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लम्बी आयु की सरल कुंजी
दीर्घायु का साधन
शुभ संकल्प की अथाह शक्ति को उजागर करनेवाला पर्व
रक्षाबंधन पर पूज्य बापूजी का मंगलमय संदेश
वटवृक्ष का महत्त्व क्यों?
दूसरे के हित की भावना से बुद्धि में अच्छे स्फुरण होने लगते हैं।
जीवन में गुरु की अनिवार्यता
जो गुरु व परमात्मा के प्रति अहोभाव रखते हैं, उन्हें प्रेमाभक्ति, परमात्म-रस मिलता है।
... तभी आपकी जन्माष्टमी पूर्ण हुई
जन्माष्टमी : १८ व १९ अगस्त
सद्गुरु देते भवरोग से मुक्ति की युक्ति
ब्रह्मज्ञानी गुरु की भली प्रकार सेवा करनी चाहिए, उनका बड़ा उपकार है।
श्रवणद्वादशी - व्रत की कथा
भविष्य पुराण में श्रवणद्वादशी के व्रत की सुंदर कथा आती है।
पात्रता विकसित कीजिये
अपना कल्याण करना हो तो संतों का संग, सत्शास्त्र का विचार, भगवन्नाम-जप - इन तीनों को महत्त्व दे दो।
यदि ईश्वर के रास्ते जाने से कोई रोके तो...
वे धनभागी हैं जो आत्मविश्रांति के रास्ते चल पड़ते हैं।
साधना प्रकाश
साधना में शीघ्र सफलता के नियम
ऐसे मनायें रक्षाबंधन
रक्षाबंधन : ११ अगस्त
संस्कृति विज्ञान - पीपल वृक्ष का महत्त्व क्यों?
वास्तव में भगवान ही है, बाकी सब धोखा है।
हमारा हित किसमें है?
हरि रूठ जायें तो गुरु बचा लेते हैं पर गुरु रूठ जायें तो हरि बीच में नहीं आते।
साधना में शीघ्र सफलता हेतु १२ नियम
गुरुपूनम महापर्व पर विशेष उपहार
पीपल वृक्ष का महत्त्व क्यों?
सर्वदा, सर्व कार्यों में उनका मंगल होता रहता है जो हृदय में मंगलमय हरि का सुमिरन करते रहते हैं।
सद्गुरु देते भवरोग से मुक्ति की युक्ति
गुरु की आज्ञा बहुत कल्याण करती है।
निःस्वार्थ कर्म का बल
विद्यार्थी संस्कार
गुरुआज्ञा - पालन से लाभ किसको?
जिसने सद्गुरु को संतुष्ट किया है उसके ऊपर ३३ करोड़ देवता प्रसन्न होते हैं ।
गुरु-शिष्य का संबंध प्रेम का सर्वोच्च रूप है !
परमहंस योगानंदजी अपने सद्गुरुदेव श्री युक्तेश्वर गिरिजी के साथ के मधुर संबंध का वर्णन अपने जीवन के कुछ संस्मरणों के माध्यम से करते हुए कहते हैं :
आध्यात्मिक प्रगति का इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं
सद्गुरु से एकाकार होनेवाला सत्प्रेरणा व साफल्य पाने में सक्षम होता है।
ये पाँच मंगलकारी बातें आज से ही जीवन में लाओ
यदि प्रिय वस्तुओं का त्याग कर दिया तो वासना कम होती जायेगी एवं भगवत्प्रीति बढ़ती जायेगी।
पूज्य बापूजी का पावन संदेश
चेटीचंड पर्व पर
गृहस्थ में रहने की कला
जैसे बुलबुला पानी में है वैसे ही सब जीव-जगत ब्रह्म में ही है।
ऐसे दुर्लभ महापुरुष मुझे सद्गुरुरूप में मिल गये
(गतांक से आगे)
एक महान उद्देश्य ने खोल दिये कल्याण के अनेक मार्ग
अपने हृदय में धर्म के प्रति जितनी सच्चाई है उतनी ही अपनी उन्नति होती है।
उस एक को नहीं जाना तो सब जानकर भी क्या जाना ?
देवर्षि नारदजी जयंती : १७ मई
आयुर्वेद का अद्भुत प्राकट्य व एलोपैथी की शुरुआत
भविष्य में सुखी होने की चिंता न करें, वर्तमान में अपने चित्त को प्रसन्न रखें।
आत्मसाक्षात्कार के ३ सरल उपाय
साधनाकाल में संसारी लोगों से अनावश्यक मिलना-जुलना बहुत ही अनर्थकारी होता है।
सुखी और प्रसन्न गृहस्थ-जीवन के लिए...
श्री सीता नवमी: १० मई
निःस्वार्थ कर्म का बल
विद्यार्थी संस्कार