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जनगणना-2021 देरी आखिर कितनी पड़ेगी भारी?
जनगणना उस प्रक्रिया को दिया जाने वाला नाम है, जो न केवल किसी मुल्क के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और जनसंख्या आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाती है, बल्कि देश की विविधता और इससे जुड़े अन्य पहलुओं का अध्ययन करने का अवसर भी प्रदान करती है.जनगणना वह माध्यम है, जिसके द्वारा नागरिकों को अपने समाज, जनसांख्यिकी, अर्थशास्त्र, मानव जीवन, समाजशास्त्र, सांख्यिकी आदि द्वारा उन समस्त के बारे में अपडेट देती है, जो उनके जीवन को प्रत्यक्ष या फिर परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं.
क्वाड से चीन और बांग्लादेश के रिश्तों में पड़ेगी दरार?
चीन ने हाल ही में बांग्लादेश को अमेरिका के नेतृत्व वाले चार देशों के सुरक्षा समूह क्वाड में शामिल होने को लेकर खुली चेतावनी दी है. चीन की इस चेतावनी पर भारतीय उप-महाद्वीप में जानकार हैरानी जता रहे हैं.
योगी की नयी टेंशन!
जितिन प्रसाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की ही तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के आस पास ही देखे जाते रहे ये 2019 के आम चुनावों की बात है. आने वाले चुनावों में राहुल और प्रियंका तो साथ होंगे, लेकिन दोनों में से कोई आस पास नहीं होगा.
उमा भारती एमपी की राजनीति में होगी वापसी?
उमा भारती 2019 में लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ी लेकिन लगभग तीन साल से प्रदेश में ही सक्रिय हैं. इससे उनकी मंशा का पता चलता है. 2018 के विधानसभा और इसके बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी के निर्देश पर उन्होंने प्रचार अभियान में हिस्सा लिया. इसके बाद प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के लिए उप चुनाव हुए तो उसमें भी उनका उपयोग हुआ. हाल ही में दमोह विधानसभा सीट के उप चुनाव में भी उन्होंने ताकत झोंकी. सबसे ज्यादा चर्चा में वे शराबबंदी अभियान को लेकर दिए गए अपने बयान के कारण रहीं.
कैसे सधे, साधौ?
अन्याय है, सरासर अन्याय है कि एक ही समय में देश के विभिन्न प्रान्तों के विभिन्न परिवारों में पैदा हुए होनहार सपूतों के साथ अलग-अलग प्रकार का व्यवहार किया जा रहा है. दलित परिवार में पैदा होने वाले बच्चे मुफ्त शिक्षा पा रहे हैं जबकि सवर्ण परिवार में पैदा होने वाले बच्चों से शुल्क लिया जाता है, दलित परिवार में पैदा होने वाले बच्चों को कॉलेज में दाखिले में आरक्षण दिया जाता है, अन्य पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण दिया जाता है जबकि सवर्ण परिवार में पैदा होने वाले बच्चों को ज्यादा योग्य होने पर भी अच्छे कॉलेजों में दाखिला मिलना मुश्किल हो जाता है. इतना ही नहीं इसके अलावा दलित और पिछड़ा वर्ग के लोगों को नौकरियों में भी आरक्षण दिया जाता है जबकि उनसे योग्य सवर्ण युवाओं को अक्सर नौकरी नहीं मिल पाती. अरे, इतने पर भी चैन कहाँ ? अभी तो प्रोन्नति में भी आरक्षण चाहिए.'
आयुर्वेद की तरफ लौटता भारत
आधुनिक चिकित्सा पद्धति के बारे में महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक हिंद स्वराज में लिखा है, 'मैंने विलास किया, मैं बीमार पड़ा ; डॉक्टरने मुझे दवा दी और मैं चंगा हुआ. क्या मैं फिर से विलास नहीं करूंगा? जरूर करूंगा. अगर डॉक्टर बीच में न आता तो कुदरत अपना काम करता, मेरा मन मजबूत बनता और अन्त में निर्विषयी होकर मैं सुखी होता. इसका परिणाम यह आता है कि हम निःसत्व और नामर्द बनते हैं.
आंतों में छेद कर रहा है व्हाइट फंगस
एक ओर जहां रूप बदल-बदलकर कोरोना वायरस पिछले डेढ़ वर्षों से पूरी दुनिया में लोगों पर कहर बरपा रहा है और लाखों लोगों को अपना निवाला बना चुका है, वहीं भारत में अब इस बीमारी से ठीक होने वाले कुछ लोगों पर विभिन्न प्रकार के खतरे मंडरा रहे हैं. देशभर में ब्लैक फंगस के हजारों मामले सामने आने के बाद अब कोरोना से उबरे मरीजों में व्हाइट फंगस, यैलो फंगस और एस्पेरगिलिस फंगस के मामले भी मिलने लगे हैं. हालांकि अभी तक यैलो और एस्पेरगिलिस फंगस के गिने-चुने मामले ही मिले हैं लेकिन व्हाइट फंगस से संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. 29 मई को तो गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में फंगस के 23 नए मरीजों की पहचान हुई, जिनमें से व्हाइट फंगस के ही 17 मरीज थे.
