मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में प्रवेश करें और रिलायंस जियो की चमक-दमक आपका ध्यान आकृष्ट न करे, ऐसा हो नहीं सकता. यहीं जियो वर्ल्ड गार्डन है जिसमें अरिजित सिंह और प्रतीक कुहाड़ से लेकर एड शीरन और स्क्रीलेक्स तक न जाने कितनी सेलेब्रिटी परफॉर्म कर चुकी हैं; फिर कई लग्जरी स्टोर, रेस्त्रां और यहां तक कि एक ड्राइव-इन थिएटर वाला विशाल मॉल जियो वर्ल्ड ड्राइव भी है. इस 18.5 एकड़ के जियो वर्ल्ड सेंटर के अंदर फाउंटेन ऑफ जॉय और जियो कन्वेंशन सेंटर भी हैं, जहां सबसे बेहतरीन और भव्य प्रदर्शनियों या ट्रेड शो की मेजबानी की जा सकती है. अब इसी विशाल परिसर का एक और बड़ा आकर्षण बना है: नीता मुकेश अंबानी सांस्कृतिक केंद्र यानी एनएमएसीसी. 2,000 सीटों की क्षमता वाला ग्रैंड थिएटर, 250 सीट वाला स्टुडियो थिएटर और 125 सीटर क्यूब के रूप में तीन सभागार और आर्ट हाउस कहलाने वाला चार मंजिला आर्ट स्पेस. एनएमएसीसी में तैयार इन स्थानों से भारत में मंचीय और दृश्य कलाओं को तगड़ा प्रोत्साहन मिलने वाला है.
दुनिया के बड़े सांस्कृतिक केंद्रों की टक्कर का एक केंद्र बनाना नीता अंबानी का वर्षों पुराना सपना था. भरतनाट्यम में प्रशिक्षित और मुंबई के नरसी मोनजी कॉलेज में थिएटर से जुड़ी रहीं अंबानी को हमेशा से कला के प्रति गहरा लगाव रहा है. वे अपने भव्य घर एंटीलिया में बड़ी अंतरराष्ट्रीय शख्सियतों और समूहों के लिए और इसके अलावा देशभर में रिलायंस के विभिन्न कार्यक्रमों में नामचीन शास्त्रीय गायकों और नृत्यांगनाओं को प्रदर्शन के लिए बुलाती ही रही हैं. एनएमएसीसी के लोकार्पण के मौके पर अंबानी के शब्द थे, "संस्कृति तो आपसी समझ, सहिष्णुता और एक-दूसरे के प्रति सम्मान से मिलकर बना वह धागा है जो विभिन्न समुदायों और मुल्कों को एक साथ जोड़ता है. संस्कृति मानवता के लिए उम्मीदें और खुशियां बढ़ाने का साधन है. इसलिए एक कलाकार के रूप में मुझे आशा है कि यह केंद्र कला, कलाकारों और दर्शकों के लिए बेहतरीन जगह साबित होगा. यह एक ऐसी जगह है जहां हमारे लोग अपनी विरासत पर गर्व महसूस कर सकें."
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"