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आपराधिक अपीलें
न्यायपालिका का पहला कर्तव्य न्याय देना है. कोई निरपराधी जेल में बंद न हो जाए, इस का ध्यान भी रखना होता है. इसी के चलते आपराधिक मामलों में अपील करने का अधिकार मुलजिम को दिया गया है.
दुख देती है संतान की असफलता
समय पहले जैसा नहीं रहा कि थोड़ीबहुत पढ़ाई कर ली तो मेहनत के बल पर कैरियर बन जाए. अब लाखों रुपए पढ़ाई में खर्च कर के भी गारंटी नहीं कि बच्चे का कैरियर सफल हो पाए. ऐसे में संतान की असफलता पेरैंट्स को बहुत कचोटती है.
मुश्किल है जुर्म कर बचना
आज के तकनीकी समय में ऐसे कई उपकरण ईजाद हो गए हैं जिन से किसी अपराधी अपराधी भागीदारी या मौजूदगी की का पता आसानी से लगाया जा सकता है. ऐसे में अपराध कर बच निकल जाने की भूल बेवकूफी है.
घर खरीदें छली न जाएं
अभी तक जमीनजायदाद खरीदने की जिम्मेदारी मर्दों पर होती थी, मगर समय बदल रहा है. पढ़ाईलिखाई और अच्छी नौकरी के साथ अब महिलाएं भी प्रौपर्टी के मार्केट में नजर आने लगी हैं. ऐसे में हर तरह की जानकारी जरूरी है ताकि बिल्डर और ब्रोकर के हाथों वे छली न जाएं.
जनता को लुभाता रेवड़ी कल्चर
सारी बहस मुफ्त की रेवड़ी बनाम जन कल्याण सुविधा से जुड़ी है पर सच यह है कि इन सुविधाओं को पाने के लिए जनता को हमेशा गरीब ही बने रहना होगा. हर पार्टी के नेता मुफ्त योजनाओं की घोषणा करते हैं पर यह कितना सही है?
तलाक पर तिलमिलाहट क्यों
जब पतिपत्नी का एक छत के नीचे सहज तो सहज, असहज तरीके से रहना भी दूभर हो जाए तो एकदूसरे से तलाक ले कर छुटकारा पाना गलत नहीं दिक्कत यह कि कोर्टकचहरी में उन्हें परामर्श केंद्र, फैमिली कोर्ट और तरहतरह की एजेंसियों में उलझा कर उन के सब्र का इम्तिहान लिया जाता है. जब साथ रहना इच्छा में नहीं तो इस का जल्द निबटारा क्यों नहीं ?
देश की चुनौती, टूटता विश्वास टूटता समाज
आज लोगों का आपसी विश्वास टूट चुका है. पड़ोसी का पड़ोसी पर विश्वास नहीं रहा, जनता को राजनीति पर भरोसा नहीं. कानून समय पर मदद करेगा, विश्वास नहीं. धर्म व जाति के नाम पर हर रोज नई दरारें सामने आ रही हैं जो इस टूट की जिम्मेदार हैं. आमजन इस टूटन को भांप नहीं पा रहा है.
दिल्लगी
घर में बेरोजगार बैठे एक शख्स को इश्क का बुखार चढ़ा और लड़की उसे मिल भी गई लेकिन जब वह उस से मिलने गया तो सिर मुड़ाते ही ओले पड़ गए...
नया सवेरा
आकाश के प्यार को ठुकरा कर नेहा अपनी जिंदगी में खुश थी, मगर फिर क्या हुआ उस के साथ कि सालों बाद उसे आकाश की याद आ गई और वह उस से मिलने को बेकरार हो उठी.
"हिंदी में बात करने में आखिर शर्म कैसी?" यश टोंक
यश टोंक ने अपने कैरियर की शुरुआत मौडलिंग से की. उस के बाद सीरियलों में सफलता हासिल करने के बाद उन्होंने फिल्मों की तरफ रुख किया. इन दिनों वे फिल्म ‘हरियाणा' को ले कर चर्चा में हैं.
जिम अवश्य जाएं अच्छी सेहत के लिए
अच्छी सेहत पाना कोई शौर्ट टाइम कोर्स नहीं. जब तक उम्र है तब तक अच्छी सेहत के लिए प्रयास करना चाहिए. जिम सेहत को अच्छा बनाता है. जिम में की गई लापरवाही सेहत से खिलवाड़ कर सकती है.
वायरल फीवर हलके में न लें
इन दिनों मौसमी फीवर चल रहा है, यानी वायरल फीवर इसे हलके में बिलकुल भी न लें. ऐसे में कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत है.
न्यायालय और देश
देर से मिला न्याय, न्याय नहीं होता और गोधरा कांड जैसे गंभीर मामले की अगर फाइल बंद कर दी जाए तो पीड़ितों के न्याय का क्या होगा?
भद्रा का भय
भद्रा का भय दिखा कर पंडित आम लोगों के मन में एक डर का माहौल बना कर रखते हैं ताकि उन की रोजीरोटी चलती रहे. जरूरी है कि भद्रा के भय के चक्रव्यूह से बाहर निकला जाए.
वातावरण में बढ़ता तापमान
पृथ्वी का क्लाइमेट चेंज होना दुनियाभर के लिए घातक है. हालत यह है कि ठंडे देश भी इस समय गरमी की मार झेल रहे हैं. अगर यह जल्द नहीं रुका तो आने वाले समय में इस के में भयंकर परिणाम देखने को मिल सकते हैं.