विवादों का विश्वविद्यालय
सुखड़िया विश्वविद्यालय दक्षिण राजस्थान का एक प्रमुख उच्च शिक्षा का केंद्र है जहां हर साल लाखों विद्यार्थियों को स्नातक एवं स्नातकोत्तर समेत विभिन्न संकायों की डिग्रियां प्रदान की जाती है. लेकिन इस विश्वविद्यालय में पिछले लंबे समय से भ्रष्टाचार, फर्जीवाड़े एवं राजनीति ने इस कदर अपने जड़ें फैला दी है कि शैक्षणिक गुणवत्ता तो दूर की कौड़ी बन चुकी है और आए दिन विश्वविद्यालय से जुड़ें फर्जीवाड़े, भ्रष्टाचार, आरोप-प्रत्यारोप आदि के खुलासे स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं.
भारत में क्यों सफल नहीं होते अलक़ायदा जैसे संगठन?
भारत के बारे में यह कहा जाता रहा है कि यह दुनिया का एक ऐसा मुल्क है जहां दुनिया भर से लोग आए, अपने चिंतन साथ लाए, साथ ही वे अपने देवता को भी लेकर आए. जहां से वे आए थे, आज वहां उनका चिंतन और देवता दोनों खत्म हो चुके हैं, कोई नाम लेने वाला नहीं है लेकिन भारत में वह जिंदा है. भारत में जब इस्लाम आया तो भारत की जनता ने उसका भरपूर स्वागत किया. इस्लामी देश में कोई महिला शासन कर सकती है, ऐसा उदाहरण नहीं के बराबर मिलता है लेकिन भारत में रजिया सुल्तान ने न केवल दिल्ली पर शासन किया अपितु उसका शासन पूरे सल्तनत काल का सबसे बढ़िया शासन माना जाता है.
ब्लैक फंगस संक्रमण
आंखों से ब्रेन तक तेजी से फैल रहा है
देश के खिलाफ एक बड़ा षड्यंत्र?
कांग्रेस सत्ता में रहते हुए सत्ता में बने रहने के लिए और सत्ता से बाहर होने पर सत्ता में वापसी के लिए हमेशा से ही षड्यंत्र करती आयी हैइस षड्यंत्र को कांग्रेस पूरी ईमानदारी के साथ एक लिखित पुस्तिका का रूप देती है-जिसे बोलचाल की भाषा में टूलकिट कहा जाता है.
भारत-चीन व्यापार की शर्ते बेहतर होनी चाहिए
व्यापार के शास्त्रीय सिद्धांत यह मानते हैं कि देशों को ऐसे उत्पादों के निर्माण में विशेषज्ञता हासिल करनी चाहिए, जिनमें उन्हें तुलनात्मक (लागत) लाभ हो और मांग को पूरा करने, खपत और कल्याण में सुधार के लिए अन्य उत्पादों की खरीद करना चाहिए.
कोरोना वैक्सीन लेने में अब भी किन्तु-परन्तु क्यों?
कोरोना की काट वैक्सीन को लेकर अब भी देश में बहुत से खास और आम लोगों में डर का भाव दिखता है. वे इसे लगवाने से बच रहे हैं. आप यह भी कह सकते हैं कि उनकी वैक्सीन लगवाने में कोई दिलचस्पी ही नहीं है. इस तरह तो देश में कोरोना को मात देना कठिन होगा.
अनूठा उदाहरण है इजराइल
इस दुनिया में मात्र दो ही देश धर्म के नाम पर अलग हुए हैं. या यूं कहे, धर्म के नाम पर नए बने हैं, वे हैं पाकिस्तान और इजरायल. दोनों के बीच महज कुछ ही महीनों का अंतर हैं. पाकिस्तान बना 14 अगस्त, 1947 के दिन और इसके ठीक नौ महीने के बाद, अर्थात 14 मई, 1948 को इजरायल की राष्ट्र के रूप में घोषणा हुई.
