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सीख लिया सबक!
बेहद मसरूफ फिल्मी सितारों को अपने घर-परिवार में सब्र और सुकून के पल बिताने, कुदरत को करीब से निहारने और जिंदगी के असली मकसद पर गौर करने का मिला मिला भरपूर मौका
दुर्दशा और दुश्वारियां
कोविड-19 महामारी आई तब पता चला कि अदृश्य- -सी श्रम-शक्ति की क्या अहमियत है और अर्थव्यवस्था की गाड़ी को सरपट चलाए रखने वाले मजदूरों- कामगारों की देश ने कितनी उपेक्षा की
बिखर गई जिंदगानी
अम्फान ने राज्य में भीषण तबाही मचाई, यहां तक कि कोलकाता में कई लोगों को बिना बिजली- पानी के रहना पड़ रहा. राहत की धीमी गति ने चीजों को और बिगाड़ा
घर लौटने की भारी दुश्वारियां
दूसरे प्रदेशों से अपने गांव-घर लौटने वालों की भारी तादाद से राज्य के चिकित्सा और वित्तीय संसाधनों पर भारी दबाव, लाखों लोग क्वारंटीन में और जल्दी ही काम की तलाश करेंगे
टूट गया सब्र का बांध
सिनेमाघरों के खुलने पर ऊहापोह के चलते फिल्म निर्माताओं ने ओटीटी की ओर रुख किया तो सिनेमाघरों के मालिकों की त्यौरियां तनी
कैसे बचाएं 'बचत'
पोस्ट ऑफिस की छोटी बचत योजनाएं और बैंक में सावधि जमा (एफडी)-अगर आप भी इन जोखिम रहित निवेश विकल्पों के सहारे नियमित कमाई कर रहे हैं या कमाने की योजना बना रहे हैं तो सतर्क हो जाइए. कोविड-19 के कारण पैदा हुई परिस्थितियां बड़े बदलाव का इशारा कर रही हैं
फरमानों की फजीहत
आखिरकार, प्रधानमंत्री के कार्यालय से केंद्रीय मंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा के लिए एक फोन आया कि उन्हें दिल्ली से कर्नाटक उड़ान भरने वाले सभी यात्रियों के लिए अनिवार्य नियम के तौर पर सात दिन के लिए खुद को क्वारंटीन रखना होगा. इससे पहले तक गौड़ा कह रहे थे कि वे केंद्रीय मंत्री हैं, इसलिए उन पर आम नागरिकों का नियम लागू नहीं होता है.
27 लाख का सवाल
धीमी शुरुआत के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने शायद भारी संख्या में लौटे मजदूर-कामगारों की सेहत और उसके आर्थिक नतीजों पर तो कुछ पकड़ बनाई, लेकिन उनका दीर्घकालीन पुनर्वास अभी दूर की कौड़ी
आसमान से आई आफत
लॉकडाउन की वजह से पहले ही परेशान राज्य के किसान अब टिड्डी दल के हमले से जूझ रहे हैं
शहर पर कोविड का कहर
मुंबई में मरीजों की तेजी से बढ़ती तादाद और अस्पतालों में साधन-सुविधाओं की कमी की वजह से महानगर की चिकित्सा प्रणाली पर जबरदस्त दबाव
महामारी के दौर में ऑनलाइन क्रांति
कोविङ-19 की वजह से ऑनलाइन शिक्षा ने भारत में पकड़ी रफ्तार, मगर इसे कामयाब बनाने के लिए कस्टमाइज लर्निंग मॉड्यूल और ज्यादा मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचे की ऑनलाइन सख्त जरूरत
बेसहारों के सहारे
लॉकडाउन में कराह रहे उद्योगों ने श्रमिकों के चुनाव में अहम बदलाव की ओर इशारा किया. रियायतें हासिल करते हुए नए कारोबारी तौर-तरीकों की भी आजमाइश
खुल गया संभावनाओं का आकाश
निजी क्षेत्र की भागीदारी से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को और ऊंचाइयां छूने में मदद मिल सकती है, जिससे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को इसके वैचारिक पक्ष पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिलेगा
एक युद्ध रणनीति की आवश्यकता
दूरदृष्टि और समयबद्ध रणनीति के अभाव में मेक इन इंडिया 2.0 के रक्षा उपकरण निर्माण का विफलता की पुरानी राह पर जाने का खतरा
कोरोना के खिलाफ योगी की जंग
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में उत्तर प्रदेश अब तक कोविड के खिलाफ जंग में बढ़त बनाए हुए है. लेकिन प्रशासन अब बहुत दबाव में है और प्रदेश में लौटकर वापस आ रहे लाखों प्रवासियों को संभालना बहुत मुश्किल साबित होने वाला
मोदी की नई स्वदेशी मुहिम
प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रु. के वित्तीय प्रोत्साहन और आत्मनिर्भरता के नजरिए का ऐलान किया, लेकिन क्या इससे कोविड की मार से पस्त अर्थव्यवस्था में जान लौट आएगी?
