दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल में अब 450 बिस्तरों वाले कोविड वार्ड में में महज दो मरीज हैं. यह कभी 1,500 आरक्षित बिस्तरों के साथ राजधानी में कोविड का सबसे बड़ा अस्पताल हुआ करता था. उन्हें शिकायत क्या है? गले में तकलीफ. दरअसल, वे अपनी उम्र की वजह से अस्पताल में हैं. दोनों 65 बरस से ऊपर हैं. महज एक साल और कुछ महीने पहले, मई 2021 में, जब भारत जानलेवा डेल्टा लहर की चपेट में था, यह अस्पताल जबरदस्त गहमागहमी से बजबजा रहा था. इस कदर कि इसकी लिफ्ट के बाहरी गलियारे, कक्षाएं और ओपीडी तक कामचलाऊ इमरजेंसी कक्षों में बदल दिए गए थे. अब ऐसा नहीं है.
छुटकारे का जज्बा हवाओं में है. अब कोई मास्क नहीं पहन रहा. बाजारों में चहल-पहल है. लोग यात्राएं कर रहे हैं. एक-दूसरे से दूरी गुजरे जमाने की चीज मालूम देने लगी है. दीवाली की तैयारियां चल रही हैं. 2019 के बाद पहली दफा त्योहार मनाते वक्त कोविड की तलवार लोगों के सिर पर नहीं लटकी होगी. ऐसा नहीं है कि वायरस गायब हो गया है. बात बस इतनी है कि मरीज और डॉक्टर दोनों ही कोविड से भयभीत नहीं हैं. मेदांता - द मेडिसिटी, गुरुग्राम की आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ और राज्य के पहले कोविड मरीज का इलाज करने वाली डॉ. सुशीला कटारिया कहती हैं, "मैं नुस्खे में आराम और शायद पैरासिटामॉल से ज्यादा कुछ नहीं लिखती. आज इतना काफी है."
दुनिया महामारी के अंत की आधिकारिक घोषणा सुनने को आतुर है, मगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अभी 19 अक्तूबर को ही कहा कि कोविड- 19 स्वास्थ्य की वैश्विक आपातस्थिति बना हुआ है. एक महीने पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने ऐलान कर दिया कि महामारी खत्म हो गई. लेकिन बीएफ. 7 और एक्सबीबी सरीखे नए म्यूटेशनों के अचानक सिर उठाने से अमेरिका को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी और 90 दिन बढ़ानी पड़ी. लगता है, यूरोप ने भी कोविड के साथ जीना मंजूर कर लिया है और मास्क पहनने की अनिवार्यता फिर लागू कर दी गई है. सिंगापुर ने भी कोविड का दर्जा घटाकर इसे स्थानीय बीमारी मान लिया था, पर यहां एक्सबीबी के मामलों का उछाल आ गया.
Denne historien er fra November 02, 2022-utgaven av India Today Hindi.
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शब्द हैं तो सब है
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"