CATEGORIES
Categories
मूत्र असंयमता और इंटरस्टिम टैक्नोलोजी
अपने मूत्राशय पर नियंत्रण न रख पाना आम समस्या तो है पर कई बार यह शर्मिंदगी दे जाती है. लेकिन यह कोई लाइलाज समस्या नहीं, इसे नियंत्रित किया जा सकता है इंटरस्टिम तकनीक से क्या है यह तकनीक, जानें.
अंधविश्वास और स्वार्थ का गठजोड़ देश के लिए नुकसानदेह
पोंगापंथी, रूढ़िवादी, अंधविश्वासों में उलझा जनशक्ति वाला समाज स्वार्थियों के भ्रमजाल में फंस देश की प्रगति में कोई योगदान नहीं दे पाता, तर्क और विज्ञान से वास्ता न रख वह अंधानुकरण को ही अपनाता है.
लोकतंत्र में डर कैसा
जिस लोकतंत्र को बेखौफ होने की गारंटी माना जाता है, लोग उसी में ज्यादा डरे हुए हैं क्योंकि इस में गहरे तक धर्म ने जड़ें जमा ली हैं. इस के दूरगामी खतरे और नुकसान होंगे लेकिन उन की परवा किसे है? भाग्यवादी लोग हमेशा से ही धर्म के हाथों ठगे व छले जाते रहे हैं और आज भी यही हो रहा है.
वैडिंग लोन से ही सही युवा खुद उठा रहे अपनी शादी का खर्च
अच्छी बात यह है कि युवा अपनी शादी के खर्च का पूरा बोझ पेरैंट्स पर न डाल कर खुद भी उसे शेयर करना चाहते हैं. ऐसे में पैसों के त्वरित इंतजाम के लिए वैडिंग लोन का चलन बढ़ रहा है लेकिन क्या यह आसानी से मिल रहा है, इसलिए वैडिंग लोन ले ही लेना चाहिए, जानिए इस से जुड़ी अहम बातें.
जब शादीशुदा महिला को हो जाए प्यार
अगर कोई शादीशुदा महिला अपने बच्चों को ले कर घर छोड़ने का फैसला लेती है तो उसे बच्चों से जुड़े कुछ जोखिम उठाने को तैयार रहना चाहिए. उसे पता होना चाहिए कि वह बच्चों के साथ सबकुछ कैसे मैनेज करेगी और बच्चों के भविष्य को बिगड़ने से कैसे बचाएगी.
कहीं जातीय और धार्मिक उन्माद तो नहीं आत्महत्या के कारण
बड़े शिक्षण संस्थानों में छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्या की घटनाओं की गहराई में जा कर विवेचना करना जरूरी है. कहीं देश में बढ़ रहे जातीय और धार्मिक उन्माद के चलते तो ये घटनाएं नहीं घट रहीं.
मजाक करने का भी क्या वक्त होता है?
हंसना बेहद फायदेमंद होता है लेकिन कब, कहां, कितना और किन पर, यह जानना जरूरी है वरना माहौल बदनुमा हो सकता है.
मध्य प्रदेश घूस में सैक्स की मांग
मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी भ्रष्टाचार पर सख्त रवैया दिखाया था जो अब राम नाम की आंधी में हवा होता दिख रहा है. घूसखोरी के लिए बदनाम इस राज्य में अब तो घूस में सैक्स तक की मांग बिना किसी लिहाज के की जाने लगी है.
मायावती की जेब में अब नहीं दलित वोटर
दलित राजनीति का वह दौर अब खत्म हो गया जब बसपा अपने वोट किसी भी दल को ट्रांसफर करवा देती थी. मायावती दलित मुद्दों की जगह पौराणिकता में उलझ गई हैं. उन का नारा 'तिलक तराजू' बदल कर 'हाथी नहीं गणेश है' हो गया है. दलित वोटर अब पढ़ालिखा है. उसे पता है कि राममंदिर से उसे कुछ नहीं मिलना. दलित समाज की बात करने वाली मायावती अब अपने परिवार को आगे बढ़ा रही हैं. ऐसे में वोटर अब मायावती की जेब से बाहर निकल चुका है.
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सिद्धांतों की 'वाशिंग मशीन' है भाजपा
दानदक्षिणा बैंक के लिए भाजपा ने दक्षिणापंथी लोगों की भावनाओं को 'वाशिंग मशीन' में डाल कर धो दिया है. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का असर यह हुआ कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातीय जनगणना का मिशन छोड़ कर दक्षिणपंथी लोगों के साथ हो लिए. सरदार वल्लभभाई पटेल से ले कर कर्पूरी ठाकुर जैसे विरोधी विचारों के नेताओं तक को अपना बनाने में उस ने देर नहीं की.
