दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय परिसर के यूरोपियन गेस्ट हाउस की ऐतिहासिक और खूबसूरत इमारत के सामने ढाई एकड़ में फैला एक बड़ा सा तालाब है. लगभग सौ साल पुराना यह तालाब अक्सर परिसर में घूमने-फिरने वालों को अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है. पिछले साल विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे और सुंदर बनाने के ख्याल से इस तालाब की अंदरूनी दीवार (कछार) के किनारे ईंटें लगवा दीं. ईंटों की कुछ कतारें उसकी पेटी के हिस्से में भी बिछा दी गई थीं. मगर सौंदर्यीकरण की प्रक्रिया अब विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए मुसीबत की वजह बन गई है. प्रशासन बहुत मेहनत से लगी इन ईंटों को अब उखड़वा रहा है.
दरअसल, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एक स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता नारायणजी चौधरी की शिकायत पर सुनवाई करते हुए प्रशासन को तालाब के किनारे से ईंटें उखाड़ने का आदेश दिया है. एनजीटी के मुताबिक, अगर विश्वविद्यालय तालाब को सुंदर बनाना चाहता है तो वह उसके किनारे पेड़ लगाए और उसकी कछार पर ईको पार्क बनवा ले. मगर वहां ईंट, बालू या कंक्रीट का कोई काम न करवाए. मिट्टी के कटाव रोकने के लिए तालाब के किनारे घास भी लगवाई जा सकती है.
एनजीटी का यह फैसला आने वाले दिनों में तालाब और दूसरे जलस्रोतों के सौंदर्यीकरण के मामले में एक मानक बन सकता है. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सिर्फ दरभंगा विश्वविद्यालय के इस तालाब में ही नहीं, इस वक्त देश के हजारों तालाबों में सौंदर्यीकरण इसी तरह चल रहा है.
आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत सरोवर मिशन की शुरुआत की थी. इसके तहत देश के हर जिले में 75 तालाब बनाने का लक्ष्य रखा गया है. बिहार में अब तक ऐसे 804 तालाबों का निर्माण हो चुका है. मिशन की गाइडलाइन के मुताबिक, तालाबों के सौंदर्यीकरण पर सरकारी पैसा खर्च नहीं होगा. लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपने पैसे से घाट और दूसरी चीजें बनवाना चाहे तो बनवा सकता है, इसमें सीएसआर का पैसा भी खर्च हो सकता है. इसी नाम पर ज्यादातर तालाबों को सीमेंट से घेरा जा रहा है या फिर विश्वविद्यालय के तालाब की तरह उनके कछार और तली पर ईंटें जमाई जा रही हैं.
هذه القصة مأخوذة من طبعة March 08, 2023 من India Today Hindi.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة March 08, 2023 من India Today Hindi.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"