CATEGORIES
Kategoriler
कलियुग में सहज, सुरक्षित साधन : गुरुआज्ञा-पालन
पहले के जमाने में शिष्य इतना पढ़ते नहीं थे जितनी गुरुसेवा (गुरुआज्ञा पालन ) करते थे। वे सेवा का महत्त्व जानते थे। गुरु की सेवा और अनुकम्पा से ही सशिष्यों को सभी प्रकार के ज्ञानों की उपलब्धि हो जाती थी। गुरुआज्ञा का, गुरु के सिद्धांतों का पालन ही गुरुदेव की सच्ची सेवा है। संदीपक, तोटकाचार्य, पूरणपोड़ा को देखो, ये इतने पढ़े-लिखे नहीं थे पर गुरुसेवा द्वारा गुरुकृपा प्राप्त कर महान हो गये।
काल टाल दिया और बना दिया महापुरुष !
प्रयाग में सन् १२९९ में एक लड़के का जन्म हुआ, जिसका नाम रामदत्त रखा गया। जब वह पढ़ने योग्य हुआ तो माता-पिता ने उसे काशी भेजा।
कामिका एकादशी का माहात्म्य एवं विधि
कामिका एकादशी : १३ जुलाई
भारतीय संस्कृति को एक सूत्र में पिरोनेवाले शंकर
नन्ही उम्र में निकले सद्गुरु की खोज में
शाश्वत सुख दिलाने व निजस्वरूप में जगाने की व्यवस्था है यह पर्व
गुरुपूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा और आषाढ़ी पूर्णिमा भी कहते हैं । यह व्रत पूर्णिमा भी है। कुछ व्रत होते हैं, कुछ उत्सव होते हैं परंतु गुरुपूर्णिमा व्रत और उत्सव - दोनों का दिवस है।
विशेष लाभदायी स्मृतिशक्तिवर्धक प्रयोग
गर्मी के दिनों में पके पेठे की सब्जी खाने से स्मरणशक्ति में कमी नहीं आती है।
रोगप्रतिकारक शक्ति का खजाना : स्वास्थ्यप्रद तरबूज के छिलके
यश, सुख, सफलता, लोक-परलोक की उपलब्धियाँ - ये सब आत्मबल से होती हैं ।
बड़े-बड़े अपराधों से निवृत्त कर पावन करनेवाला व्रत
एकादशी का व्रत भगवान के नजदीक ले जानेवाला है। युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा : \"प्रभु ! आषाढ़ (अमावस्यांत मास अनुसार ज्येष्ठ) मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम क्या है? उसके विषय में जानना चाहता हूँ\"
आप भी ऐसे नर - रत्न बन सकते हो
बाल गंगाधर तिलक ५वीं कक्षा में पढ़ते थे तब की बात है। एक बार कक्षा में किसी बच्चे ने मूँगफली खायी और छिलके वहीं फेंक दिये। अंग्रेज शासन था, हिन्दुस्तानियों को डाँट-फटकार के, दबा के रखते थे। मास्टर आया और रुआब मारते हुए बोला : \"किसने मूँगफली खायी?\"
तुम संसार में किसलिए आये हो ?
एक होता है कर्म का बल । जैसे मैं किसी वस्तु को ऊपर फेंकूँ तो मेरे फेंकने का जोर जितना होगा उतना ऊपर वह जायेगी फिर जोर का प्रभाव खत्म होते ही नीचे गिरेगी । गेंद को, पत्थर को ऊपर फेंकने में आपमें जितना कर्म का बल है उतना वे ऊपर जायेंगे फिर बल पूरा हुआ तो गिरेंगे । ऐसे ही कर्म के बल से जो चीज मिलती है वह कर्म का बल निर्बल होने पर छूट जाती है।
गुरुभाई को सताना बना प्रतिबंधक प्रारब्ध
अष्टावक्र मुनि ने राजा जनक को उपदेश दिया और उनको आत्मसाक्षात्कार हुआ यह तो सुना-पढ़ा होगा लेकिन राजा जनक और अष्टावक्र मुनि के पूर्वजन्म का वृत्तांत भी बड़ा रोचक और बोधप्रद है।
वास्तविक संजीवनी
ईरान के बादशाह नशीखान ने संजीवनी बूटी के बारे में सुना। उसने अपने प्रिय हकीम बरजुए से पूछा : \"क्या तुमने भी कभी संजीवनी बूटी का नाम सुना है ?\"
बाहरी शरीर के साथ आंतरिक शरीर की चिकित्सा करो
जिसने अपने मन को ध्यान में लगाया वह अपने-आपका मित्र है।
ब्रह्मज्ञान क्यों जरूरी है?
