रेप - राजनीति ज्यादा पीडिता की चिंता कम
Sarita|September First 2024
देश में रेप के मामले बढ़ रहे हैं. सजा तक कम ही मामले पहुंचते हैं. इन में राजनीति ज्यादा होती है. पीड़िता के साथ कोई नहीं होता.
शैलेंद्र सिंह
रेप - राजनीति ज्यादा पीडिता की चिंता कम

रेप की तीसरी बड़ी घटना जो सुर्खियों में है वह पश्चिम बंगाल से जुड़ी है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा के निशाने पर रहती हैं. सरकारी अस्पताल में महिला डाक्टर की हत्या और रेप का मामला पूरे देश में चर्चा में है. बंगाल में रेप की घटना के भी राजनीतिक निहितार्थ हैं. रेप की घटनाओं में जब राजनीतिक लाभ जुड़ जाता है तो मामला संगीन हो जाता है. जब कोई राजनीतिक लाभ नहीं होता, इन घटनाओं की चर्चा नहीं होती, पुलिस मुकदमा दर्ज नहीं करती, समाज और मीडिया चर्चा नहीं करता है. यही कारण है कि रेप के आरोपी बहुत सारे मामलों में सजा पाने से बरी हो जाते हैं.

दरअसल, बलात्कार की घटनाओं में राजनीति ज्यादा होती है, पीड़िता के प्रति मर्म कम होता है. मीडिया भी इस तरह की खबरों को ज्यादा महत्त्व देता है. भारत में एक दिन में औसतन रेप की 87 घटनाएं होती हैं. 2017 से 2022 के बीच रेप के मामलों में 13.23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2022 में उत्तर भारत में रेप की 14,260 घटनाएं हुईं जोकि देश में हुई कुल घटनाओं की लगभग आधी हैं. इन में से कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो किसी घटना की चर्चा नहीं हुई.

कोविड के दौरान रेप की घटनाएं कम हुईं. अगर लौकडाउन का प्रभाव न होता तो आंकड़े ज्यादा भयावह होते. रेप के ज्यादातर मामले सामने नहीं आते. जिन मामलों में एफआईआर दर्ज होती है वही सामने आते हैं. घरों के अंदर सगेसंबंधियों द्वारा किए जाने वाले रेप दबा दिए जाते हैं. रेप की जिन घटनाओं में राजनीति का प्रभाव नहीं होता वे अखबारों के किसी पन्ने में एक कौलम की खबर बन कर रह जाती हैं.

पिछले 24 सालों में रेप की सब से चर्चित घटना 2012 में दिल्ली का निर्भया कांड था. यह चर्चित इसलिए था क्योंकि इस के सहारे उस समय की डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ राजनीति हुई. निर्भया रेप मामले के बाद महिला हिंसा विरोधी कानून में कड़े बदलाव किए गए. इस को आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 के रूप में जाना जाता है.

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