
केंद्र को स्पष्ट तौर पर शीर्ष कोर्ट की 2002 की डिक्री को ध्यान में रखने को कहा गया, जिसके तहत हरियाणा के साथ जल बंटवारे की अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करना पंजाब के लिए बाध्यकारी है. इसके साथ ही केंद्र को पंजाब के इस दावे की असलियत पता लगाने को भी कहा गया है कि उसके पास पड़ोसी राज्य को देने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2024 तक टाल दी है लेकिन उसकी टिप्पणियों और निर्देशों के संदर्भ में पंजाब में राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं और राज्य के किसान संघों, सामाजिक संगठनों और राजनैतिक दलों ने अपना-अपना मोर्चा संभाल लिया है.
एसवाइएल मुद्दे पर घिरी भगवंत मान की सरकार ने महाधिवक्ता विनोद घई को 'बर्खास्त' करके उनकी जगह वरिष्ठ वकील गुरमिंदर सिंह को नियुक्त कर दिया. पंजाब में पिछले साल मार्च में आम आदमी पार्टी (आप) के सत्ता में आने के बाद से महाधिवक्ता पद पर यह तीसरी नियुक्ति है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में राज्य के हितों के साथ समझौता करने का आरोप लगने के बाद अपना पक्ष मजबूत करने के इरादे के साथ मान ने अपने प्रतिद्वंद्वियों-पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वारिंग, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़, शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा-को संबंधित मुद्दों पर खुली बहस की चुनौती दी. लेकिन मान तब हैरान रह गए जब इनमें से हर एक ने इस पर सहमति जता दी. तब से, मुख्यमंत्री और उनके पार्टी नेतृत्व दोनों ने इस मामले में चुप्पी साध ली है.
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