ब्रह्मविद्या के आगे जगत की सब विद्याएँ छोटी हो जाती हैं।
आया, बैठा और पा के मुक्त हो गया
एक दिन महात्मा बुद्ध अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठे थे, उनका शिष्य आनंद अंदर था। एक व्यक्ति आया, बोला : ‘\"भंते ! मैं आपके पास वह बात सुनने को आया हूँ जो कही नहीं जाती है, वह बात समझने को आया हूँ जो समझायी नहीं जाती, मैं उसको जानने को आया हूँ जिसको जाननेवाला स्वयं रहता नहीं।\"
वे जीते-जी मृतक समान हैं
सावधान हो जाओ... बोध को पालो !
आपकी वास्तविक शोभा किसमें है?
जवानी का नाश करके फिर ईश्वर पाना मुश्किल है
चलता पुरजा चलता ही रहेगा
कुछ लोग समझते हैं कि छल-कपट करनेवाला व्यक्ति बड़ा होता है। बोलते हैं: 'यह बड़ा चलता पुरजा है।'...
उनको छू के आनेवाली हवा भी कल्याण कर देती है
जिनको परमात्मा का अनुभव हो जाता है उनका स्वभाव बालवत्, निर्दोष हो जाता है।
निर्मल वैराग्य का स्वरूप
जो ईश्वर की प्राप्ति चाहते हैं, आत्मतत्त्व का ज्ञान चाहते हैं उन्हें जीवन में साधना की आवश्यकता होती ही है।
शीलवान व्यक्ति के लिए कुछ भी असम्भव नहीं
आत्मबल, आत्मसुख के आगे और सब बल, सब सुख छोटे हो जाते हैं।
हलकी आदतें निकालने में है बहादुरी
जो संत की बात टालता है वह अपने भाग्य को लात मारता है।
संत-दर्शन व सत्संग के २ अक्षर कहाँ से कहाँ पहुँचा देते हैं!
संत का सान्निध्य भगवान के सान्निध्य से भी बढ़कर माना गया है।
इन आठ पुष्पों से भगवान तुरंत प्रसन्न होते हैं
एक बार राजा अम्बरीष ने देवर्षि नारदजी से पूछा: \"भगवान की पूजा के लिए भगवान को कौन-से पुष्प पसंद हैं?\"...
मेरु पर्वत तुल्य महापापों को नष्ट करनेवाला व्रत
मोहिनी एकादशी: १ मई
बिनशर्ती समर्पण करता भव से पार
संत परम हितकारी होते हैं। वे जो कुछ कहें उसका पालन करने के लिए डट जाना चाहिए। इसीमें हमारा कल्याण निहित है।
स्वस्तिक का महत्त्व क्यों ?
स्वस्तिक अत्यंत प्राचीनकाल से भारतीय संस्कृति में मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है।
ब्रह्महत्या आदि पाप व पिशाचत्व नाशक व्रत
[(कामदा एकादशी : १ अप्रैल (स्मार्त), २ अप्रैल (भागवत)]
परम सत्ता पर निर्भरता से होता रोग-निवारण
('उत्तम स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है ईश्वरीय शक्ति का अवलम्बन !' अंक ३६१ का शेष)
करोड़ों सूर्यग्रहण से अधिक फलदायक है यह व्रत
श्रीरामनवमी : ३० मार्च २०२३