ही नहीं कह दिया. हीरामंडी: द डायमंड बाजार के टेलर की लॉन्चिंग पर स्ट्रीमिंग की दिग्गज अंतरराष्ट्रीय कंपनी ने 2024 के सबसे प्रतीक्षित शो में से एक के प्रचार-प्रसार में कोई कसर बाकी नहीं रहने दी. वहां इसके रचयिता संजय लीला भंसाली के हाथों रची दुनिया की झलक भी दिखाई. भारत में यह उसके सबसे महंगे प्रोजेक्ट में से एक है, जिसका बजट करीब 200 करोड़ रुपए बताया जा रहा है. अप्रैल के शुरू में दिल्ली के ताज पैलेस होटल में हुए लॉन्चिंग प्रोग्राम में होटल के मुख्य कॉन्फ्रेंस हॉल को गजरों (मोगरे के फूलों की मालाएं) और इत्र स्टॉलों से सजे बाजार में तब्दील कर दिया गया. एक कोने में रानी गुलाबी परिधानों में सजी दो मोहतरमाएं विराजमान थीं और अपने आशिक या प्यारे दोस्त को भेजने के लिए उर्दू शायरी चुनने में मेहमानों की मदद कर रही थीं. दूसरे कोने में डिजाइनर रिंपल और हरप्रीत नरुला के हाथों तैयार शो की छह नायिकाओं की सजी-धजी पोशाकों की प्रदर्शनी लगी थी. भंसाली खुद तो लापता थे पर मुख्य अदाकारों-मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, शर्मिन सैगल, संजीदा शेख, शेखर सुमन, फरदीन खान और अन्य-ने नेटफ्लिक्स इंडिया की वीपी मोनिका शेरगिल और भंसाली प्रोडक्शंस की सीईओ प्रेरणा सिंह के साथ उनके बारे में इतनी सारी बातें कीं कि हरेक को बस यही याद रहा: इस दरबार का मुखिया एक और सिर्फ वही शख्स है.
भारत की आजादी की लड़ाई के दौरान छह तवायफों की जिंदगी के बारे में आठ एपिसोड की यह सीरीज चार साल में बनकर 1 मई को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आई. कहानी में शास्त्रीय नृत्य, गुस्सा- आक्रोश और टूटे दिलों के तार आपस में गुत्थमगुत्था हैं. भंसाली ने इसे कमाल अमरोही की पाकीजा, महबूब खान की मदर इंडिया और के. आसिफ की मुगल-एआजम को अपनी तरफ से दी गई श्रद्धांजलि करार दिया है. अभी चल रहे चुनाव की वजह से बॉलीवुड के नामी-गिरामी निर्माता-निर्देशक मई में सिनेमाघरों से दूर रहे, लिहाजा हीरामंडी इस माह की सबसे बड़ी रिलीज बन गई.
पिटारे का नगीना
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"