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जरूरत मरहम की
महामारी से तहस-नहस दो सालों के बाद और विधानसभा चुनावों के बीच आने से केंद्रीय बजट 2022-23 के खुशगवार होने की उम्मीद
हिंदू मूल्यों की लड़ाई
हिंदू धर्म की विराट, जटिल और बौद्धिक विरासत को हिंदुत्व के कट्टर दुराग्रहियों ने उसके सबसे निचले मूल्य तक गिरा दिया है. असल हिंदुओं को खड़े होकर इस विभाजन से लड़ना चाहिए
सुधारों की नई फसल पर जोर जरूरी
विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन ने भारतीय कृषि को जन चेतना के केंद्र में ला दिया. महत्वपूर्ण सुधारों की गति मंद नहीं पड़नी चाहिए
वक्त एक्ट ईस्ट नीति पुनर्जीवित करने का
वैश्विक अर्थव्यवस्था को ओमिक्रॉन की चुनौती, अफगानिस्तान पर तालिबान के काबिज होने से आतंकी समूहों की हिम्मत में बढ़ोतरी और चीन की भूराजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भारत के लिए अप्रत्याशित चुनौतियां पेश करती हैं
पूर्ति ज्यादा मांग कम
टीके लगने की तादाद जैसे-जैसे बढ़ेगी, आपूर्ति श्रृंखला की रुकावटें कम होंगी, उत्पादन बढ़ेगा. 2022 की चुनौती होगी मांग को ऊंचा बनाए रखना ताकि भारत महामारी से पहले की वृद्धि की राह पर लौट सके
टीम इंडिया की तलाश
वर्ष 2022 हर भारतीय खिलाड़ी के लिए खुद को साबित करने का या उस खेल की नई परिभाषा गढ़ने का मौका होगा
क्या 2022 कोविड से राहत दिलाएगा?
ओमिक्रॉन ने हमें दिखाया है कि कोविड के नए स्ट्रेन अभी भी उभर रहे हैं. अगर हमें वायरस को हराना है तो नियंत्रण की कोशिशों में सबसे आगे विज्ञान और सार्वजनिक स्वास्थ्य को रखना होगा और उनके लिए एक सक्षम नीति भी दरकार है
चुनौतियां का चतुष्कोण
भारत को 2022 में जिन इम्तहानों से गुजरना है, उनमें राजनीतिज्ञ मोदी नहीं बल्कि राजनेता मोदी की जरूरत है
गर्व और गुस्से के बीच संतुलन
भारत के राष्ट्रीय जीवन में हिंदू सांस्कृतिक और सभ्यतागत पहचान की केंद्रीयता को पुनर्स्थापित करने का आरएसएस का मुख्य मिशन वास्तविकता में बदल चुका है. 2022 में संघ को इससे पैदा हो रही भांतियां दूर करने की जरूरत है
उम्मीद की डोर
भविष्य के रुझान 2022
ऊर्जा व्यवस्था की साफ-सफाई
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में भारत की असली चुनौती बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं, बल्कि यह तय करने की होगी कि निपट निर्धन व्यक्ति भी 'स्वच्छ ऊर्जा की कीमत चुका सके
अगली श्रमिक क्रांति
डिजिटल कामकाज का भविष्य कर्मचारियों के काम के बारे में अनुभव समझने और उसे बेहतर करने के लिए तकनीक के इस्तेमाल पर टिका है
यूनिकॉर्न का धावा
इंटरनेट का प्रसार और स्मार्टफोन का प्रयोग बढ़ने तथा निवेशक पूंजी की भरमार की बदौलत देश में एक अरब डॉलर से ज्यादा कीमत वाले स्टार्टअप-यूनिकॉर्न-की संख्या में तेजी से इजाफा देखा गया. आखिर वे 2021 में सुर्खियों में क्यों छाए रहे
वैक्सीन के सूरमा
कोविड वैक्सीन के निर्माता भारत बायोटेक के कृष्ण एल्ला और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अदार पूनावाला ने अपनी असाधारण दूरदर्शिता, पहल और हिम्मत से भारत को स्वास्थ्य के मोर्चे पर एक भयंकर तबाही से बचने में मदद की. वे इंडिया टुडे के 2021 के सुर्खियों के सरताज हैं
सुधार शिरोमणि
पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री के सुधार एजेंडे पर आहिस्ता-आहिस्ता अमल हुआ. दूसरे कार्यकाल में वे भारत के आर्थिक फलक के सुधारों पर तेज रफ्तार से आगे बढ़े और 2021 में निजीकरण पर जबरदस्त जोर दिया, जिसमें श्रम कानूनों को सरल बनाने के साथ पीएसयू की परिसंपत्तियों का मौद्रीकरण भी था. अलबत्ता इन्हें कामयाबी के साथ जमीन पर उतारने की चुनौतियां कायम हैं
स्क्रीन को चमकाने वाले चेहरे
अक्षय कुमार ने अपनी बेल बॉटम और फिर सूर्यवंशी से दर्शकों को फिर थिएटरों में खींचा; और सान्या मल्होत्रा ने पगलैट और मीनाक्षी सुंदरेश्वर में शानदार अदाकारी से घर पर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया, दोनों ओटीटी पर रिलीज हुईं
खिसक गया नैतिक आधार
क्रूज शिप पर ड्रग भंडाफोड़ केस में बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान का बेटा गिरफ्तार किया गया. लेकिन यह मामला उलटा पड़ गया, जिससे जांच करने वाली एजेंसी नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की साख पर लगा बट्टा. इससे नशीले पदार्थों के सेवन से जुड़े कानूनों में संशोधन की जरूरत पर भी बहस शुरू हो गई
दमदार चुनौती
ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी की अपराजेयता का मिथ यकीनन चकनाचूर कर दिया. भाजपा के उत्तेजक चुनाव प्रचार, ध्रुवीकरण के हथकंड़ों और भारी संसाधन झोंकने के बावजूद 2021 में पश्चिम बंगाल के चुनाव में उनकी शानदार जीत ने विपक्षी खेमे में नई उम्मीदें जगा दी हैं. अब वे लोकसभा की लड़ाई के लिए उन्हें मोदी का सबसे काबिल प्रतिद्वंद्वी मान रहे हैं.
