सुब्रमण्यम जयशंकर ने मई 2019 में विदेश मंत्रालय की कमान संभाली. इसलिए उनका कार्यकाल नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के बराबर-बराबर चलता है. उनके काम संभालने के कुछ ही महीनों के भीतर केंद्र ने अनुच्छेद 370 को मुर्दा इबारत में बदल दिया और जम्मूजम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. इस पर चीन और पाकिस्तान से विरोध का तूफान उठ खड़ा हुआ. जहां कई देशों ने भारत के कदम का समर्थन किया, वहीं बहुत-से इस्लामी देशों, ब्रिटेन, कनाडा और यूरोपीय संघ और कई दूसरों ने चिंता जाहिर की. जब चीन और पाकिस्तान ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में उठाने की कोशिश की तो पूर्व विदेश सचिव जयशंकर ने खुद अपनी यूरोप और अमेरिका की यात्राओं के दौरान जबरदस्त अभियान चलाया. उन्होंने दूसरे देशों में भी भारत के मिशनों को लामबंद करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय को समझाया कि कश्मीर के हित को भारत बहुत अच्छी तरह से समझता है और इससे भी अहम यह कि यह भारत का अंदरूनी मामला है.
भारत को मिलने वाले सम्मान से जाहिर था कि उसकी बात का वजन है. उसकी अर्थव्यवस्था का आकार भी एक पहलू है पर उतना बड़ा नहीं. आदर-सम्मान एक तरह का अमूर्त मूल्य है जिसे तरह-तरह के कूटनीतिक तरीकों से जुटाना पड़ता है. कोविड-19 महामारी को ही लीजिए. विदेश मंत्रालय ने दूसरे महकमों के साथ मिलकर अन्य देशों की मदद के लिए संसाधन जुटाए. 2020 में पहली लहर के शिखर के दौरान भारत की चिकित्सा कूटनीति ने 120 प्रभावित देशों को पैरासिटामॉल और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की सप्लाइ की. जनवरी 2021 में भारत के वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम के तहत उन देशों को टीके भेजे गए जिन्हें इनकी सख्त जरूरत थी. अभी तक 96 देशों को करीब 16 करोड़ खुराक दी गई हैं.
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"