जलवायु परिवर्तन ने 2004 में अपनी निरंतर गति जारी रखी. एक बार डेटा आ जाने के बाद 2024 गर्मी के रिकॉर्ड के मामले में यकीनन 2023 को पछाड़ देगा. वैसे, यह कोई अपवाद नहीं है; दर्ज किए गए सभी 10 सबसे गर्म साल 2010 के बाद के हैं. फिर भी जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अभी कम नहीं हुआ है बल्कि बढ़ रहा है. 2023 के दौरान उत्सर्जन में 1 फीसद से ज्यादा इजाफा हुआ. वैज्ञानिकों का कहना है कि गर्मी 2030 तक चरम पर पहुंचने के बाद 25 फीसद से 40 फीसद तक घटेगी.
दरअसल, इसका आम लोगों की जिंदगी से क्या वास्ता है? दक्षिण एशिया में रहने वाले हमारे जैसे लोगों को यकीनन बार-बार अत्यधिक गर्मी की घटनाओं, बाढ़ और सूखे का सामना करना होगा. सेहत और अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत असर पड़ेगा. चूंकि गर्मी के मौसम में इंसान की उत्पादकता गिरती है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि 2030 तक दक्षिण एशिया में श्रम उत्पादकता में 5 फीसद की कमी आएगी, जो 4.3 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के नुक्सान के बराबर है. जलवायु परिवर्तन की वजह से से ही पाकिस्तान में 2022 की बाढ़ आई थी, जिसने देश की एक-तिहाई भूमि को जलमग्न कर दिया, लगभग 3.3 करोड़ लोगों को प्रभावित किया और 80 लाख लोगों के घरों को उजाड़ दिया. जलवायु परिवर्तन न केवल किसी देश को वर्षों पीछे धकेल सकता है, बल्कि यह मौजूदा खतरों के प्रभाव को भी कई गुना बढ़ा सकता है. मसलन, ज्यादा तापमान ज्यादा ओजोन से जुड़ा हो सकता है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ सकता है. जलवायु परिवर्तन भारत और दक्षिण एशिया में समृद्धि और सुरक्षा के उपाय के काम को कई तरह से और भी मुश्किल बना सकता है.
खासकर दुनिया के गरीब और सबसे कमजोर लोगों के लिए लगातार बढ़ते खतरे के इस संदर्भ ने इस साल अजरबैजान की राजधानी बाकू में आयोजित वार्षिक जलवायु वार्ता की पृष्ठभूमि बनाई. बाकू में वित्त पर ध्यान दिया गयाः क्या विकसित देश विकासशील देशों को भविष्य में कम कार्बन पैदा करने की कोशिश करके अपरिहार्य वार्मिंग के लिए अनुकूलन को सक्षम करने के लिए ज्याद वित्त देंगे ? अब जैसा कि यह आम बात हो चली है, वार्ताएं तनावपूर्ण थीं और आखिरी वक्त तक चलीं.
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