“कमला, रुको. क्या तुम ने किसी को बताया कि मेरी चाय कैसे बनती है?” दादू ने दादी को पुकारते हुए कहा, लेकिन टैक्सी पहले ही सड़क के आखिर में जा चुकी थी.
“अरे दादू, चिंता मत कीजिए. घर पर आप की चाय बनाने के लिए हम में से बहुत सारे लोग हैं, जैसे मां, पिताजी, मैं और रामजी," मैं ने कहा.
मैं ने सिर्फ अपनी दादी को दादू के लिए ही चाय बनाते हुए देखा था. चूंकि उन्हें योगा रिट्रीट के दौरान अगले सप्ताह तक फोन सुनने की अनुमति नहीं थी, इसलिए हम चाय बनाने की विधि को जानने के लिए उन को फोन भी नहीं कर सकते थे.
"साहब, आप की चाय तैयार है," हमारे रसोइए रामजी ने दादू को पुकारा और हमें घर में वापस होने के लिए प्रेरित किया.
मैं ने अपना होमवर्क करना शुरू कर दिया जबकि दादू ने अपनी चाय के कप से एक चुस्की चाय पी.
“आ...क...क," दादू ने एक घूंट चाय पीने के बाद कहा. उन के चेहरे पर अजीब सा भाव था.
"साहब, मैं ने कड़क चाय बनाई है, असम की अतिरिक्त चायपत्ती को मिला कर बनाई है. क्या य अच्छी नहीं है?” रामजी ने चिंतित हो कर दादू से पूछा.
दादू जल्दी से मुसकराए, “अरे, नहीं. मुझे यह अच्छी लगी. बस, यह थोड़ी ज्यादा कड़क हो गई है."
रामजी के जाने के बाद मैं दादू के पास गया, "दादू, क्या आप को चाय पसंद आई? क्या मैं आप के लिएएक ताजा कप चाय बनाऊं?"
"मेरा बच्चा, चिंता मत करो. चाय बहुत बढ़िया है. मैं अपनी बालकनी में जा कर इस को पीने का आनंद लूंगा,” उन्होंने अपने कमरे में जाने से पहले मुझे आश्वस्त करते हुए कहा.
उस दिन शाम को जब मां और पिताजी अपने काम से घर लौटे तो दादू को सोफे पर सोया हुआ देख कर हैरान रह गए.
“क्या दादू बीमार हैं?” पिताजी ने मुझ से पूछा.
“वे ठीक लग रहे हैं, पिताजी. अभीअभी सोए हैं," मैं ने टेबल से किताबें हटाते हुए कहा.
थोड़ी देर बाद जैसे ही दादू की नींद खुली, मां ने रसोई से उन्हें आवाज लगाई.
“पापाजी, क्या आप चाय पीएंगे?”
“हां, हां, अनीता बेटा मुझे जगे रहने के लिए एक कप अच्छी चाय की जरूरत है,” दादू ने पापा की ओर मुड़ने से पहले कहा.
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