केंद्र और राज्य के बिगड़ते संबंध
पश्चिम बंगाल में चुनाव के पहले से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और सत्ता पर आने की महत्वाकांक्षी भाजपा के बीच हिंसक टकराव चल रहे थे. दस बरस से मुख्यमंत्री चली आ रहीं ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ जनता के बीच स्वाभाविक रूप से पनपने वाले असंतोष की शिकार भी हो सकती थीं, और सत्ता से बाहर जा सकती थीं, और ऐसी ही उम्मीद में भाजपा ने वहां पर सरकार बनाने के दावे भी किए थे.
कोरोना का काम तमाम करेगी 2-डीजी
डीजीसीआई के मुताबिक 2-डीजी दवा के प्रयोग से कोरोना वायरस के ग्रोथ पर प्रभावी नियंत्रण से अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों के स्वास्थ्य में तेजी से रिकवरी हुई और इसके अलावा यह मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत को भी कम करती है.
एक म्यान...और तीन तलवार
मध्यप्रदेश में 14 महीने पहले महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद से मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान और उनके निकट साथी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की तिकड़ी में टकराव की खबरें छन-छनकर आने लगी हैं. कॉरोनकाल में ये टकराव अब तक सतह के नीचे था किन्तु अब ये टकराव सतह के ऊपर दिखाई देने लगा है.
शांति कब तक?
पश्चिम एशिया में युद्ध विराम हो जाने से दुनिया ने चैन की सांस ली है. लेकिन यह युद्ध विराम स्थाई होगा इसकी संभावना कम है. यह शांति कब तक रहेगी, इसे लेकर संशय बरकरार है. इसका कारण यह है कि फिलिस्तीन के साथ ही इस्लामिक दुनिया में कुछ लोग हैं जो न स्वयं शांति से रहते हैं न दूसरे को रहने देते हैं. वे किसी अन्य के स्वरूप और अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते. सबको अपने रंग में रंगना चाहते हैं.
शिक्षा@ लॉकडाउन!
बीते साल भी मार्च के अंतिम सप्ताह से देशव्यापी लॉकडाउन से जो समस्याएं कोविड-19 को लेकर आरंभ हुई वह साल बीतने के बाद भी और भयावह होती हुई सामने है. जहां आर्थिक गतिविधियां न केवल देश की बल्कि पूरी दुनिया की ठप रही. कई अन्य चीजें एकदम से ठहर सी गई वहीं छात्रों के जीवन में भी ठहराव आ गया.
हाईवे- प्लास्टिक से बन रही सड़कें!
नई दिल्ली की एक सड़क पर रोजाना अनगिनत कारें, कई टन प्लास्टिक की थैलियों, बोतलों के ढक्कनों और इधर-उधर यूं ही फेंक दिए गए पॉलिस्टरिन कपों से होकर गुजरती हैं. इस सड़क पर गाड़ी चलाता हुआ ड्राइवर एक ही किलोमीटर में कई टन प्लास्टिक के कचरे से होकर गुजरता है. लेकिन उसे इस यात्रा के दौरान कोई गंदगी नहीं दिखती. न तो सड़क पर प्लास्टिक फैला मिलता है न कहीं से कोई बदबू आती है. दरअसल वह एक ऐसी सड़क से गुजर रहा होता है, जो प्लास्टिक से बनी हुई है.
ममता हैं'आज' और राहुल हैं कल के नेता
सोनिया करें सच का सामना
बाज़ीगर
ममता बनर्जी ने न जाने किस मुहूर्त में बोला था कि 'खेला होबे' और पश्चिम बंगाल में खेल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. ममता बनर्जी ने वैसे तो चुनावों में अरविंद केजरीवाल के हनुमान चालीसा पढ़ने की तरह चंडी पाठ किया था, लेकिन लगता है खेला होबे बोलते वक्त सरस्वती उनकी जबान पर बैठ गयी थीं. ममता बनर्जी ने इस्तेमाल तो दो ही शब्द किये थे खेला होबे, लेकिन उसका अर्थ और असर दोनों ही व्यापक रहा है. हो सकता है ममता बनर्जी ने अपनी रणनीतियों को इन दो लफ्जों के जरिये शेयर किया हो, लेकिन वो ये अंदाजा नहीं लगा पायीं कि खेल कभी एकतरफा नहीं होता. दोनों ही पक्ष खेलते हैं और तभी हार जीत का फैसला होता है. जीत और हार की बात छोड़ भी दें, तो ये तो होता ही है कि दोनों पक्ष एक दूसरे के खिलाफ नतीजे को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी ताकत झोंक देते हैं. और इस खेल की बाजी ममता हार कर भी जीत गई और आज की बागीगर बनीं.
