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समृद्धि का सम्राट
अपने दम पर अरबपति बने गौतम अदाणी के लिए 2022 खुद उनके पैमाने से भी असाधारण रहा, जिसमें बुनियादी ढांचे का सबसे बड़ा सौदा भी शामिल, जो देश में पहले नहीं देखा गया
ओबीसी आरक्षण ने फंसाया पेच
अगस्त 2022 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद भूपेंद्र चौधरी के सामने उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव बड़ी चुनौती के रूप में थे.
उपलब्ध हैं उद्धव ठाकरे
इन दिनों उद्धव ठाकरे हर तरफ नजर आ रहे हैं. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) अध्यक्ष बीते शनिवार को सामाजिक महापुरुषों पर राज्यपाल बी. एस. कोश्यारी की टिप्पणी जैसे मुद्दों के खिलाफ महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) के मोर्चे में भाग लेते तीन किलोमीटर से ज्यादा पैदल चले.
ज्यादा से ज्यादा देखभाल
दिल्ली के सबसे बड़े कोविड अस्पताल लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल (एलएनजेपी) ने 27 दिसंबर को एक मॉक ड्रिल शुरू की. मकसद था देश में संक्रमणों में संभावित उछाल की तैयारी. हालांकि, अस्पताल का 450 बिस्तरों का कोविड वार्ड तब खाली था और राजधानी के 8,000 से ज्यादा कोविड बिस्तरों में से महज 14 भरे थे.
हर फन में फन्ने खां
वरुण ग्रोवर को अभी तक आप गीतकार, कॉमेडियन या पटकथा लेखक के रूप में जानते होंगे, पर हाल ही आई फिल्म कला ने बताया कि वे अभिनय भी कर सकते हैं. वे डायरेक्शन में भी उतर चुके हैं. क्या है जो वे नहीं कर सकते!
संगीत के ये नगीने
फिल्म संगीत अपने आप में एक प्रजाति है, और संदर्भों से इतर भी गीतों में एक परिवार के सदस्यों जैसी समानताएं हो सकती हैं. ऐसे में किसी फिल्म को अपनी खास चमक से सजाने वाले गीत या एल्बम किसी खजाने जैसे ही रहे हैं. पेश हैं सुनहरी तिजोरी के 10 रत्न.
कानों में रस घोलते गाने
नई सहस्राब्दी की एक संगीतप्रेमी ने बनाई ऐसे फिल्मी गीतों की फेहरिस्त, जिसने उसकी पीढ़ी वालों के दिलों को गहराई से छुआ
लटकों-झटकों की माया
बॉलीवुड के इतिहास और वर्तमान को बारीकी से दर्ज करती रहीं भावना सोमाया खुद एक प्रशिक्षित डांसर हैं, यहां वे बता रही हैं कि उनके टॉप फिल्मी नाच-गाने कौन से हैं
आंखों में जो बात है
वे अभिनेत्रियां जिनकी रूहानी रौशनी से जगमग हुआ सेल्युलॉइड
ये कंधे किरदारों के
राजकुमार हो या कंगाल, गंभीर हो या चंचल, मूक हो या वाचाल, हिंदी फिल्म के हीरो ने तरह-तरह का किरदार निभाया. पेश है सर्वश्रेष्ठ की सूची
बॉलीवुड: ये उन दिना का बात है
एक ही फिल्मकार की इतनी फिल्में निजी पसंद का हिस्सा हैं कि उनमें से चुनना बेहद तकलीफदेह काम था. मदर इंडिया या अंदाज ? प्यासा, साहिब बीबी और गुलाम या मिस्टर ऐंड मिसेज 55 ? आवारा या श्री 420 ? देवदास या दो बीघा जमीन ? 75 साल के लंबे कालखंड से 10 फिल्में चुनना स्वाभाविक रूप से नामुमकिन है. फिर भी उन ऐतिहासिक फिल्मों की फेहरिस्त प्रस्तुत है जिनका लोकप्रिय हिंदी सिनेमा पर गहरा असर पड़ा.
लाइट, कैमरा और कमाल
शानदार वक्त रहा हो या बहुत ही खराब वक्त, भारतीय सिनेमा दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में प्रोड्यूस करता रहा है और वे क्वालिटी के मामले में खूब विविध भी रही हैं. इस बॉम्बे इंडस्ट्री का आउटपुट अपने प्रभाव के लिहाज से सबसे ज्यादा व्यापक रहा है. यहां पेश हैं 10 ऐसे क्रिएटर्स, जो आंधी हो या तूफान, ओले गिरें या हो महामारी, हमेशा लोगों के दिलो-दिमाग पर छाए रहेंगे. इनमें से ज्यादातर में एक समानता है, बेहतरीन मौसिकी के प्रति उनका लगाव. इसके अलावा, अपने स्टूडियो और फिल्म निर्माण बैनर तैयार करने के लिए उद्यमशीलता की भावना है. यहां 10 लोगों के चुनाव की मजबूरी के चलते इस सूची में से कुछ दिग्गजों के नाम छोड़ने के लिए आप मेरी लानत-मलामत कर सकते हैं. यश चोपड़ा, विजय आनंद, राज खोसला, शक्ति सामंत, दुलाल गुहा, असित सेन, बासु चटर्जी, श्याम बेनेगल और सई परांजपे से माफी चाहता हूं, जो बेशक सर्वकालिक महान लोगों की इस सूची में शामिल हैं.
