CATEGORIES
فئات
दिल्ली के दंगों के पीछे कौन
दिल्ली में दंगे कैसे हुए, इस पर तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं। चूंकि दिल्ली पुलिस सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में आती है, लिहाजा दंगों के लिए केंद्र सरकार पर सवाल उठने ही थे और उठे भी। लेकिन मीडिया और राजनीति का एक कर्मकांड है। दंगों के लिए किसी को बलि बनाना। जिस तरह का आज का राजनीति एवं मीडिया का विमर्श है, उसमें दंगों के लिए अमित शाह को बलि का बकरा बनाने की कोशिश शुरू हो गई। कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 28 फरवरी को कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस करके और राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान अमित शाह का इस्तीफा मांगकर इस विमर्श को मंच जरूर दे दिया। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या अतीत में कांग्रेसी शासन में हुए दंगों में कभी किसी गृहमंत्री से इस्तीफे मांगे गए। कांग्रेस के इतिहास पर नवंबर 1984 का दंगा कालिख की तरह छाया हुआ है। लेकिन क्या उस वक्त के गृहमंत्री पामुलपति वेंकट नरसिंह राव से किसी ने इस्तीफा मांगा। जैसे ही प्रत्युत्तर में यह सवाल उछलता है, अमित शाह के इस्तीफे की मांग बेमानी हो जाती है।
परीक्षा के दिन क्या करें
विद्यार्थियों के जीवन में परीक्षा का दिन काफी भय और उलझन का होता है। परीक्षा की काफी अच्छी तैयारी के बावजूद एक छात्र के लिए यह दिन तनाव से भरा होता है। सच पूछे तो एक छात्र के जीवन में परीक्षा की चिंता स्वाभाविक है और इस कठिन राह से गुजर करके ही वह उत्कृष्टता को प्राप्त कर पाता है।
दिल्ली को इस्लामाबाद बनाना चाहते हैं शाहीनबागी
दिल्ली के शाहीन बाग में धरना चलते हुए 2 महीनों से अधिक का वक्त बीत चुका है। इतने वक्त में दिल्ली ने बहुत कुछ सहा है। दिल्ली की हालत और हालात पर कभी फिर बात करेंगे, आज बात शाहीनबागियों की।
कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व नहीं संभाल पा रहा अपनी 'किटी'
मध्य प्रदेश निकला तो राजस्थान भी निकल जायेगा हाथों से
गुणकारी गाजर
गाजर रक्त शुद्ध करनेवाली है। 10-15 दिन केवल गाजर के रस पर रहने से रक्तविकार, गांठ, सूजन एवं पाण्डुरोग जैसे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। इसमें लौहतत्त्व भी प्रचुरता में पाया जाता है। खूब चबा-चबाकर खाने से दांत मजबूत, स्वच्छ एवं चमकीले होते हैं तथा मसूढ़े मजबूत होते हैं।
घायल दिल्ली
सवाल तो बहुत हैं और सभी से हैं। शुरू से शुरू करें तो बात शुरू हुई थी नागरिकता कानून से, नहीं बल्कि शायद बात शुरू हुई थी तीन तलाक, धारा 370 और फिर राम मंदिर के फैसलों से। क्योंकि सीएए के विरोध प्रदर्शन में शामिल मुस्लिम महिलाएं और पुरुष ही नहीं खुद अनेक मौलाना भी टीवी डिबेट में यह कहते सुने गए कि हम तीन तलाक पर चुप रहे, 370 पर शांत रहे, राम मंदिर का फैसला भी सहन कर लिया लेकिन अब सीएए पर शांत नहीं रहेंगे।
गजवा-ए-हिन्द की एक झलक?