मिली-जुली कामयाबी
गरीबों के लिए 1.7 लाख करोड़ रु. के राहत पैकेज में प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण तो कामयाब, मगर बहुत-से दूसरे प्रावधान कई तरह की खामियों और कारगर अमल के अभाव में बेमानी
"एमएसएमई मरने की कगार पर थे, हमारा पैकेज उनके लिए संजीवनी बनेगा"
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) भारतीय अर्थव्यवस्था की जीवनशक्ति हैं. कोविड महामारी और उसकी वजह से हुए लॉकडाउन के कारण भारत के लाखों छोटे व्यवसायों का भविष्य अंधकारमय है और वे खत्म होने की कगार पर पहुंच गए हैं.
अब कितने तैयार हैं हम?
यह बात अब साफ हो चुकी है कि कोविड-19 इतनी जल्दी जाने वाला नहीं. आठ हफ्तों के लॉकडाउन ने इस वायरस का फैलाव रोकने में हमारी मदद की है. पर अभी भी लड़ाई खासी लंबी है, बता रही हैं
आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के निहितार्थ
सरकार उद्योग और कारोबार को रफ्तार देने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज जारी किया है. अब जो होना बचा है उसी पर सारा दारोमदार है
जिंदगी लॉकडाउन के बाद
लॉकडाउन के खत्म होने के साथ एक नई और चौकन्नी दुनिया में कदम रखते वक्त हमारी जिंदगी को परिभाषित करने वाले सामाजिक शिष्टाचार के नियम पूरी तरह बदल जाएंगे
जाएं तो जाएं कहां
प्रवासी मजदूरों की जिंदगी भारत में कभी आसान नहीं रही मगर लॉकडाउन के दौरान उनकी तकलीफ, अनदेखी और अकेलापन राष्ट्रीय शर्म से कम नहीं
वायरस की अबूझ पहेली
कोविड केवल वायरल न्यूमोनिया भर नहीं है, यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को प्रभावित कर रहा है और जो लोग पहले से ही दूसरी बीमारियों से ग्रसित हैं उनके जीवन को सर्वाधिक जोखिम में ला देता है
रहमत के फरिश्ते
अपनी जिंदगी और परिजनों से दूर, दो-टूक प्रतिबद्धता और दैवीय चमत्कार-सी कोशिशों के साथ कोविड के खिलाफ जंग में अग्रिम मोर्चे के इन डॉक्टरों पर चिकित्सा शास्त्र के नैतिक पहरुयों को नाज होगा
संकटग्रस्त शहर
मुंबई में कोरोनावायरस के सबसे ज्यादा मामले हैं. आखिर कैसे खड़ी होगी देश की आर्थिक राजधानी फिर से अपने पैरों पर?
संकमोचन का सम्मान
कोविड की चुनौती के बीच देश का हाल दुरुस्त रखने के लिए आम हिंदुस्तानियों की अदृश्य फौज ने मैदान में उतरकर मोर्चा संभाला
मदद को आगे बढ़ा हाथ
सऊदी अरब से 18 मार्च को लौटने के बाद श्रीनगर के एक अस्पताल में भर्ती हुई महिला जांच में कोविड-19 से पीड़ित मिली. वह कश्मीर में कोरोना की पहली रोगी थी. यह खबर पाते ही श्रीनगर जिला प्रशासन ने कठोर लॉकडाउन लागू कर दिया.
परदेस से लौटने की मजबूरी
खाड़ी देशों से केरल के आप्रवासियों का बड़े पैमाने पर लौटना मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की नए मौके खुलने की उम्मीद के लिए बन सकता है चुनौती
प्रवासी दुविधा
बिहार के पूर्वी चंपारण के मूल निवासी 30 वर्षीय मिस्त्री राकेश पासवान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में किसी तरह अपना गुजारा कर लेते थे. पर 25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद उनके सामने बेरोजगारी और भूख का संकट आ खड़ा हुआ.
जहान बचाने की जिम्मेदारी
मोदी सरकार के लिए मनरेगा कांग्रेस की विफलता का स्मारक था, लेकिन इसी पर है महामारी में गांव लौटते मजदूरों को रोजगार देकर अर्थव्यवस्था की नब्ज थामने की जिम्मेदारी