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पार्टीशन पर फिल्में और घाव महिलाओं में
सिनेमा और समाज का आपस में अटूट बंधन रहा है. बेहतर सिनेमा वही है जो समाज को आईना दिखा सके. अतीत में देश ने पार्टीशन की पीड़ा को झेला है, जिस पर कई फिल्में बनीं.
75 सालों में रसातल में रिसर्च
किसी भी देश की प्रगति में वहां की टैक्नोलौजी का बड़ा महत्त्व होता है. टैक्नोलौजी के लिए रिसर्च की जरूरत होती है. भारत मे साइंस और टैक्नोलौजी की फील्ड में सब से कम रिसर्च हो रही है. नतीजतन हमारे देश में जरूरत की हर चीज विदेशों से आई. जरूरत है कि रिसर्च को बढ़ावा दिया जाए और इस को जनता के लिए उपयोगी बनाया जाए.
75 साल में महिलाएं शिक्षा, दिशा और दशा
आजादी के 75 सालों में भी भारत अपनी करोड़ों बेटियों के लिए प्राइमरी शिक्षा तक की व्यवस्था नहीं कर पाया. इस से बड़ी शर्म की बात क्या होगी? उन्हें सिर्फ धर्म और सिर झुकाने की शिक्षा दी जा रही है.
आजादी के 75 साल कुछ पाया बहुत बाकी
आम जनता ने आजादी के 75 सालों में बहुतकुछ हासिल किया पर बहुत पाना अभी बाकी है. भारत की तुलना चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, सिंगापुर से की जाए तो साबित होगा कि लोगों की हालत तो ठीक ही नहीं. ऐसे में शासन को खंगालने व वर्तमान को टटोलने की जरूरत है.
“मैं ने खुद के साथ सिनेमा को भी बदलने का प्रयास किया
फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे कलाकार हैं आर माधवन जिन्हें उत्तर से ले कर दक्षिण भारत तक दर्शकों का प्यार मिला. माधवन का सपना ऐक्टिंग का नहीं था पर वे आज जानेमाने कलाकारों में शामिल हैं. उन की सिनेमा जर्नी बेहद दिलचस्प रही है. वे फिलहाल फिल्म 'रौकेट्री...' ले कर आए हैं.
सोशल स्टेटस की मारी जनता
सोशल स्टेटस के लिए अपनी सीमा से ज्यादा खर्च करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक होता है. इस के चलते इंसान बहुत सारे अपराध व भ्रष्टाचार कर बैठता है. सोशल स्टेटस की कोई सीमा नहीं है. जितना इस के चंगुल में फंसोगे उतना खुद का नुकसान करोगे.
लालची धर्मांध नहीं सुधरेंगे
धार्मिक पूजापाठ में भक्त / श्रद्धालु इस तरह खोए रहते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि वे इस से प्रकृति और खुद को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह इसलिए कि धार्मिक स्थलों में बैठे पंडेपुजारी अपने लिए दानदक्षिणा जुटाने के चलते उन्हें ऐसा सोचने ही नहीं देते.
महाराष्ट्र में उठा सियासी तूफान
बीते दिनों महाराष्ट्र में सियासी घमासान मचने से उद्धव ठाकरे की राकांपा और कांग्रेस के साथ बनी महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई. सरकार गिराने का कंधा भले बागी शिंदे गुट का रहा पर बंदूक बेशक भाजपा की रही. इस सियासी उठापटक का अंत जरूर हो गया पर नई उठापटक शुरू हो गई है.
ब्रिज द गैप बुजुर्गों के जीवन का आईना
हैल्पऐज इंडिया की रिपोर्ट 'ब्रिज द गैप' भारत में बुजुर्गों की हालत पर केंद्रित है. इस को आधार बना कर समाज और सरकार को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिस से कि बुजुर्गों का जीवन सरल व सहज हो सके.
गैर ऊंची जाति के राष्ट्रपतियों ने किया क्या?
वोटबैंक की राजनीति का विरोध करने वाली भाजपा द्वारा देश के सर्वोच्च पद पर दलित या आदिवासी व्यक्ति को बिठाना वोटबैंक की राजनीति के तहत ही खेला गया मास्टर स्ट्रोक है, जिस ने न सिर्फ राष्ट्रपति पद का राजनीतिकरण किया है, बल्कि देश के एक बहुत बड़े समुदाय से भावनात्मक छल किया है.
