Aha Zindagi - November 2024
Aha Zindagi - November 2024
Få ubegrenset med Magzter GOLD
Les Aha Zindagi og 9,000+ andre magasiner og aviser med bare ett abonnement Se katalog
1 Måned $9.99
1 År$99.99 $49.99
$4/måned
Abonner kun på Aha Zindagi
1 år$11.88 $7.99
Kjøp denne utgaven $0.99
I denne utgaven
आपकी प्रिय पत्रिका अहा! ज़िंदगी का नवीनतम अंक। बच्चों पर केंद्रित आमुख कथा के तीन लेखों में हैं बचपन को बचाने और उसे ख़ुशहाल बनाने के सुनहरे सूत्र। इस बार अहा! अतिथि हैं लोकप्रिय अभिनेता कंवलजीत। ज़िंदगी की किताब महाकवि कालिदास के जीवन और साहित्य पर नई रोशनी डाल रही है। इनके अलावा कई अन्य उपयोगी, ज्ञानवर्धक और रोचक लेख भी।
प्रार्थना की ऊर्जा आनंददायी है
ज्ञानार्जन के मार्ग में प्रार्थी भाव का होना जीवनभर के आनंद और संतुष्टि की कुंजी है। बच्चों को प्रार्थना करना सिखाना उन्हें निराशा से दूर रखने में मददगार होगा। इस पर विश्वास, इसके अभ्यास का आधार है।
2 mins
ख़ुशकिस्मती कहां मिलती है?
एक जैसी परिस्थिति में एक व्यक्ति की क़िस्मत खुल जाती है, जबकि दूसरा अपनी क़िस्मत पर रोता रह जाता है। जाहिर है, ख़ुशकिस्मती और बदकिस्मती का अंतर बाहरी हालात से तय नहीं होता। फिर कौन-सी चीज़ निर्णायक होती है?
4 mins
स्वभाव से भी कंवल...
उनकी तमन्ना छोटे शहर से निकलकर कुछ बड़ा करने की थी। वे पायलट बनना चाहते थे, पर बनते-बनते रह गए। उन्हें यूं तो अभिनय का कोई शौक नहीं था, लेकिन कुछ अलग और विशेष करने की धुन में एफटीआईआई के एक्टिंग कोर्स का फॉर्म चुपचाप भर दिया और क़िस्मत देखिए वे वहां पहली बार में ही चुन लिए गए। लंबे क़द और सुदर्शन व्यक्तित्व के मालिक इस युवा को तुरंत ही बड़े-बड़े बैनर की फिल्में भी मिलीं। फिर जब बड़े पर्दे पर मन मुताबिक़ काम नहीं मिला तो उत्साह से भरे इस अदाकार ने टीवी का रुख किया और बुनियाद, फ़रमान, दरार, फैमिली नंबर 1, सांस जैसे धारावाहिकों से ऐसी सफलता पाई कि घर-घर पहचाने जाने लगे। पंजाबी फिल्मों की कामयाबी भी उनके उल्लेख के बिना अधूरी है। 55 वर्षों से परदे की दुनिया पर सक्रिय और 50 से ज़्यादा फिल्में और 25 से ज़्यादा टीवी सीरियल कर चुके जेंटलमैन अभिनेता कंवलजीत सिंह हैं इस बार हमारे अहा अतिथि....
10+ mins
बचपन बनाम हम
होना तो चाहिए था बचपन और हम और अच्छा होता जब होता बचपन के साथ हम । लेकिन हो गया बचपन बनाम हम ! अब बच्चे अपने हिसाब से जीना चाहते हैं और बड़े उन्हें अपने हिसाब से जीना सिखा देना चाहते हैं। इस चक्कर में बचपन खो गया है और शायद बड़प्पन भी। तो, 14 नवंबर, बाल दिवस के अवसर पर क्या यह बेहतर नहीं होगा कि बचपन की सुहानी यादों और मीठी-मीठी बातों के बजाय वास्तविकता से दो-दो हाथ किए जाएं और एक व्यावहारिक हल निकाला जाए?
7 mins
किशोर जीवन में शोर
किशोरवय यानी न पूरी तरह बालपन, न पूर्ण यौवन । बीच की अवस्था। इस स्थिति की अपनी दुविधाएं और समस्याएं होती हैं। आज के किशोर पिछली पीढ़ियों की तरह शारीरिक और मानसिक बदलावों से जूझ ही रहे हैं और तुर्रा यह कि नए ज़माने की नई तकनीकों और चलन ने उनकी दिक़्क़तें बढ़ा दी हैं। ऐसे भटकाने वाले संसार में उनका सच्चा दोस्त कौन बनेगा, उनका हाथ कौन थामेगा- उनके अपने परिजन और शिक्षक ही न?
7 mins
'मां' की गोद भी मिले
बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।
7 mins
सदा दिवाली आपकी...
दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।
3 mins
एक वीगन का खानपान
अगर आप शाकाहारी हैं तो आप पहले ही 90 फ़ीसदी वीगन हैं। इन अर्थों में वीगन भोजन कोई अलग से अफ़लातूनी और अजूबी चीज़ नहीं। लेकिन एक शाकाहारी के नियमित खानपान का वह जो अमूमन 10 प्रतिशत हिस्सा है, उसे त्यागना इतना सहज नहीं । वह डेयरी पार्ट है। विशेषकर भारत के खानपान में उसका अतिशय महत्व है। वीगन होने की ऐसी ही चुनौतियों और बावजूद उनके वन होने की ज़रूरत पर यह अनुभवगत आलेख.... 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस के ख़ास मौके पर...
6 mins
... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....
7 mins
सदियों के शहर में आठ पहर
क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!
7 mins
चंगा करेगा मर्म पर स्पर्श
मर्म चिकित्सा आयुर्वेद की एक बिना औषधि वाली उपचार पद्धति है। यह सिखाती है कि महान स्वास्थ्य और ख़ुशी कहीं बाहर नहीं, आपके भीतर ही है। इसे जगाने के लिए ही 107 मर्म बिंदुओं पर हल्का स्पर्श किया जाता है।
3 mins
पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा
अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।
3 mins
जहां अकबर ने आराम फ़रमाया
लाव-लश्कर के साथ शहंशाह अकबर ने जिस जगह कुछ दिन विश्राम किया, वहां बसी बस्ती कहलाई अकबरपुर। परंतु इस जगह का इतिहास कहीं पुराना है। महाभारत कालीन राजा मोरध्वज की धरती है यह और राममंदिर के लिए पीढ़ियों तक प्राण देने वाले राजा रणविजय सिंह के वंश की भी। इसी इलाक़े की अनूठी गाथा शहरनामा में....
8 mins
इसे पढ़ने का फ़ैसला करें
...और जीवन में ग़लत निर्णयों से बचने की प्रक्रिया सीखें। यह आपके हित में एक अच्छा निर्णय होगा, क्योंकि अच्छे फ़ैसले लेने की क्षमता ही सुखी, सफल और तनावरहित जीवन का आधार बनती है। इसके लिए जानिए कि दुविधा, अनिर्णय और ख़राब फ़ैसलों से कैसे बचा जाए...
5 mins
Aha Zindagi Magazine Description:
Utgiver: Dainik Bhaskar Corp Ltd.
Kategori: Lifestyle
Språk: Hindi
Frekvens: Monthly
Aha! Zindagi, the New Age monthly magazine from Dainik Bhaskar Group revolves around the concept of Positive Living. A combination of body, mind and soul, its content inspires the reader to lead a Positive and good Life.
- Kanseller når som helst [ Ingen binding ]
- Kun digitalt