दिल्ली के दंगे पूरी तरह से सुनियोजित थे जिसकी तैयारी केजरीवाल सरकार बनने के बाद से ही शुरू हो गयी थी। 'आप' के पार्षद ताहिर हुसैन इस साजिश के सूत्रधार बनते हैं, अमानतुल्लाह खान का और केजरीवाल का मौन समर्थन पाकर। चुनावों के करीब पंद्रह दिनों के बाद 24 फरवरी को सुबह 11:00 बजे से ही ताहिर हुसैन ने लोगों को इकट्ठा करना शुरु कर दिया था। 12:00 बजे उस क्षेत्र के सभी मुस्लिम माता-पिता ने स्कूल से अपने बच्चों को निकालना शुरु कर दिया था। पूछे जाने पर बताया की दंगे होने वाले हैं लेकिन प्रिंसिपल ने उनकी बातों को गम्भीरता से नहीं लिया क्योंकि उन्होंने साफ-साफ कुछ भी नहीं बताया, तो उन्होंने सोचा की शायद ये लोग नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन में जा रहे होंगें। तब तक स्कूल मे सिर्फ हिंदुओं के ही बच्चे रह गए थे। मुस्लिम दुकानदार ने अपनी दुकान बन्द कर घर जा चुके थे। इसके बाद लगभग 02 बजे हजारों की संख्या में मुस्लिम भीड़ हिन्दुओं की गलियों में घुसते हुए रास्ते में आये पेट्रोल पंप फूंकती है।
कोरोना वायरस - वैश्विक आर्थिक अस्थिरता का संकट
भारत में कोरोना वायरस संकट अभी आरंभ ही हुआ है। यह आने वाले दिनों में कौन सा रूप लेता है, यह देखना होगा। इसके कारण हो सकता है उसका अर्थसंकट आने वाले दिनों में और गहरा हो। उससे बचने के लिए भारत को अभी से अपने आपको तैयार रखना चाहिए। मोदी सरकार आर्थिक मामलों में करीब-करीब संरक्षणवादी रुख ले चुकी है। संरक्षणवाद का मतलब है इस तरह की नीतियां बनाना जो आयात को हतोत्साहित करें और घरेलू उद्योग को प्रमुखता मिले। यह विचार बुरा नहीं लेकिन सवाल यह है कि घरेलू उद्योग को कितनी प्रमुखता मिल रही है।
किसी न्यायाधीश द्वारा प्रधानमंत्री की प्रशंसा नहीं अनुचित
सुप्रीम कोर्ट बार एशोसिएशन का प्रश्न उठाना गलत
भारतीय सैन्य उद्योग की क्षमताओं का आधार संभावनाएं और चुनौतियां
भारतीय सैन्य उद्योग की क्षमताओं का आधार संभावनाएं और चुनौतियां
शिखर पर कार्यकर्ता का सम्मान
जब भी दुनिया में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं की चर्चा होती है, भारत इस पर गर्व करते नहीं थकता। आजादी के तुरंत बाद जब भारत ने लोकतंत्र को अपनाया तो दुनिया को लगता था कि भारत का लोकतंत्र तार-तार हो जाएगा।
रक्षा उत्पादन से पांच ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी की खुलती राह
रक्षा उत्पादन से पांच ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी की खुलती राह
बजट 2020 की तीन वैचरिक विशेषताएं
बजट वर्ष भर की सबसे बड़ी आर्थिक घटना होती है। साधारणतः उसे आय-व्यय के लेखे-जोखे और नीति दस्तावेज की तरह देखा जाता है।
नींव की नई ईटें लगाता भारत
जब नींव की ईट लगाई जा रही होती है तो उस पर बहुत लोग ध्यान नहीं देते। पर असली बात तो यह है कि जिस नींव की ईट को जमीन के अंदर दफन कर दिया जाता है उसी की मजबूती पर ही कोई भवन टिका रह सकता है।
आस्तीन में पलते सांप?