खतरनाक हैं औनलाइन गेम्स
कोविड के समय में मजबूरी में शुरू हुई औनलाइन पढ़ाई ने सभी बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन दे दिए हैं. यह फोन अब उन के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. बच्चे फोन और लैपटौप पर औनलाइन पढ़ाई से ज्यादा औनलाइन गेम्स खेलना पसंद कर रहे हैं. इन औनलाइन गेम्स का नकारात्मक असर अब पूरी दुनिया के बच्चों और किशोरों में देखने को मिल रहा है.
ऐनी तुम कहां हो
क्लास में सब से अलग थी ऐनी. उस के लिए यह असंगत था कि वे पहले व्यक्ति का चयन करे, फिर बात कहे. उस के लिए सब बराबर थे. प्रोफैसर का उस से अपनत्व जुड़ा पर एक फासला अमिट था, जो सवालों में था जिस का जवाब वह ढूंढ़ नहीं पाए.
कोविड के बाद कम न हो आयरन
सेहत के लिए आयरन जरूरी है. कोविडकाल में लोगों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं से गुजरना पड़ा है. ऐसे में जरूरी है कि स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए और सही मात्रा में शरीर में आयरन की जरूरत पूरी की जाए.
अंतर पहचानें हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में
कार्डियक अरेस्ट को दिल से जुड़ी बीमारियों में सब से खतरनाक माना जाता है. लोग अकसर इसे दिल का दौरा पड़ना यानी हार्ट अटैक समझते हैं. लेकिन ये दोनों बीमारियां अलग हैं.
सुहागरात को कैसे बनाएं यादगार
शादी की पहली रात से पतिपत्नी के जीवन का नया अध्याय शुरू होता है, ऐसे में कोई भूल बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है. सो, यह जान लेना जरूरी है कि पहली रात किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.
सड़क की जिम्मेदारी किस की
शहरी नागरिक के अधिकारों के साथसाथ कर्तव्य भी होते हैं. अमूमन सड़क दुर्घटनाओं, लापरवाही से हुई झड़पों व ट्रैफिक नियमों के दौरान ये नदारद दिखते हैं.
वसीयत बनाने में बराबरी किस हद तक
परिवार में होने वाले झगड़ों की सब से बड़ी वजह वसीयत विवाद होता है. वसीयत विवाद हर दूसरे घर का मसला है. वसीयत में किसे कितना मिला, यह झगड़े की जड़ होती है. ऐसे में वसीयत बनाते समय क्याक्या ध्यान में रखा जाए, जानें.
दुनियाभर में खुल गईं भगवाई कट्टरपंथी की परतें
सत्ता देश की जनता को किसी को पराया घोषित करने की खुली छूट देगी तो नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की जैसी सांप्रदायिक व नफरती बातें मुंह से निकलेंगी ही. धर्म का कोई दुकानदार अपने धर्म के बारे में सच सहन नहीं कर सकता पर वह दूसरे धर्म के बारे में न कही जाने वाली बातें बोलेगा ही. नूपुर शर्मा का मामला दर्शाता है कि धर्म आधारित राजनीति करना झील में जमी बर्फ पर नाचनाकूदना है, न जाने कब कमजोर बर्फ की परत टूट जाए और भयंकर ट्रैजडी हो जाए.
दशकों से नारी व्यथा की चर्चा ढाक के तीन पात
हर छोटीछोटी बात पर महिलापुरुष के बीच भेदभाव दिख जाता है. हंसनेरोने, उठनेबैठने, आनेजाने हर चीज में महिला व पुरुषों के लिए नियमावली अलगअलग हैं. जो चीज पुरुषों के लिए जायज ठहरा दी गई, महिलाओं के लिए उस की मनाही है.
कितनी जायज है श्रवण कुमार से अपने बच्चों की तुलना
हर मातापिता चाहते हैं कि उन का बेटा उन की सेवा श्रवण कुमार की तरह ही करे, जिस के चलते वे बारबार अपने बच्चों की श्रवण कुमार से तुलना करने लगते हैं. बदलते दौर में यह कहां तक संभव है? क्या बच्चों पर श्रवण कुमार बनने का दबाव डालना सही है?