नृत्य के दशावतार
भारतीय शास्त्रीय नृत्य का मूल सौंदर्यशास्त्र कम से कम दो सहस्त्राब्दियों में विकसित हुआ, वहीं आज हम इसके जिन विभिन्न रूपों को जानते हैं, उनके सार और स्वरूप को गढ़ने में पिछली सदी बेहद अहम रही. नृत्य को नए सिरे से परिभाषित करने वाले 10- दशावतार -कौन थे ? किनके नृत्य की पदचाप ने भारत के सांस्कृतिक इतिहास की राह ही बदल दी ? भारत के अव्वल नृत्य आलोचक - इतिहासकार अब इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) को दान दे दिए गए मशहूर मोहन खोकर डांस कलेक्शन (एमकेडीसी) से दस्तावेजी प्रमाणों सहित पेश कर रहे हैं अपना चयन.
रागों के ये ऊंचे राजदार
भारतीय शास्त्रीय संगीत कोई ठोस और ठहरी हुई चीज नहीं है. सांसों के स्पंदन के साथ इसने आकार लिया है. पिछली सदी की इसकी यात्रा इसकी जीवंत गतिशीलता की गवाह रही है. वे दस नक्षत्र जिन्होंने इसका व्याकरण रचा
मंच पर उदात्त मूल्यों की तलाश
पहले भारतीय मिथकों, परंपराओं से जुड़े नाटक रचे गए और फिर कुछ आधुनिक दृष्टिकोण वाले प्रयोग हुए. भारतीय नाटकों ने सार्वभौमिकता की गहरे जाकर तलाश की है
मुल्क की प्रसव-पीड़ा का दस्तावेज
आधुनिक हिंदी उपन्यास अपनी काया में बंटवारे की लंबी छाया, आजादी के बाद का मोहभंग, राजनैतिक उथल-पुथल और जाति व्यवस्था की सचाइयां समेटे हैं
कारून का खजाना
बेहिसाब विविधताओं वाला भारत का हस्तशिल्प क्षेत्र न जाने कितने तूफान झेलकर भी फल-फूल रहा
पुराने धागों से उम्मीद का नया ताना-बाना
महामारी के दौरान स्लो और टिकाऊ फैशन की तरफ बढ़ता रुझान लंबे समय तक हाशिये पर रहे भारतीय हथकरघा क्षेत्र के लिए उम्मीद की किरण बन गया है
फौलादी जज्बों ने गढ़े सोने-चांदी के रथ
खेलों के दीवाने देश भारत में विश्व विजेता बनने के लम्हे बहुत ज्यादा नहीं आए. ऐसे ही आग में तपकर निखरे शीर्ष दस लम्हे
'और दुनिया एक होकर रहने लगेगी'
भारत की कहानी इसके अंदर गुंथी असमानताओं की कहानी भी है. कुछ लोगों और समूहों ने बेहतर और ज्यादा न्यायसंगत समाज का सपना देखने की न केवल दूरदृष्टि दिखाई, बल्कि उसके निर्माण का साहस और संकल्प भी
लोगों के अधिकार सरकार का कर्तव्य
तमाम नागरिकों के लिए कल्याणकारी राज्य के निर्माण की भारत की कोशिशें उम्मीद जगाने वाली हैं और विचारणीय भी उम्मीद जगाने वाली इसलिए क्योंकि कल्याणकारी राज्य का मौजूद होना भर लोकतंत्र की जीत है. लोकतंत्र ने भारत के आखिरी नागरिक की आवाजों और हितों का सुना जाना पक्का किया. लेकिन विचारणीय इसलिए कि आजादी के 75 साल बाद भी भारत कल्याण कार्यक्रमों पर अपने स्तर की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले बहुत कम खर्च करता है. कल्याणकारी योजनाओं में निवेश सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है लेकिन 'मुफ्त की रेवड़ी' कहकर इसका मजाक उड़ाया जाता है. यही नहीं, ये योजनाएं खराब अमल से बेजार हैं. इस सबके बावजूद आखिरी नागरिक - की, के लिए और के द्वारा इस लड़ाई ने उन दुस्साहसी प्रयोगों की आग में घी का काम किया जिनमें राज्यों और केंद्र की सरकारों और सिविल सोसाइटी ने बेहद अहम भूमिका अदा की है. भारत में कल्याणकारी राज्य का विकास लोकतांत्रिक भागीदारी की ताकत की कहानी बयान करता है- ऐसी कहानी जिसने राष्ट्रीय और वैश्विक विमर्श को गढ़ा है. यहां मैं इनमें से 10 बेहतरीन कल्याणकारी कदमों का जिक्र कर रही हूं.