स्वर्ण मानक
ओलंपिक में भारत के लिए पहला और व्यक्तिगत स्पर्धाओं में दूसरा स्वर्ण पदक जीतकर चोपड़ा ने 1.3 अरब देशवासियों को ऐसे वर्ष में सिर ऊंचा करने का मौका दिया, जब खेल में कई निराशाएं हाथ लगी
जात न पूछो 'इश्क' की
तेजस्वी-रेचल के अंतरधार्मिक विवाह पर बस थोड़ी हलचल हुई लेकिन बिहारी समाज ने इसे ज्यादा हवा न देकर साबित कर दिया कि वो सचमुच प्रगतिशील है
ओमिक्रॉन से सावधान
ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों की वजह से कोविड की तीसरी लहर का अंदेशा पैदा होने के साथ ही केंद्र ने बूस्टर शॉट कार्यक्रम का खुलासा किया और राज्यों ने आनन फानन प्रतिबंध लगाए
आंसू बने अंगारे
गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जब एकबारगी अपने मकसद से भटका लग रहा था और अन्य किसान नेता पस्त पड़ने लगे थे तब भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने लगभग अकेले ही इसकी दिशा बदल दी. आखिरकार सर्वशक्तिमान केंद्र सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े, कानूनों को निरस्त करना पड़ा और किसानों से माफी मांगनी पड़ी
मशीनों का उड़ता झुड
नवोन्मेषक
सफलता का सुंदर चेहरा
उद्यमी
फेंक जहां तक भाला जाए
खेल
टूट गया चोर बाजार का तिलिस्म
मेरठ के सोतीगंज में 25 साल से चल रहा चोरी की गाड़ियों काट कर निकाले गए कलपूर्जी का 1,000 करोड़ रुपए से अधिक का सालाना कारोबार अब ठप हो चुका है
गालिब छुटी ना शराब
मदिरापान के बेहद शौकीन मिर्जा गालिब का एक चर्चित शेर है 'गालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी /पीता हूं रोज-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में." लेकिन बिहार में कंबखत शराब है कि छूटने का नाम नहीं ले रही. सूबे में बीते करीब पांच साल से शराबबंदी है लेकिन आसमान में चाहे बादल छाए हों या न छाए हों, चांदनी रात हो या कड़कती धूप हो, कोई फर्क नहीं पड़ता. बिहार में अंतरराज्यीय सीमाओं से तस्करी से आने वाली देसी और विदेशी शराब जम कर पी जा रही है. खुद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की बात पर यकीन करें तो रात दस बजे के बाद राज्य के आइएएस और आइपीएस अफसर समेत बड़े-बड़े अधिकारी शराब पीते हैं, मगर उन्हें कोई नहीं पकड़ता. यहां तक सूबे में चोरी-छुपे बन रही जहरीली शराब पी कर लोग मर रहे हैं. आलम यह है कि 13 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में अब तक चार लाख से ज्यादा शराब पीने और पिलाने वाले लोग गिरफ्तार हो चुके हैं. इनमें ज्यादातर हैं. कोठी और बंगले वाले वीआइपी शराबी पुलिस की पकड़ से कोसों दूर हैं. पुलिस और अदालतों का काम बेवजह बढ़ा है. हर साल करोड़ों रुपए के रेवेन्यू का नुक्सान हो रहा है सो अलग. बिहार में एक समानांतर शराब माफियाराज विकसित हो चुका है. युवा नशे के दूसरे खतरनाक विकल्प तलाश चुके हैं. महिलाओं के खिलाफ हिंसा में भी अपेक्षित कमी नहीं आई है. विपक्ष और अब तो सत्ता के सहयोगी दल तक शराबबंदी पर सवाल उठा रहे हैं. आखिर इतने अच्छे गांधवादी इरादे के बावजूद नीतीश सरकार से चूक कहां हो रही है? दुनिया भर में शराबबंदी के प्रयोग नाकाम रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी की समीक्षा करने तक को राजी नहीं. इंडिया टुडे के विशेष संवाददाता पुष्यमित्र ने हकीकत जानने के राज्य के लिए विभिन्न इलाकों का दौरा करके हालात का लिया जायजा. एक रिपोर्ट:
मिल गया सही सुर
संगीत
पर्यावरण के लिए फिक्रमंद
राजनीति
नई नस्ल 100 नुमाइंदे
राजनीति, कारोबार, सिनेमा, विज्ञान और कला के क्षेत्र के वे कामयाब युवा जो आने वाले कल में भारत का प्रतीक बनेंगे