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सुप्रचार का एक तरीका यह भी...
जो ईमानदारी से गुरुसेवा करते हैं उनमें गुरु-तत्त्व का बल, बुद्धि, प्रसन्नता आ जाती है।
अभेद दृष्टि लायें, चिंतन अनन्य बनायें
अपने को खोजोगे तो एक (परमात्मा) से दिल बँध जायेगा।
क्या है मूल समस्या व उसके समाधान में 'तुलसी पूजन दिवस' का योगदान
सत्यस्वरूप परमात्मा का पता न होना और संसार सच्चा लगना - यही सबसे बड़ी भूलभुलैया है।
तब हमें पता चलेगा कि उत्तरायण कितना मूल्यवान पर्व है !
दुराचार, अश्रद्धा या अहंकार ऐसा दुर्गुण है कि उससे सब योग्यताएँ नष्ट हो जाती हैं।
यह जिनके हाथ लगी उनका जीवन चमक उठा
आप अपना अपमान नहीं चाहते हैं तो दूसरों का अपमान करने से पहले विचार करिये ।
हर हृदय में ईश्वर हैं फिर भी दीनता-दरिद्रता क्यों?
भगवान के भजन से भगवान के ऐश्वर्य के साथ आपका चित्त एकाकार होता है।
जीवन को परमात्म-रस से भरे, जीने की कला सिखाये : गीता
आत्मा का रस जीव को आत्मा-परमात्मा से जोड़ देता है।
जीवन की सारी समस्याओं का हल : गुरु-समर्पण
भगवान और सद्गुरु के अधीन होना यह सारी अधीनताओं को मिटाने की कुंजी है।
बालक गृहपति की एकनिष्ठता
जिसके जीवन में संयम, व्रत, एकाग्रता और इष्ट के प्रति दृढ़ निष्ठा है, उसके जीवन में असम्भव कुछ नहीं है।
दीपोत्सव पर आत्मज्योति जगाओ !
भ्राजं गच्छ। हे पराक्रमशाली मानव ! तू प्रकाश को, आत्मज्योति को प्राप्त कर।' (यजुर्वेद : ४.१७)
बापू आशारामजी को जल्द-से-जल्द छोड़ा जाना चाहिए
ब्रह्मवेत्ता संत के दैवी कार्य में सच्चे हृदय से लग जाना ही उनकी सेवा है।
कर्जदार से बना दिया २ फैक्ट्रियों का मालिक
समदर्शी संतों के दैवी कार्य में भागीदार होने से ईश्वर के वैभव में भी आप लोग भागीदार हो जायेंगे।
श्राद्धकर्म व उसके पीछे के सूक्ष्म रहस्य
जिसने दूसरों के हृदय में छिपे हुए उस मालिक को संतुष्ट किया है, उसके मन में पवित्र विचार उत्पन्न होते हैं।
श्रीकृष्ण के जीवन से सीखें कृष्ण-तत्त्व उभारने की कला
जो सच्चे प्रेमरस (भगवत्प्रेम-रस) को समझे बिना संसार में प्रेम खोजते हैं वे दुःखी हो जाते हैं।
इस प्रकार से रक्षाबंधन मनाना है कल्याणकारी
परमात्मा के सिवाय कोई भी चीज मिलती है तो वह छूट जाती है।
कष्ट-मुसीबतों को पैरों तले कुचलने की कला
दुःख उससे दुःखी होकर मरने की चीज नहीं है, दुःख तो पैरों तले कुचलने की चीज है।
स्वास्थ्यवर्धक एवं उत्तम पथ्यकर ‘परवल'
ज्ञान की भूख लगे तो ब्रह्मज्ञानी के टूटे-फूटे शब्द भी ज्ञान बन जाते हैं।
खून की कमी (रक्ताल्पता) कैसे दूर करें?
आत्मलाभ की बराबरी ब्रह्मांड में और कोई लाभ नहीं कर सकता है।
ऋषि प्रसाद सेवाधारियों को पूज्य बापूजी का अनमोल प्रसाद- इस प्रसाद के आगे करोड़ रुपये की भी कीमत नहीं
ईश्वर ने हमको क्रियाशक्ति दी है तो ऐसे कर्म करें कि कर्म के बंधनों से छूट जायें।
आशारामजी बापू के साथ अन्याय कब तक ? संत-समाज
महान आत्मा तो वे हैं जो महान परमात्मा में ही शांत व आनंदित रहते हैं, परितृप्त रहते हैं।
मृतक की सच्ची सेवा
दुनिया के लोग चाहे कुछ भी कहें लेकिन दुःखी होना या न होना यह आपके हाथ की बात है।
परिस्थितियों के असर से रहें बेअसर
जब तक परिस्थितियों में सत्यबुद्धि रहेगी तब तक सच्चे जीवन के दर्शन नहीं हो सकते।
आत्मबल कैसे जगायें ?
पृथ्वी का राज्य मिल जाय लेकिन आत्मराज्य का पता नहीं मिलता है तो उस राज्य को लात मारो।
सत्संग परम औषध है
जब तक जीवन में सत्संग नहीं मिला तब तक मिथ्या का संग होगा।
एकादशी को चावल खाना वर्जित क्यों ?
असाधन से बचनेमात्र से आप साधन के फल को बिल्कुल यूँ पायेंगे!
स्वास्थ्यरक्षक दैवी उपाय
हम जब ईश्वर की शरण जाते हैं तो तन और मन की थकान मिट जाती है।
महान-से-महान बना देता है सत्संग
सत्संग (सत्यस्वरूप परमात्मा का संग) एक बार हो जाय तो फिर उसका वियोग नहीं होता।
गुरुकुल शिक्षा-पद्धति की आवश्यकता क्यों ?
सत्संग अपने-आप नहीं होता, करना पड़ता है । कुसंग अपने-आप हो जाता है।
केवल नारियों की निंदा का आरोप झूठा है
विकारी सुखों को जब तक भोगा नहीं तब तक आकर्षक लगते हैं और भोगो तो पछताना ही पड़ता है।
शास्त्रानुकूल आचरण का फल क्या ?
वैराग्यप्रधान व्यक्ति इसी जन्म में अपने आत्मा को जान लेता है।