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नया साल मुबारक
यह हमारी रंग-बिरंगी आकांक्षाओं और संकल्पों का दिन है। यह दिन हमारे भोगे हुए कष्टों और अनजाने सुख के बीच की कड़ी है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसका भविष्य क्या होगा। आज तो इसके उत्सव का दिन है। इसके स्वागत का दिन है। नए सपने सजाने और उन्हें पूरा करने के संकल्प का दिन है
फिल्म तो नॉस्टेल्जिया है
फिल्म एक कला माध्यम है और सीधे - सीधे यादो से ही जुड़ा है। यादगार फिल्मे वही है जो इंसानियत से,अपने समय से जुडी होती है।
शब्दों की दुनिया
बार - बार यह बात कही जाती है कि साहित्य समाज का दर्पण है । जाहिर है कि जैसा समाज होता है , साहित्य भी वैसा ही होता है । वर्ष 2019 के साहित्य के संदर्भ में भी यह बात उतनी ही सच है ।
थोड़ी कोशिश खुद को बदलने की
पुराने साल की विदाई और नए साल का स्वागत, जब अपनों के साथ होता है तो बात ही कुछ और होती है । नया साल नए वादों के साथ मन में जोश पैदा करता है । कुछ कर गुजरने का हौसला देता है
पहला कदम - महात्मा के सपनों का भारत
महात्मा गांधी के 150वीं जयंती वर्ष की समारोह श्रृंखला में कादम्बिनी क्लब के तत्त्वावधान में पिछले दिनों लखनऊ के गांधी संस्थान में गांधी साहित्य पर चर्चा आयोजित की गई।
मुखौटे
अल्पना ने सोचा कि देवास डेढ़ घंटे का सफर है तो वह शादी में रिसेप्शन पर जाने के बजाय सवेरे दस बजे फेरों के समय जाकर शाम चार बजे तक लौट आएगी । वहां पहुंची तो नाच गाने और पटाखों से बचने के लिए पेड़ के नीचे कुर्सी पर बैठ गई। यतिन की बहन गुड्डी और बहनोई मिले तो नाश्ते के साथ बातों का सिलसिला कुछ यों शुरू हुआ कि...
हरा गुड्डा
पंद्रह साल की नाद्या और तीस साल का फौजी अफसर एक क्रिसमस पार्टी में मिलते हैं। अफसर को लेकर नाद्या की भावनाएं बहुत उलझी हुई हैं। अफसर एक हरे गुइडे के जरिये उससे अपना प्रेम व्यक्त करता है और फिर...
जैसे नया मनुष्य जन्मता है
सुख-दुख, आशा-निराशा के बीच फिर नया साल आ गया । अपने आप से वादे का दिन । एक ऐसी दुनिया गढ़ने का दिन, जिसमें सब सुरक्षित हों । कोई अपराध न हो । न गरीबी, न भुखमरी । न किसी प्रकार का कोई दुख... कुछ ऐसे ही हैं नए साल के संकल्प
पत्थर और बहता पानी
पुरानी इमारतें जहां हमें बीते वक्त की स्ततियों में ले जाती हैं वहीं नदियों का बहता पानी हमें उस शाश्वत समय का बोध कराता है जहां कुछ भी नहीं बीतता। मनुष्य हमेशा वर्तमान में नहीं रह सकता। उसके भीतर स्तृतियों का संसार ही उसे जीवित बनाए रखता है
वत्सल
समय के साथ अनुकूलन बैठाने में तिवारी को अद्भुत महारत है। जब उनकी पीढ़ी के लोग कंप्यूटरीकरण से संत्रस्त महसूस कर रहे थे तो उन्होंने कंप्यूटर को ऑपरेट करना बड़ी खूबी के साथ सीख लिया। बेटे-बेटी को पढ़ाया-लिखाया और उनकी शादियां कीं। अलबत्ता, यह सब निभाते-निभाते पत्नी का देहांत हो गया तो वे अकेले पड़ गए। घर में किलकारी गूंजने को हुई, पर पौत्र के बजाय पौत्री हुई तो मन थोड़ा बुझ गया। बड़ी मनौतियों के बाद आंगन में पौत्र का आगमन हुआ तो तिवारी जी फूले नहीं समाए। नाम पड़ा बलदेव, जो तिवारी जी के लिए बुल्लू हो गया। बुल्लू ने माहौल कुछ यों बनाया कि बस....