फ्रांस में गृह युद्ध की चेतावनी
फ्रांस में प्रकाशित एक खुला खत काफी चर्चाएं बटोर रहा है. इस पर 1.30 लाख लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं और यह खत चेतावनी दे रहा है कि देश में गृह युद्ध का खतरा है. यह संदेश फ्रांस की एक दक्षिणपंथी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इसमें फ्रांस सरकार पर कट्टरपंथी मुसलमानों को 'रियायत' देने का आरोप लगाया गया है. पत्र में लिखा है, 'यह हमारे देश के जीवित रहने के लिए है.' इसके साथ ही कहा गया है कि यह पत्र अनाम जवानों ने लिखा है और जनसमर्थन की अपील की है.
चाय बागानों में अपने बच्चों को खोती माएं
पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में काम करने वाले कुल कर्मचारियों में से लगभग 50% महिलाएँ हैं. चाय बागान में काम कर रही महिलाओं के पास मातृत्व सुविधाएँ, शिशु गृह की सुविधा, अवकाश, उचित दिहाड़ी, सुलभ शौचालय, पीने का पानी, नजदीकी अस्पताल और अन्य कई मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव केंद्र के प्रति डगमगाता विश्वास
लोकतंत्र है और चुनावों में हार जीत तो चलती ही रहती है लेकिन 2017 में विधानसभा की 3 सीटें और फिर 2019 में लोकसभा की 18 सीटों से बढ़ते हुए बीजेपी का आंकड़ा 2021 के विधानसभा चुनावों में 70 के पार कर गया है. इसलिए ये तो साफ है कि बंगाल में खेल अभी खत्म नहीं हुआ है. बीजेपी ने बंगाल में अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं.
कोरोना संकट- पाक पीएम का भारत के प्रति रवैया
कोरोना की दूसरी लहर के कारण भारत में जो कुछ हो रहा है उसे सारी दुनिया ने देखा. सारी दुनिया आज इस संकट में भारत के साथ खड़ी है. भारत को दुनिया के विभिन्न देशों से मदद भी मिल रही है.
क्राउड फंडिंग से गांव में ऑक्सीजन प्लांट लगाने की मुहिम
ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहे कोविड-19 संक्रमण ने राज्यों का सिरदर्द बढ़ा दिया है. गांवों में कोरोना संक्रमण नियंत्रण की जिम्मेदारी स्थानीय सरकार यानी पंचायतों के हाथ में सौंपने की कवायद शुरू की गई है. वहीं, इस बीच कुछ विधायक क्राउड फंडिंग के जरिए भी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए व्यवस्था करने पर लगे हैं.
हिमता बिस्व सरमा- बीजेपी के नये पॉलिटिकल टूलकिट के सैंपल!
हिमंता बिस्व सरमा उन नेताओं के लिए रोल मॉडल बन गये हैं, जो अपनी मातृसंस्था छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं या फिर जहां भी हैं वहीं से ऐसा करने की सोच रहे हैं. वकालत के पेशे से 15 साल कांग्रेस और 5 साल बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहने के बाद असम के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने जा रहे, हिमंता बिस्व सरमा सपनों के उड़ान का खुशनुमा एहसास लगते हैं, सपनों को हकीकत में बदलने वाली कामयाबी की दास्तां लगते हैं और अपने जैसे तमाम नेताओं के लिए उम्मीदों की नयी किरण बिखेर रहे हैं.
ऑक्सीजन पर सियासत
कोरोना वायरस से पैदा हुए हालात तो महाराष्ट्र, दिल्ली, यूपी और कई और भी राज्यों में करीब करीब एक जैसे ही हैं, लेकिन दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी के चलते अस्पतालों में भर्ती मरीजों की जान पर बन आयी है. ऑक्सीजन न मिलने की वजह से तो वेंटिलेटर पर रहे 22 मरीजों की महाराष्ट्र के अस्पताल में भी मौत हो गयी, लेकिन वहां ऑक्सीजन की कमी नहीं थी, बल्कि, गैस लीक होने के चलते करीब आधे घंटे तक मरीजों तक ऑक्सीजन पहुंचने में रुकावट आ गयी.
भाजपा के लिए खतरनाक है मोदी का आत्मनिर्भर भारत अभियान!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का मकसद तो यही है कि हर बात के लिए सारे लोग सरकार का मुंह न देखते रहें जितना भी संभव हो सके खुद भी कुछ न कुछ करें और अपने आस पास के लोगों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करें.जब देश का प्रत्येक नागरिक आत्मनिर्भनर बनने की कोशिश करेगा तो सरकार पर काम का बोझ कम होगा और सरकार लोगों की बुनियादी जरूरतों को छोड़ आगे के बारे में सोचेगी. ये समझाइश भी इसीलिए रही है कि कोई ये न सोचे कि सरकार ने आपके लिए क्या किया हमेशा लोग ये सोचें कि देश के लिए हमने क्या किया?