उपलब्धियों की प्रतिष्ठा
भारतीय वैज्ञानिकों और अन्वेषकों ने पिछले 75 साल में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, जिन्होंने हम सभी को गौरवान्वित किया है. अगर हरित और श्वेत क्रांति ने देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की तो इसके परमाणु, अंतरिक्ष और रक्षा अनुसंधान ने भारत को ग्लोबल लीडर्स की पांत में खड़ा कर दिया है. यहां हम उन कुछेक मील के पत्थरों का जिक्र कर रहे हैं जो देश के लिए गेम चेंजर रहे
हरियाली का रास्ता
पर्यावरण आंदोलन ने आजाद भारत के 75 वर्षों में नीतियों को आकार देने और विकास के तौर-तरीकों को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस आंदोलन के तीन अलग-अलग रास्ते रहे हैं. पहला, जहां पर्यावरणीय कार्रवाई ने प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए विकास रणनीति को तय करने में भूमिका निभाई. दूसरा, जहां विकास परियोजनाओं का विरोध किया और विवाद की वजह से एक नई सहमति उभरी. तीसरा, जहां प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य के मुद्दों पर पर्यावरण आंदोलन ने नीति में बदलाव को बढ़ावा दिया. हालांकि यह आंदोलन कुछ समुदायों के वन्य संसाधनों पर अधिकार, इन संसाधनों को निकालने और उनके संरक्षण के बीच पेचीदगी से भरा रहा है. इन अंतर्निहित अंतर्विरोधों के मद्देनजर पिछले 75 साल की सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय पहल को गिनाना लगभग नामुमकिन है. मैं इसे आप पाठकों पर छोड़ती हूं कि वे यहां चुने गए लोगों की अहमियत पर विचार करें.
कानून की आत्मा और कोर्ट
भारत के न्यायिक इतिहास में सबसे अच्छे क्षण तब आए जब अदालतों ने कानून को नहीं बल्कि न्याय के ऐसे प्रथम सिद्धांतों का विचार किया जो अलिखित हैं पर संविधान को रेखांकित करते हैं
मजबूत नब्ज
भारत सरीखे उपमहाद्वीप भर में फैले देश में अत्यंत घनी आबादी और संघीय राजनीति के साथ स्वास्थ्य की चुनौतियां बहुतेरी हैं और उपलब्धियां विभिन्न राज्यों में अलग-अलग. तिस पर भी बीते 75 साल में कई क्षेत्रों में कामयाबी हासिल की गई. उनमें शामिल हैं...
पैदावार की प्रचुरता
पिछले 75 साल में भारत 'शिप टू माउथ' जैसी स्थिति से बाहर निकलकर खानपान की बुनियादी वस्तुओं के मामले में कमोबेश आत्मनिर्भर हो गया
दुनिया के साथ रिश्ते
कूटनीति एक प्रक्रिया है; इसकी सफलता या असफलता कई बार किसी घटना के वर्षों बाद सामने आती है. हो सकता है, एक बड़ी जीत मानकर आज जिस कदम को सराहा जा रहा हो, बाद में उसे एक दृष्टिभ्रम या यहां तक कि पराजय के रूप में भी देखा जाए. इस सूची में विदेश नीति की कुछ ऐसी उपलब्धियां हैं जो वर्षों की तकनीकी प्रगति (जैसे, 1974 का शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट) या सैन्य शक्ति (1971 में बांग्लादेश में युद्धक्षेत्र की जीत या कारगिल युद्ध) का परिणाम हैं. हालांकि, दोनों तरह की उपलब्धियों में कूटनीति एक महत्वपूर्ण पहलू है. यह सूची उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने, लीक से हटकर सोचने और वैश्विक दबाव के बावजूद संतुलित रहने की भारतीय कूटनीतिक क्षमता की बानगी है.
साहस और गौरव के निर्णायक पल
भारतीय सेना आजादी के दो महीने बाद ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए लड़े गए कई युद्धों और संघर्षों में से पहली जंग लड़ रही थी. मैंने उन लड़ाइयों पर नजर डाली है जो जीती गईं और जिन्होंने जंग के बाद भू-रणनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया तथा भारत की सरहदों को आकार देने में अहम योगदान दिया. भारत की सरहदों पर जोर देना जरूरी है क्योंकि अधिकतर युद्ध विवादित सीमाओं की वजह से ही हुए हैं. कुछ महत्वपूर्ण लड़ाइयों का उल्लेख न होने से पाठकों को झटका लग सकता है. 1962 की जंग पर विचार नहीं किया गया क्योंकि फोकस उन लड़ाइयों पर था जिन्हें भारत ने जीता. 1965 की हाजी पीर की जंग भी प्रबल दावेदार थी, लेकिन वह यहां जगह पाने से चूक गई क्योंकि उससे हासिल इलाके को जंग के बाद वापस लौटा दिया गया था.
विशालकाय, मजबूत और ताकतवर
आजाद भारत के कुल विकास में पुख्ता असर वाली दस सरकारी परियोजनाएं
कारोबारी साम्राज्यों के सम्राट
भारत के औद्योगिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए असाधारण कारोबारी उत्साह वाले और दूरदर्शी लोगों की जरूरत थी. पेश है टॉप 10 उद्योगपति जिन्होंने देश के धन सृजन में जबरदस्त योगदान दिया है