एक इंच का भी फासला नहीं था बंदूक की नली और उसकी कनपटी के बीच बीच में अगर कुछ था तो उसकी पहचान बन चुका सिर पर बंधा वह सफेद साफा, जो ठीक उसी तरह बंधा था जैसे उसके तांगेवाले पिता इलाहाबाद की चिलचिलाती गर्मियों में अरसा पहले बांधा करते थे. अचानक न जाने कहां से निकली एक बंदूक, दहकती रोशनी की कौंध, ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार और उत्तर प्रदेश का दुर्दीत माफिया डॉन हट्टा-कट्टा अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ जमीन पर ढेर हो गए. उनके साथ अपराध का वह साम्राज्य भी ढह गया जिसने लंबे वक्त से सत्ता की राजनीति के दूसरे हिस्सों का वेश धारण कर लिया था - इसमें लोकसभा का एक और उत्तर प्रदेश विधानसभा के कई कार्यकाल शामिल हैं. लाइव टीवी पर माफिया - सियासतदां की हत्या इतनी नाटकीय थी कि दुनिया भर के मीडिया में उसे जगह मिली, और शायद उस नैरेटिव से अनचाहा भटकाव भी थी जिसका ताना-बाना उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बुन रहे हैं. लेकिन गैर-इरादतन जुड़ाव के हिसाब से भी तस्वीर का वह ठहरा हुआ टुकड़ा ऐसा लम्हा बन गया है जिसमें कानून की एक महाकाव्यात्मक लड़ाई अपनी काली, सफेद और धूसर रंगतों के साथ समाहित है. यह लड़ाई माफियाओं के गहरे रचे-बसे उस नेटवर्क के खिलाफ है जिसने दशकों से राज्य की राजनैतिक अर्थव्यवस्था का दम घोंट रखा है. यह वह लड़ाई है जिसने अराजक जंगल के कुछ हिस्सों की सफाई कर दी है, जबकि उसकी जगह सवालों का एक बादल भी छोड़ दिया है. इस लड़ाई ने इंसाफ की परिभाषा को कगार पर धकेलकर उसका एक नया अध्याय लिख दिया है.
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शोख सनसनी दिल्ली की
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हिंदुस्तानी सिनेमा की एक नई रौशनी
फिल्मकार पायल कपाडिया इन दिनों एक अलग ही रंगत में हैं. वजह है उनकी फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट और उन्हें मिल रही विश्व प्रसिद्धि. उनका सफर एक बड़े सिनेमाई मुकाम पर जा पहुंचा है. अब यहां से इस जुनूनी आर्टिस्ट का करियर एक नई उड़ान लेने को तैयार
रतन टाटा जिन्हें आप नहीं जानते
पिछले महीने 86 वर्ष की उम्र में दिवंगत हुए रतन टाटा. भारत की सबसे पुरानी विशाल कंपनी के चेहरे रतन को हम में से ज्यादातर लोगों ने जब भी याद किया, वे एक सुविख्यात सार्वजनिक शख्सियत और दूसरी ओर एक रहस्यमय पहेली के रूप में नजर आए.
विदेशी निवेश का बढ़ता क्लेश
अर्थव्यवस्था मजबूत नजर आ रही है, मगर विदेशी निवेशक भारत पर अपना बड़ा और दीर्घकालिक दांव लगाने से परहेज कर रहे हैं
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मोहन चरण माझी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार राज्य में 'जनता प्रथम' के सिद्धांत वाली शासन प्रणाली स्थापित कर रही. उसने नवीन पटनायक के दौर वाले कथित नौकरशाही दबदबे को समाप्त किया. आसान पहुंच, ओडिया अस्मिता और केंद्रीय मदद के बूते बड़े पैमाने पर शुरू विकास के काम इसमें उसके औजार बन रहे
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पुलिस तक पर्याप्त नहीं
गुजरात के तटीय इलाके में मादक पदार्थों की तस्करी और शहरी इलाकों में लगातार बढ़ती प्रवासी आबादी की वजह से राज्य पुलिस पर दबाव खासा बढ़ गया है. ऐसे में उसे अधिक क्षमता की दरकार है. मगर बल में खासकर सीनियर अफसरों की भारी कमी है. इसका असर उसके मनोबल पर पड़ रहा है.