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अपने जन्मदिन व महापुरुषों के अवतरण दिवस पर क्या करें ?
आत्मा-परमात्मा का साक्षात्कार सभी बड़प्पनों की पराकाष्ठा है।
देश-विदेश में गूंजी आवाज 'निर्दोष बापूजी को रिहा करो!
आत्मबोध होने के लिए ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु का सान्निध्य नितांत जरूरी है।
बालक के चरित्र ने पिता को किया विस्मित
परमात्मा में विश्रांति पाने से मन-बुद्धि में विलक्षण लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
ध्यान में उपयोगी महत्त्वपूर्ण १२ योग
परमात्म-ध्यान के पुण्य के सामने बाहर के तीर्थ का पुण्य नन्हा हो जाता है।
गुरुकुल शिक्षा-पद्धति की आवश्यकता क्यों ?
गुरु की आज्ञा पालना यह बंधन नहीं है, सारे बंधनों से मुक्त करनेवाला उपहार है।
ऐसे ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की महिमा वर्णनातीत है !
आत्मा-परमात्मा का साक्षात्कार सभी बड़प्पनों की पराकाष्ठा है।
आप आत्मशिव को जगाओ
हे जीवात्मा! तुम चैतन्य हो, अमर हो । अपने को जानकर मुक्त हो जाना तुम्हारा कर्तव्य है ।
नारी का सम्मान व अपमान कब ?
बड़े-में-बड़ा पाप है शरीर को मैं मानना ।
विद्यार्थी संस्कार...तो जो भी काम तुम करोगे उसमें सफलता मिलेगी
जो व्यक्ति ईश्वर के रास्ते चलता है वह धैर्य न छोड़े तो पहुँच जायेगा।
विश्वमाता है श्रीमद्भगवद्गीता
जिसके चित्त में समता होती है, उसके जीवन की कीमत होती है।
यह है संसार की पोल !
संसारी चीज में कहीं भी प्रीति की, आसक्ति की तो फँसना है।
...तो ३३ करोड़ देवता भी हो जायें नतमस्तक!
जो सदा प्राप्त है वह कभी हमें छोड़ता नहीं और जो प्रतीत होता है वह सदा हमारे पास टिक नहीं सकता।
भाइयों ने मुख मोड़ा लेकिन भगवान का चिंतन न छोड़ा
सत्यस्वरूप परमात्मा को पाने की जिज्ञासा तीव्र हो गयी तो समझो आपके भाग्य में चार चाँद लग गये।
सेवा का रहस्य
अपनी वासना मिटाने के लिए जो करते हो वह सेवा है।
तुम भी बन सकते हो अपनी २१ पीढ़ियों के उद्धारक
प्राचीन काल की बात है। नर्मदा नदी जहाँ से निकलती है वहाँ अमरकंटक क्षेत्र में सोमशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम था सुमना । सुमना के पुत्र का नाम था सुव्रत । सुव्रत जिस गुरुकुल में पढ़ता था वहाँ के कुछ शिक्षक, आचार्य ऐसे पवित्रात्मा थे कि वे उसे ऐहिक विद्या पढ़ाने के साथ योगविद्या और भगवान की भक्ति की बातें भी सुनाते थे।
तुम्हारे जीवन की संक्रांति का भी यही लक्ष्य होना चाहिए
जब तक सर्व दुःखों की निवृत्ति एवं परमानंद की प्राप्ति का लक्ष्य नहीं है तब तक राग-द्वेष की निवृत्ति नहीं होती।
तुलसी-पूजन से होती सुख-समृद्धि व आध्यात्मिक उन्नति
अच्छी बात जो ठान लें उसको पूरा करें और बुरी बात को निकालने की ठान लें, आपकी आत्मशक्ति बढ़ जायेगी।
बल एवं पुष्टि वर्धक तिल
सत्संग का अमृत पीने से व्यक्ति संयमी और योगी बनता है।
हर संबंध से बड़ा है गुरु-शिष्य का संबंध
जो सुख के दाता हैं उनका नाम है सद्गुरु'।
चंचल मन से कैसे पायें अचल पद ?
नित्य की स्मृति अगर नित्य रहे तो परमात्मप्राप्ति सुलभ हो जाती है।
मेरे गुरुदेव की महिमा अवर्णनीय है
अपने आत्मा-परमात्मा के साथ नाता जोड़ने की सहायता जो पुरुष देते हैं, वे चिरआदरणीय होते हैं।
ध्यान की जितनी प्रगाढ़ता उतना लाभ
बार-बार ध्यान-समाधि का सुख भोगने से व्यक्ति विकारों के सुख से ऊपर उठ जाता है।
ऐसा इंटरव्यू जो न कभी देखा न सुना
अपनी योग्यता विकसित करने के लिए अपने को तत्परता से कार्य करना चाहिए।
इस पर कभी आपने सोचा है ?
जो मरने के बाद भी साथ नहीं छोड़ता, थोड़ा समय अकेले रहकर उस (परमात्मा) के विषय में विचारें।
ॐकार का महत्त्व क्या और क्यों ?
जप करते-करते रजो-तमोगुण शांत हो जाता है और सात्त्विक सुख का द्वार खुलता है।
विद्यार्थी संस्कार - जिसे दुनिया ने ठुकराया उसे संत ने अपनाया
दुनिया में ऐसा कोई हितैषी नहीं जितने हमारे सद्गुरु हितैषी होते हैं।
जीवन बदलने का सामर्थ्य
जैसे बीज में वटवृक्ष छुपा है ऐसे ही आपके अंदर ब्रह्मांडीय ऊर्जा का बीज परमात्मा' छुपा है।
ब्रह्मवेत्ता संत ने क्यों किये ३ कुटियाओं को प्रणाम ?
जो रब की मस्ती में रहते हैं उनके सुमिरन-दर्शन से हम पवित्र होते हैं।
असावधानी से की हुई भलाई बुराई का रूप ले लेती है
परिणाम में दुःख आये ऐसा काम बुद्धिमान नहीं करते ।
ईमानदारी सत्यस्वरूप ईश्वर को संतुष्ट करती है
आज विद्यालय-महाविद्यालयों में ऐसी पढ़ाई होती है कि बस रटारटी करके प्रमाणपत्र लो और फिर नौकरी के लिए भटकते रहो। विद्यार्थियों की आत्मशक्ति, आत्मचेतना जागृत ही नहीं होती।