शरीर में पोषण का महत्त्व
सही मात्रा में शरीर में पोषण लेने पर ही शरीर संतुलित और सेहतमंद होता है. इस के लिए जरूरी है कि पोषणयुक्त आहार कौन से हैं, इस बारे में जानकारी हो.
खत्म होते रिश्ते दोस्तों में तलाशें
लोगों के शहरों में बसने से रिश्तेदारी सिमटने लगी है हालांकि इस की जगह दोस्तों ने ले ली है. जरूरी है कि दोस्तों में ही रिश्तेदारी तलाशी जाए. हर संभव मदद का लेनदेन करते रहें.
एशिया कप 2022 हार अमीर क्रिकेट बोर्ड और कट्टर चैनलों की
क्रिकेट को धार्मिक उन्माद बना देने में ट्रोल सेना और खबरिया चैनलों का बहुत बड़ा हाथ है. इन्हें खेल से कोई मतलब नहीं है, बल्कि ये तो जानबूझ कर उन नफरती जड़ों को सींचते हैं जो लोगों में दरार पैदा कर देती हैं.
न्याय में देरी
न्याय लोकतंत्र का अहम आधार है जो तेजी से पंगु होता जा रहा है. न्याय मिलने में देरी से आम आदमी का न्यायिक प्रक्रिया पर से विश्वास उठता जा रहा है और लोग इस व्यवस्था से अब चिढ़ने लगे हैं. आखिर क्यों न्याय आम आदमी से दूर होता जा रहा है?
गुमराह करता मीडिया
लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका चौथे स्तंभ की है. मीडिया पर जनता को भरोसा होता है कि वह सरकार की कारगुजारियों से उसे अवगत कराए ताकि सहीगलत का मूल्यांकन किया जा सके. मीडिया सरकारी भोंपू बन कर रह जाए तो यह लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा.
"बौलीवुड में कलाकार की कद्र नहीं" गिप्पी ग्रेवाल
किसान परिवार से आने वाले पंजाबी गिप्पी ग्रेवाल एंटरटेनमैंट इंडस्ट्री की मशहूर हस्ती हैं. उन्होंने शोहरत कोई रातोंरात नहीं कमाई, इस के के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया.
महिलाओं की शिक्षा में खराब स्थिति
महिला सशक्त तभी बन सकती है जब वह आत्मनिर्भर हो और अपने फैसले खुद लेने की क्षमता रखती हो. इस के लिए जरूरी है कि वह अच्छी पढ़लिख कर जौब करे पर भारत में महिलाओं की शिक्षा की हालत वैसी नहीं है जैसी होनी चाहिए.
आस्था या दिखावा
आस्था जब दिखावे की चीज बन जाती है तब न सिर्फ आप इसे भोग रहे होते हैं बल्कि दूसरों को भी परेशानी झेलनी पड़ती है. आस्था ऐसी चीज होती है जिस में दूसरा व्यक्ति मरपिट रहा होता है जबकि आस्थावान को कोई फर्क ही नहीं पड़ता.
अकेलापन व सफल महिलाएं
सफलता पाने में हर किसी की एक तय उम्र खर्च होती ही है. ऐसे में महिलाएं सफलता पातेपाते समय की उस दहलीज पर पहुंच जाती हैं जहां उन्हें अकेलेपन के दौर से गुजरना पड़ता है. इस से निकलने के लिए वे क्या करें?
भू समाधि का विज्ञान अभ्यास या दैवीय चमत्कार
विभिन्न करतबों को अकसर लोग भ्रम मान लेते हैं और अंधविश्वास के जाल में फंस जाते हैं. ऐसे ही भू समाधि के करतब से कई भक्त लोग भ्रमित होते हैं. इस के पीछे का विज्ञान किसी को पता नहीं रहता.
क्रीमपाउडर नहीं ड्रीम जरूरी
युवतियों की आजादी के लिए जरूरी है कि वे आत्मनिभर बनें, अपने फैसले लेने में जरा भी न झिझकें या न डरें, घर में बंधी न रहें, खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएं.
सिरदर्द हैं पैट्स लवर
लोगों में पैट्स पालने का ट्रैंड बढ़ रहा है पर इस के साथ वे जरूरी बातों पर ध्यान नहीं दे रहे, जो आगे जा कर उन की सिरदर्दी बन रही हैं.
लंबी बीमारी मन पर पड़ता दुष्प्रभाव
गंभीर बीमारी से मानसिक तनाव या स्ट्रैस का पैदा होना स्वाभाविक है. यह तनाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर हमेशा नकारात्मक प्रभाव डालता है और गंभीर बीमारियां तनाव के कारण और ज्यादा गंभीर हो जाती हैं. यही नहीं, तनाव के कारण मौजूदा बीमारी के साथ दूसरी बीमारियां भी पैदा हो जाती हैं.
बिदके क्यों नीतीश कुमार
नीतीश कुमार का एनडीए छोड़ वापस कांग्रेस और आरजेडी के साथ हाथ मिलाना एक लंबी योजना का हिस्सा है. इस से न सिर्फ भाजपा को सबक मिला है, बल्कि भाजपा को आने वाले समय में कठिनाई का सामना भी करना पड़ सकता है.
असहमति पर दुर्गति
असहमति स्वाभाविक व मौलिक मानवीय गुण है और इसी से मानव का विकास संभव हुआ है. अब लोकतंत्रों के विकास के इस दौर में असहमत लोगों की आवाज बंद करने की सत्ताधारियों की कोशिश बताती है कि राजनीति और धर्म के पैरोकार तरक्की नहीं, कुछ और चाहते हैं.