शाहीन बाग हो या फिर रांची का हज हाउस, देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम पर चल रहा बवाल निरर्थक है। उसका कोई औचित्य नहीं है। शाहीन बाग का आंदोलन बहाना है। इसके पीछे सोची-समझी साजिश की बू आ रही है। इसका पर्दाफाश जल्द होना चाहिए। अन्यथा निरर्थक मुद्दों पर भारत में शाहीन बाग जैसा घिनौना खेल जारी रहेगा। पाकिस्तान की रुचि और आंदोलन के लिए विदेशों से बड़ी धनराशि का आना सह-अस्तित्व की भावना और सहिष्णुता के लिए खतरा है।
'मेक इन इंडिया' रक्षा उत्पादन में चुनौतियां
'मेक इन इंडिया' रक्षा उत्पादन में चुनौतियां
शिक्षा के मन्दिरों में हिंसा एवं राजनीति क्यों?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रविवार को हुई हिंसा को किसी विश्वविद्यालय में छात्रों के बीच हुई आपसी मारपीट की तरह नहीं देखा जा सकता, इस तरह की हिंसा को राजनीतिक, साम्प्रदायिक एवं जातीय संरक्षण प्राप्त है। यह एक षड्यंत्र है, जिसमें छात्रों को राजनीतिक हितों के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है।
राजनैतिक स्वार्थो की भेंट चढ़ता असम
राज्यसभा से नागरिकता संशोधन विधेयक पास होने के बाद से ही लगातार असम में इसका विरोध हो रहा है । इस बिल में यह प्रावधान किया गया है कि अब पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रहने वाले' अल्पसंख्यक समुदाय' जैसे हिन्दू, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय अगर भारत में शरण लेते हैं तो उनके लिए भारत की नागरिकता हासिल करना आसान हो गया है ।
बंगाल में प्रदर्शनकारियों का तांडव
संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ बंगाल के कई हिस्सों में पिछले कुछ दिनों से हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं जहां प्रदर्शनकारियों ने रेलवे स्टेशनों को आग लगाने के साथ ही सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है । यहां यह कहना आवश्यक है कि संशोधित कानून से समूचे पूर्वोत्तर भारत और पश्चिम बंगाल में आक्रोश है । स्थानीय लोगों को डर है कि यह अवैध आव्रजन की समस्या को और बढ़ा देगा । संशोधित कानून के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना झेलने वाले गैरमुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी ।
बंगाल में अपराध और हिंसा पर नहीं लग रही लगाम
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के अधिकारियों ने गुप्त जानकारी के आधार पर सैंडल के सोल में छिपाकर हांगकांग भेजे जा रहे ड्रग्स के एक कंसाइनमेंट को जब्त कर बड़ी सफलता हासिल की है। इस कंसाइनमेंट को कूरियर के जरिये विदेश भेजा जा रहा था। इस सिलसिले में एनसीबी की कोलकाता जोनल यूनिट ने दो ड्रग्स सप्लायरों को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार आरोपियों के नाम मुर्तजा अजीम और रिजवान अली हैं। दोनों पोर्ट इलाके के खिदिरपुर के रहने वाले हैं। सभी सैंडल के सोल के अंदर से 5.780 किलो व सप्लायरों के पास से 2.031 किलो चरस जब्त की गयी है।
परीक्षा का तनाव
परेशानियों को छुपायें नहीं, अपनों से खुल कर बातें करें और धैर्य के साथ आगे बढ़ते रहें
नागरिकता संशोधन कानून पर विवाद क्यों ?
नागरिकता संशोधन विधेयक को लोकसभा से दस दिसंबर को मंजूरी मिलते ही इसका खासतौर पर मुस्लिम समाज ने विरोध शुरू कर दिया । इसके बाद विपक्ष को लगा कि वह साल 2015 की तरह राज्यसभा में एक बार फिर इस विधेयक पर सरकार को हरा देगा । इसके लिए विपक्षी खेमे ने रणनीति भी बनाई ।
तीसरे विश्वयुद्ध की दस्तक
अभी हाल ही में अमेरिका ने ईरान के बाहुबली कमांडर जनरल सुलेमानी को मौत की नींद सुला दिया। जिससे ईरान और अमेरिका में घमासान युद्ध होने की संभावना है। इन दोनों देशों के युद्ध से पूरे विश्व में तीसरे विश्वयुद्ध की संभावना बढ़ गई है।
जिया जले, जान जले
दरअसल यह समझना बहुत जरुरी है की नागरिकता संशोधन बिल 2019 भारतीयों के लिए नहीं है, बल्कि ये उन लोगों के है जो भारतीय होने की इच्छा पाले में बैठे हुए हैं ऐसे में इस बात को समझने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए कि इस बिल से हम भारतीयों को डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस बिल के कानून बनने से ना ही किसी भारतीय की नागरिकता जाएगी और ना ही किसी को नागरिकता का कोई विशेष अधिकार मिलेगा या छिनेगा । ऐसे में अगर बिल का विरोध हिंसाजनक तरीके से हो रहा है तो इसका साफ मतलब है की इन के पीछे मानसिक दिवालियेपन के लोगों के निहित स्वार्थ या महत्वाकांक्षा काम कर रही है ।
क्या निकलेगा बजट की पोटली से ?
