सुधाकर अग्रवाल, 68 वर्ष निदेशक, इंडियन हर्ब्स
सहारनपुर में अगर आप किसी से 'इंडियन हर्ब्स' का पता पूछेंगे तो शायद ही कोई आपको ऐसी किसी फैक्ट्री के जिले में होने की जानकारी दे पाए. लेकिन अगर आप बत्तीसी वाली फैक्ट्री के बारे में पूछेंगे तो सभी जिले की नवादा रोड पर मौजूद हरे रंग की बाउंड्री वाली फैक्ट्री का पता बता देंगे. यही इंडियन हर्ब्स की फैक्ट्री है. बत्तीसी वास्तव में 'हिमालयन बत्तीसी' नाम की हर्बल आयुर्वेद औषधि है जो पशुओं में पाचन संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए देश भर में प्रसिद्ध है. इसकी मांग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंडियन हर्ब्स साल भर में हिमालय बत्तीसी का 20 लाख किलो से अधिक का उत्पादन करता है.
इंडियन हर्ब्स के निदेशक सुधाकर अग्रवाल बताते हैं, "हिमालयन बत्तीसी का सालाना उत्पादन इतना है कि साल भर की सारी औषधि को अगर 100 ग्राम के पाउच में भर दिया जाए तो ये पाउच आपस में जुड़कर इतने लंबे हो जाएंगे कि उनसे हिमालय को नीचे से ऊपर 32 बार लपेटा जा सकता है."
लकड़ी और होजरी के काम के लिए प्रसिद्ध सहारनपुर को देश दुनिया में पशु-पक्षियों के लिए हर्बल औषधियों के निर्माण के सबसे बड़े केंद्र के रूप में पहचान दिलाने का इंडियन ह का सफर शून्य से शुरू होकर आसमान तक पहुंचा है. सुधाकर अग्रवाल के पिता रामलाल अग्रवाल आजादी से पहले उत्तरांचल ( अब उत्तराखंड) के पहाड़ी इलाके चकराता में जड़ी बूटियों को इकट्ठा कर बेचते थे. सेना का कैंप होने के कारण रामलाल को आने-जाने में काफी पाबंदियों का सामना करना पड़ता था. इसलिए 1945 में वे पास के जिले विकासनगर में परिवार के साथ आकर रहने लगे. यहां गाय-भैंसों में पाचन संबंधी बीमारियों को देखकर इनके लिए औषधि बनाने का विचार आया. काफी शोध और अध्ययन के बाद रामलाल ने हिमालय के जंगलों में पाई जाने वाली चिरायता, हल्दी, पीपल, कुटकी समेत कुल 32 प्रकार की जड़ी-बूटियों मिलाकर औषधि पाउडर तैयार किया जिसे 'हिमालयन बत्तीसी' नाम दिया. जानवरों में पेट संबंधी रोगों के इलाज के लिए यह पहली हर्बल औषधि थी. चूंकि उस वक्त लोग गाय-भैंस के इलाज के लिए हर्बल दवाओं पर भरोसा नहीं करते थे इसलिए शुरुआत में इसकी मांग कम रही.
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