जनून
यह धीर का जनून ही था कि जंगल में फैली भयानक आग से एक बड़ी अनहोनी होने से बच गई. इस जनून में उस ने भले ही त्याग किया पर एक बड़ी सीख भी दे दी. क्या थी वह सीख?
अग्निपथ घटा नए सैनिकों का कद
सेना को कमजोर करना सरकार की सब से बड़ी भूल होगी. अग्निपथ योजना किसी भी कोण से यह आश्वस्त नहीं करती कि इस से सेना युवा और तेज होगी. उलटे यह हर साल रिटायर हो रहे तीनचौथाई ट्रेंड सैनिक देश की गरीबी, बेरोजगारी और युवा सपनों पर पानी फेरेगी.
उफ ! यह मोटापा
मोटापा सिर्फ शरीर में चरबी का भर जाना नहीं है, बल्कि मोटापे से जन्मती हैं कई शारीरिक, सामाजिक और मानसिक समस्याएं, जिन के चलते पीड़ित व्यक्ति गहरे अलगाव और अवसाद में चला जाता है. उस के लिए जीना दूभर हो जाता है.
'फिल्म असफल होने पर उस की जिम्मेदारी निर्देशक को लेनी पड़ेगी' प्रकाश झा
प्रकाश झा बौलीवुड इंडस्ट्री के सफल निर्देशकों में गिने जाते हैं. उन की अधिकतर फिल्में सिस्टम और समाज की गंभीर समस्याओं के इर्दगिर्द होती हैं. फिलहाल वे ‘आश्रम' वैब सीरीज से चर्चाओं में हैं.
ज्ञानवापी विवाद एक नए फसाद की शुरुआत
मंदिरमसजिद विवाद एक ऐसी अंतहीन बहस है जिस के छिड़ने भर से बवाल होना तय है. यही कारण था कि 1991 में तत्कालीन सरकार ने पूजास्थल कानून बनाया. ज्ञानवापी विवाद के भड़कने से न सिर्फ इस कानून के सामने चुनौती खड़ी हुई है बल्कि बचेखुचे सांप्रदायिक सौहार्द्र के गहरे पतन में चले जाने की आशंका बढ़ गई है.
हकीकत गंदगी के पहाड़ों के नीचे
हमारी आबादी के बड़े हिस्से को गंदा रहने की आदत पड़ चुकी है. क्यों? क्योंकि मैला ढोना, साफसफाई रखना अति निचली जातियों का काम माना जाता था. ऐसे में सफाई न करना भारतीयों की संस्कृति बनी हुई है. ऐसी संस्कृति को तोड़ने की जरूरत है.
मंजिल से भी खूबसूरत सफर
मंजिल तो एक बिंदु होता है जहां पहुंचना होता है और जहां पहुंच कर खुशी का एहसास होता है, पर असल याद सफर बनाती है जो मंजिल तक पहुंचाती है. सफर ही है जो खट्टेमीठे अनुभव देता है.
अरबों की ठगी पिरामिड स्कीमें
लोग शौर्टकट तरीके से पैसा कमाना चाहते हैं और ठग इसी तरह के लोगों के इंतजार में रहते हैं. ठग कई शक्लों में सामने हैं. अरबों की ठगी करने वाले अब पिरामिड स्कीमें बेच कर पहले निवेशकों से निवेश कराते हैं, फिर जाल में फांसते हैं.
क्यों आते हैं दिन में सपने
दिन में सपने देखना आम बात है, इसे डेड्रीमिंग कहते हैं. ये कहीं भी कभी भी दिख सकते हैं. सवाल यह है कि हम इन्हें क्यों देखते हैं और इन का हमारे ऊपर क्या असर होता है? आइए जानते हैं.
आर्यन खान बरी चालू मीडिया पर आंच भी नहीं
आर्यन खान को नशीली दवाओं को रखने के आरोप में बरी कर दिया गया पर असली दोषी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो नहीं, वह चालू मीडिया है जिस ने बेगुनाहों को न्यूज रिपोर्टों से कुचल डाला और अब भी उन्हें रत्तीभर भी अफसोस नहीं है.