हर साल जब भी बजट आने को होता है, उससे लोगों को उम्मीदें बढ़ जाती हैं। जाहिर है कि इस बार भी लोगों को बजट से काफी उम्मीदें हैं। चूंकि इन दिनों अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब बताई जा रही है, जाहिर है कि ऐसे में उम्मीदें बढ़ना स्वाभाविक भी है।
क्या मुस्लिम महिलाएं और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार हैं?
सीएए को कानून बने एक माह से ऊपर हो चुका है लेकिन विपक्ष द्वारा इसका विरोध अनवरत जारी है। बल्कि गुजरते समय के साथ विपक्ष का यह विरोध 'विरोध' की सीमाओं को लांघ कर हताशा और निराशा से होता हुआ अब विद्रोह का रूप अख्तियार कर चुका है।
कौन जीतेगा बाजी ?
दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है और चुनावी सरगर्मियां गरमा रही है । इन चुनावों में भाजपा, कांग्रेस एवं आप के बीच संघर्ष होता हुआ दिखाई दे रहा है,
अर्थव्यवस्था समुद्र मंथना जागी है।
सरकार ने अर्थव्यवस्था को आने वाले समय के हिसाब से तैयार करने के लिए कदम उठाए वे हैं नोटबंदी, जीएसटी, रेरा आदि । ये कदम जरूरी थे, लेकिन उनके में जो सतर्कता बरतनी चाहिए थी वह कई बार दिखाई नहीं दी । सरकार को दुनिया में आ रहे बड़े बदलावों के मद्देनजर लोगों की ट्रेनिंग की व्यवस्था करनी चाहिए थी । यह करने में सरकार पूरी तरह से विफल रही है । हाल के वर्षों में हमने देखा है कि डेटा से संबंधित नौकरियां बहुत बढ़ रही हैं ।' ब्लॉकचेन', ' आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' और' इंटरनेट आफ थिग्स से जुड़ी नाकारया बहुत तेजी से बढ़ रही हैं ।
अनेक आकांक्षाए और बजट 2020
अर्थव्यवस्था किस दिशा में आगे बढ़ेगी यह केवल बजट से ही तय नहीं होगा।
विगत के गर्भ में आगत के संकेत
बीते साल की सबसे महत्वपूर्ण तारीख है, 23 मई.. इसी दिन सत्रहवीं लोकसभा के नतीजे आए । इन नतीजों ने भारतीय राजनीति के दो बड़े के भाग्य ही नहीं लिखे, बल्कि देश आने वाले भारत की तस्वीर को भी साफ कर दिया । साल 2018 के विधानसभा चुनावों में । कर्नाटक में कड़ी टक्कर देने के साथ ही छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान से भारतीय जनता पार्टी की सत्ताओं को उखाड़ फेंकने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उम्मीद पाल रखी थी कि सत्रहवीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस नई कहानी लिखकर केंद्र की सत्ता पर काबिज हो सकेगी । लेकिन 23 मई को जब ईवीएम मशीनें खुली तो उन्होंने कांग्रेस को चौंका दिया । बेशक उसकी सीटें 44 से बढ़कर 52 हो गई, लेकिन उसके साथ खड़ी भारतीय जनता पार्टी ने 282 की बजाय 303 सीटों की अजेय बढ़त के साथ भारी जीत हासिल की ।