सांझ
बचपन का प्रेम बुढ़ापे में वात्सल्य का रूप ले लेता है। अपने बहू-बेटों से दुखी बंतू जब अपनी पुरानी प्रेमिका जै कौर से मिलता है तो दोनों के जीवन के दुख एक ही धरातल पर साकार होने लगते हैं। दोनों के जीवन की सांझ है और प्रेम भी विस्तार ले रहा है
खुद को बदलो नहीं पहचानो
नए साल पर हम सब कुछ न कुछ संकल्प लेते हैं जो अक्सर टूट जाते हैं । ऐसा इसलिए होता है कि हम खुद को, अपने अवचेतन को नहीं जानते । जब हम अपने भीतर के भय और असुरक्षा को जान लेते हैं तो फिर संकल्प की कोई जरूरत नहीं रह जाती
दुनिया को चलाते ईंधन
सभ्यताओं का इतिहाथ स्मृतियों का भी इतिहास है। जब हम किसी व्यक्ति, चीज या जगह को याद करते हैं तो उसके साथ उसका पूरा इतिहास याद आने लगता है। साहित्य, फिल्म और अन्य कला माध्यमों में इसे शिद्दत से उकेरा गया है और हर नई पीढ़ी उसे अपने ढंग से याद करने की कोशिश करती है
राजकपूर की आत्मा थे शैलेंद्र
गीतों के सिनेमाई मीटर में सामाजिक सरोकारों और जीवन दर्शन की अभिव्यक्ति में गीतकार शैलेंद्र का कोई सानी नहीं । राजकपूर के लिए शैलेंद्र ‘कविराज' बन गए थे और दोनों का साथ यों बना कि जैसे वे फिल्मी दुनिया में एक दूसरे के लिए ही बने थे । उनकी पुण्यतिथि (14 दिसंबर) के मौके पर उनकी यादें साझा कर रहे हैं उनके बेटे
वो इतनी प्यारी है कि ...
फिल्म इंडस्ट्री में रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की जोड़ी हमेशा चर्चा में रही है। उनकी प्रेम कहानी भी खासी दिलचस्प है। कुछ ऐसी कि खुद उन्हें भी आज उस पर हैरानी होती है
जीवन की स्मृति है कर्म
जीवन का मूलमंत्र है कर्म जो अध्यातम की दुनिया में स्मृति का अपना महत्व है।
यह साहित्य की ताकत है
साहित्य और सिनेमा का रिश्ता थोड़ा टेढ़ा है । दोनों दो अलग कला विधाएं हैं । कृति को लेकर हर फिल्मकार का अपना एक अलग नजरिया होता है , इसलिए कई बार जब किसी साहित्यिक कृति पर फिल्म बनती है तो हू ब हू नहीं हो सकती । उससे बेहतर भी हो सकती है और खराब भी
मौन से मुखर तक
वक्त के साथ प्रेम के रूप बदलते गए हैं तो प्रेम कहानियों का कलेवर भी। एक समय उन्हीं कहानियों को प्रेम कहानियों की संज्ञा मिली जिनमें कुछ पाना नहीं होता था, खोना ही खोना होता था। समय के साथ यह प्रेम अब साहचर्य की मांग करने लगा और प्रेम कहानियां भी मुखर होती गईं
कुछ भी एक बार नहीं
संकल्पों के साथ एक अजीब बात है कि एक झटके में बड़े बड़े संकल्प लेना और उनका पूरा न हो पाना आपको और परेशानी में डाल सकता है । ध्यान रहे कि एक बार में कुछ भी नहीं होता। छोटे-छोटे संकल्प लें और उनमें निरंतरता बनाए रखें । इससे आप अपने भीतर बहुत खुशी महसूस करेंगे
छाया मत छूना
गिरिजाकुमार माथुर की महान कविता छाया मत छूना मनहोता है दुख दूना मन
बे - रेजगारी के दिन
रेजगारी अब मिलती नहीं । किसी को शगुन का लिफाफा देना हो तो बड़ा संकट एक रुपये के नोट या सिक्के का होता है , क्योंकि एक सौ एक या पांच सौ एक देना हमारे यहां मांगलिक माना गया है । सवा रुपये का कभी बड़ा महत्त्व था , लेकिन चवन्नी ही बाजार से गायब हो गई और पंडितजी भी दक्षिणा में अब बड़े नोटों के फेर में पड़े हुए हैं । देखा जाए तो कैसलेस के दौर में यह बे-रेजगारी के दिन हैं
प्रेम, और सिर्फ प्रेम
