उनका मकसद है कि किसी तरह 2024 के आम चुनाव से पहले वे केंद्र में सत्ताधारी भाजपा के खिलाफ एक गठबंधन बना लें. हालांकि अभी तक उनकी ये कोशिशें कोई ठोस आकार नहीं ले पाई हैं, दूसरी तरफ भाजपा जरूर केसीआर को उनके ही गढ़ तेलंगाना में बराबरी की टक्कर देने की रणनीति जमीन पर उतारती दिख रही है.
तेलंगाना में इसी साल अक्तूबर में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं. 119 विधायकों वाली तेलंगाना विधानसभा में भाजपा को 2018 के चुनावों में सिर्फ एक सीट हासिल हुई थी. इसके बावजूद पार्टी ने इस साल के 'मिशन 90' का लक्ष्य रखा है. 2018 की एक सीट और सिर्फ सात प्रतिशत की वोट हिस्सेदारी को देखते हुए यह लक्ष्य किसी सपने सरीखा लगता है लेकिन भाजपा नेता अपने दावों में इस बात को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे हैं कि दक्षिण भारत में कर्नाटक के बाद तेलंगाना ही वह राज्य बनने वाला है, जहां भाजपा सरकार बना सकती है.
तेलंगाना में भाजपा के अधिक जोर लगाने की एक अहम वजह यह है कि विधानसभा के फीके नतीजों के बाद 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी को राज्य की 17 में से चार सीटों पर जीत हासिल हुई. वहीं वोट प्रतिशत भी सात से बढ़कर 19.45 हो गया. यही नहीं, भाजपा कुल 21 विधानसभा क्षेत्रों में सबसे आगे रही. भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव कहते हैं, "बीस से ज्यादा विधानसभा सीटों पर भाजपा की बढ़त ने पार्टी में एक नई उम्मीद जगाई कि अगर सही रणनीति के साथ मेहनत की जाए इस दक्षिण भारतीय राज्य में हम सत्ता में आ सकते हैं."
तेलंगाना में अपना असर बढ़ाने के लिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी. राज्य से सिर्फ चार सांसद होने के बावजूद सिकंदराबाद से चुने गए जी. किशन रेड्डी को मोदी सरकार में बेहद महत्वपूर्ण गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया. इससे प्रदेश में रेड्डी का कद बढ़ा और जुलाई 2021 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाकर दो मंत्रालय दिए गए. वहीं करीमनगर से लोकसभा चुनाव जीतने वाले बंडी संजय कुमार को मार्च, 2020 में तेलंगाना का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.
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