लड़खड़ाती विदेश नीति पड़ोसी हो रहे हैं दुश्मन
आज कोई पड़ोसी देश भारत का सगा नहीं है. सब चीन के इशारे पर चल रहे हैं. पिद्दीपिद्दी से देश हमें आंखें दिखा रहे हैं. भारत की विदेश नीति का मोदी सरकार ने बंटाधार कर दिया है और हम भजनकीर्तन में लगे हैं.
ईरान-पाकिस्तान सर्जिकल स्टाइक साजिश या सिर्फ शोशेबाजी
ईरान व पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात बन गए हैं. मुसलिम बहुल दोनों देश आमनेसामने आ गए हैं. मामला इतना सतही नहीं इसे क शियासुन्नी विवाद कह कर टाल दिया जाए, बल्कि पाकिस्तान सेना की उस अंतर्राष्ट्रीय साजिश को उजागर करता है जिस के लपेटे में भारत की विदेश नीति भी आ सकती है. कैसे, पढ़ें.
बौलीवुड स्टारपुत्र काम न आया पिता का नाम
स्टार का बेटा भी स्टार हो यह कोई जरूरी नहीं लेकिन दूसरों के मुकाबले उन के पास मौके ज्यादा रहते हैं. इस के बाद भी वे पिता के नाम के आगे रत्तीभर भी न ठहरे तो इसे आप क्या कहेंगे? पेश है, कुछ फ्लौप स्टारपुत्रों की दास्तां.
पेट को न बनाएं बीमारियों का अड्डा
कहते हैं पेट सही रहता है तो आधी बीमारियां यों ही ठीक हो जाती हैं. पेट शरीर का ऐसा हिस्सा है जो गलत खानपान के चलते बीमारियों का अड्डा बन सकता है. ऐसे में जानिए पेट से जुड़ी बीमारियों से बचाव के उपाय.
पहली हिंसा में ही पत्नी करे विरोध
पतिपत्नी के बीच घरेलू विवाद नई बात नहीं है. यह विवाद जब हिंसा में बदल जाता है तब बड़ी घटना घट सकती है, जो पतिपत्नी दोनों पर भारी पड़ जाती है. ऐसे में जरूरी यह है कि पतिपत्नी के बीच हिंसा जैसे हो, तभी उस का विरोध हो. हिंसा को यह समझ कर न सहें कि आगे सब ठीक हो जाएगा.
प्यार में ब्रेकअप आत्महत्या बुद्धिमानी नहीं
प्यार में असफलता या ब्रेकअप के चलते आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा लेना कतई बुद्धिमानी काम नहीं. राजनांदगांव के अभिषेक नरेडी ने यही गलती या मूर्खता की थी जिस पर बिलासपुर हाईकोर्ट ने इस इनकार कर दिया कि उस बात से से की प्रेमिका ने उसे आत्महत्या करने के लिए उकसाया था.
शिक्षा के नाम पर धर्मप्रचार क्यों
विकास के मुद्दे अब मंदिर, मसजिद, मठ, घाट, गुरुद्वारे बन कर रह गए हैं. शिक्षास्थलों में भी धर्मप्रचार का काम किया जा रहा है. इस से न सिर्फ साइंटिफिक टैंपरामैंट खत्म होता है बल्कि तार्किक क्षमता पर भी असर पड़ता है, जो कि नव युवाओं में देखा जा रहा है.
तलाक चट मंगनी पट ब्याह जैसा हो
देशभर की अदालतों में तलाक के लाखों मुकदमे चल रहे हैं जिन में पतिपत्नी दोनों परेशान होते तमाम तरह के तनाव झेलते हैं. फैसले में देरी उन की दुश्वारियों को और बढ़ाती है. तलाक के लिए किसी वजह के होने की अनिवार्यता और बाध्यता से कई झंझटें पैदा होती हैं. अगर तलाक भी चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर तुरंत होने लगे तो इस में हर्ज क्या है?
पुतिन को औरतों की नहीं बच्चों की चिंता
पुतिन ही नहीं, भारत के कट्टरवादी लोग भी औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन बना देना चाहते हैं. इस के पीछे के उद्देश्य में फर्क है. पुतिन सेना में सिपाही के लिए जनसंख्या बढ़ाना चाहते हैं जबकि भारत के लोग पूजापाठी जन्मोत्सव में पूजा-दक्षिणा के लिए ज्यादा बच्चे चाहते हैं.
महिला सशक्तीकरण की मिसाल रैसलर विनेश फोगाट
सरकारी उच्च पदों पर महिलाएं अपने संघर्ष व मेहनत से नहीं, नियमकानून से पहुंचती हैं. उन को महिला सशक्तीकरण से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए. महिला सशक्तीकरण का असल उदाहरण विनेश फोगाट जैसी खिलाड़ी हैं जो व्यवस्था के खिलाफ खड़ी हो कर अपनी मुश्किलें बढ़ाने से भी डर नहीं रहीं.