प्रेम के कई रूप हैं। अपने उदात्त रूप में प्रेम सिर्फ देना जानता है, कुछ पाना नहीं। अपने विकृत रूप में वह हिंसा, बलात्कार और एसिड अटैक तक जा पहुंचता है। जैसे प्रेम करना कठिन है वैसे ही प्रेम कहानी लिखना भी। अपने सर्वोत्तम रूप में हर प्रेम कहानी में देह नगण्य हो जाती है और भावना प्रधान
कुछ छोड़ना भी सीखो
अपना वजन कम करेंगे । मीठा नहीं खाएंगे । झूट नहीं बोलेंगे । ऐसी बहुत सारी बातें हैं, जो साल के पहले दिन हम अपने आप से बोलते हैं । इनमें से कितनी पूरी होती हैं, यह अलग बात है । हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि अपने मन को काबू में करें न कि मन के काबू में रहें
गोधूलि
नार्मन गोर्ट्स्बी पार्क की बेंच पर बैठा गोधूलि के समय के दृश्यों का आनंद ले रहा था। उसके बगल में एक बुजुर्ग बैठे थे। वे उठे तो एक नवगुवक आकर बैठ गया। बातचीत में उसने बताया आज ही वह शहर में आया है और साबुन की एक टिकिया लेने निकला और कुछ देर घूमने-टहलने के बाद उसे याद आया कि उसने न तो अपने होटल के नाम पर ध्यान दिया था और नही सड़क का नाम उसे मालूम है। गोर्ट्स्बी ने उसकी कहानी के अविश्वस्नीय पक्ष को सामने रखा, लेकिन उसके बाद...
बदल रही है साहित्य की धुरी
साहित्य के लिए यह साल इस अर्थ में अहम है कि इस साल केंद्रीय विधाओं में काफी उलटफेर हुआ है । हालांकि कविता - कहानी अब भी अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं , लेकिन मुख्य जोर सफल लोगों की जीवनी . आत्मकथाओं , यात्रा - संस्मरणों और प्रेरणादायी पुस्तकों का रहा है
प्रेम के बारे में कुछ
प्रेम के बारे में जितने रहस्य कहे जाते हैं उतने हैं नहीं। प्रेम बहुत कुछ हमारे अतीत और हमारे हार्मोंस पर भी निर्भर करता है। प्रेम के भी कई प्रकार हैं जिसमें प्रतिबद्धता, आकर्षण और अंतरंगता की भूमिका अहम होती है। संपूर्ण प्रेम इन तीनों से मिलकर ही बनता है
होली के रंग दुनिया के संग
होली अब सिर्फ भारतीय पर्व नहीं रहा, बल्कि दुनिया में भारतीय जहां-जहां गए उनके साथ होली भी चलती चली गई। सबसे पहले गिरमिटियों के जरिये, फिर प्रवासी भारतीयों के जरिये। बेशक, देशकाल के हिसाब से उसका रूप-रंग थोड़ा बदला, लेकिन फगुआ राग नहीं
किसी पल का इंतजार!
लंबे समय तक एक-सा ही काम करते रहने से तन ही नहीं, मन भी थक जाता है । उसे भी आराम की जरूरत होती है । और यह आराम सिर्फ । ' आराम' करने से ही नहीं मिलता, बल्कि कुछ नया करने से भी मिलता भागदौड़भरी जिंदगी में कुछ देर ठहरें । साल का पहला दिन कुछ ठहरकर देखने का दिन होता है
कौन ले गया आपकी 'मेमरी'
आज तकनीक के जमाने में हम अपने दिमाग की मेमरी का इस्तेमाल करने की जगह कंप्यूटर और मोबाइल की मेमरी पर निर्भर रहने लगे हैं, जबकि हमारा दिमाग इतना बड़ा है कि उसमें 250 करोड़ मेगाबाइट मेमरी को सहेजा जा सकता है। कंप्यूटर और मोबाइल की मेमरी का खतरा इतना बड़ा है कि यह हमारे दिमाग की स्मृति क्षमता को ही नष्ट करने लगी है
बचकर रहें सर्दियों में
सर्दियां अस्थमा रोगियों के लिए कई बार जैसे मुसीबत ही बन जाती हैं। इस बीमारी में श्वास की नलियों में सूजन हो जाती है , जिससे वे सिकड़ने लगती हैं और सांस लेने में दिक्कत होती है । जाड़े के दिनों में श्वास नलियों में सिकुड़न बढ़ने का खतरा ज्यादा होता है । स्मॉग वगैरह परेशानी को जानलेवा बना देते हैं । थोड़ी सावधानी रखी जाए तो अस्थमा को नियंत्रण में रखा जा सकता है