ट्रक ड्राइवरों से मुंह की खाई
आखिर ऐसा क्यों है कि मोदी सरकार को बारबार अपने कानून वापस लेने की शर्मनाक स्थिति से गुजरना पड़ रहा है? जनता के बीच से जनता द्वारा चुन कर संसद में बिठाए गए जनप्रतिनिधि जनता के लिए कोई कानून बनाने से पहले उस पर जनता का नजरिया क्यों नहीं समझ पा रहे हैं?
लोकसभा चुनाव से पहले तेज हुई ईडी
पक्षविपक्ष के तमाम नेताओं की अलमारियांतिजोरियां सोने के बिस्कुट और नोटों की गड्डियों से भरी हैं. हमाम में सब नंगे हैं, मगर खुलासा सिर्फ विपक्षियों का होता है और सत्ताधारी 'भ्रष्टभ्रष्ट' का शोर मचाते हैं. जनता सब समझती है कि कौन कितने पानी में है.
युवा नेताओं को नहीं मिलने वाली है सत्ता
राजनीति में सभी दलों पर बूढ़ों का दबदबा है और जो युवा लाए भी जा रहे हैं उन्हें फैसले लेने का कोई हक नहीं. कल तक झंडे लगाने वाले आज नेता बन बैठे ये युवा सिर झुका कर हुक्म की तामील करने के लिए हैं. अपने दम पर आए मेधावी युवाओं की तादाद न के बराबर है और उन्हें भी पार्टी, जहां सत्ता में है, काम नहीं करने दे रही.
"जो बिकता है वही दिखता है पर छाप नहीं छोड़ पाता" -राजेश्वरी सचदेव
राजेश्वरी सचदेव संजीदा अभिनेत्री रही हैं. उन के हिस्से कई ऐसी फिल्में आईं जो क्रिटिकली सराही गईं. श्याम बेनेगल व बासु चटर्जी के साथ उन्होंने काफी काम किया. छोटी सी उम्र से अभिनय करने वाली राजेश्वरी की जर्नी कैसी रही, जानें.
आदमी के अंदर का हिंसक जानवर परदे पर
फिल्म 'एनिमल' में भयानक हिंसा और सैक्स सीन दिखाए गए हैं. फिल्मों का इस तरह का कंटैंट पैसा कमाने का जरिया बन गया है, लेकिन ऐसी फिल्में दर्शकों के मनोविज्ञान पर क्या असर छोड़ रही हैं, इस की जिम्मेदारी न निर्देशक लेने को तैयार हैं और न ही कलाकार.
मैडिकल क्लेम के लिए अब 24 घंटे एडमिट रहना जरूरी नहीं
क्लेम तो आसानी से मिलता नहीं, फिर हैल्थ इंश्योरेंस लेने से क्या फायदा? आम लोगों की स्वास्थ्य बीमा न लेने की एक बड़ी वजह यह मानसिकता भी है जो गलत नहीं है लेकिन इरडा के नए फैसले से लोगों के को उम्मीद बंधी है कि अब मैडिकल क्लेम के लिए 24 घंटे अस्पताल में भरती रहना जरूरी नहीं.
खतरनाक रेबीज लाइलाज रोग
रेबीज दुनिया की सब से खतरनाक बीमारियों में से एक है. यदि यह बीमारी किसी को होती है तो 99 फीसदी चांस है कि व्यक्ति की मौत हो जाए. ऐसी लाइलाज बीमारी से बचने के क्या हैं उपाय?
भाजपा का धर्मजाल कैसे तोड़ेगी कांग्रेस
योजनाओं के लाभार्थियों का ढिंढोरा भाजपा ऐसे पीटती है मानो सभी को घर और अन्न मिल रहा हो और अब लोगों को पैसा कमाने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती. इसे किसी चमत्कार से कम कह कर प्रचारित नहीं किया जाता और लोग इस झांसे में आ भी रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन असमंजस में हैं कि क्या करें?
डोनाल्ड ट्रंप अब राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं
जिन लोगों ने अमेरिका को समझने की कोशिश अभीअभी या कुछ वर्षों पहले ही शुरू की है उन्हें पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम से ही लगता है कि अमेरिका उतना उदार है नहीं जितना उस के बारे में हल्ला मचाया जाता है. एक अदालती फैसले के बाद ट्रंप की उम्मीदवारी पर खतरा तो मंडराया है.
निलंबन तो बहाना था बिल पास कराना था
दोतिहाई सांसदों को हल्ला मचाने के आरोप में सदन से निलंबित कर सरकार ने अपराध से जुड़े 3 महत्त्वपूर्ण बिल बिना किसी बहस के पास करा लिए. क्या यह लोकतंत्र की आत्मा को छलनी कर तानाशाही की ओर बढ़ने का संकेत नहीं है?